लखनऊ: उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि पूर्वांचल के सभी जनपदों के वित्तीय पैरामीटर व तकनीकी पैरामीटर की विस्तृत रिपोर्ट पावर कार्पोरेशन के प्रबंध निदेशक व निदेशक वित्त ने तलब की है. इससे पावर कार्पोरेशन की मंशा पर सवाल उठना लाजिमी है. कहीं न कहीं गुपचुप तरीके से निजीकरण की तैयारी जरूर चल रही है.
उनका कहना है कि पावर कार्पोरेशन के प्रबंध निदेशक ने पूर्वांचल में स्टोर की स्थिति, सबस्टेशनों की सूचना, फिक्स्ड रजिस्टर इन्वेंट्री सहित अनेकों सूचना मंगाई हैं. इसका सीधा तात्पर्य है कि दाल में कुछ काला है. निजीकरण की रूपरेखा को अंतिम रूप दिया जा रहा है. पावर कार्पोरेशन शायद यह भूल गया है कि उसके मंसूबे कामयाब नहीं होंगे. यह जनता के साथ धोखा है कि एक तरफ बिजली दर की प्रक्रिया चालू है और दूसरी तरफ इस प्रकार की कार्रवाई की तैयारी हो रही है. ये उपभोक्ता विरोधी कार्रवाई को दर्शाता है. पावर कार्पोरेशन को सबसे पहले नियामक आयोग के आदेशानुसार प्रदेश की जनता को यह बताना होगा कि निजीकरण जनता के हित में कैसे है ?
इस मामले पर परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि पावर कार्पोरेशन शायद यह भूल गया कि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का सभी बिजली कम्पनियों पर उदय व ट्रूप के मद में लगभग 13337 करोड़ निकल रहा है जो ब्याज सहित लगभग 15 हजार करोड़ रुपया होगा. अगर इसे 4 बिजली कम्पनियों के हिस्से में बांट दिया जाय तो एक कंपनी के हिस्से में लगभग 3750 करोड़ आएगा. उनका कहना है कि एक बार पावर कार्पोरेशन जिसे निजी घराने को देने की सोच रहा है, उससे यह कहे कि कंपनी लेते ही लगभग 3700 करोड़ रुपये उपभोक्ताओं को बिजली दर में कम करके वापस करना होगा, सब बिना टिकट भाग जाएंगे.
उनका कहना है कि पावर कार्पोरेशन ने क्या इस दिशा में कभी नहीं सोचा कि देश के प्रधानमंत्री और सूबे के मुख्यमंत्री पूर्वांचल से ही आते हैं. अगर वहां भी सुधार के नाम पर निजीकरण की बात होगी तो प्रदेश के तीन करोड़ उपभोक्ताओं को बिजली कम्पनियां क्या जबाब देंगी. जब सुधार के लिए प्रधानमंत्री का क्षेत्र निजी घरानों के हवाले हो रहा तो प्रदेश की जनता का क्या होगा.