लखनऊ : समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने राम चरित मानस पर प्रतिबंध की मांग करके एक नए विवाद को जन्म दे दिया है, हालांकि यह इस तरह का पहला मामला नहीं है. इसी माह बिहार के शिक्षा मंत्री डॉ चंद्रशेखर ने भी रामचरित मानस और मनुस्मृति को निशाना बनाया था. यही कई बार पहले भी ऐसे अवसर आए जब हिंदू धर्मग्रंथों को निशाना बनाया गया. यह बात और है कि इन दोनों ही बयानों से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ने किनारा कर लिया और इसे नेताओं का निजी विचार बताया है. दरअसल, हिंदुओं के बहुसंख्यक दलित समाज को अपने पक्ष में करने के लिए इस तरह की कोशिशें पहले भी की जाती रही हैं. यह बात और है कि अब जनता धर्म-जाति की राजनीति से आगे विकास के मुद्दों पर वोट करने लगी है.
2022 में हुए विधान सभा चुनावों में सपा नेता और विवादित बयान देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने कुशीनगर की फाजिलनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. इनकी बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं सीट से भाजपा की सांसद हैं. स्वामी प्रसाद पर अवसरवादी राजनीति करने के आरोप लगते रहे हैं. वह पांच साल भाजपा की सरकार में मंत्री थे और चुनाव के मौके पर सपा में शामिल हो गए, हालांकि यह अनुमान गलत रहा कि सपा सत्ता में आएगी तो अगले पांच साल फिर सत्ता का सुख भोगेंगे. मौर्य भाजपा से पहले मायावती के भी काफी करीबी रहे हैं और उनकी सरकार में मंत्री पद से नवाजे गए. अब स्वामी को डर लग रहा है कि विधान सभा चुनावों में पिता का साथ देने वाली संघमित्रा मौर्य का आगामी लोकसभा चुनावों में टिकट न कट जाए. वह खुद भी पराजित हो चुके हैं. वह खुद पिछड़ी जाति से आते हैं. ऐसे में यदि उन्हें चुनावों में दलित समुदाय का साथ मिल जाए, तो उन्हें जीतने से कोई नहीं रोक सकता. शायद यही कारण है कि स्वामी प्रसाद मौर्य को जाति की राजनीति करनी पड़ रही है.
वरिष्ठ सपा नेता और पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने बयान में कहा था 'रामचरित मानस को लेकर हमें कोई एतराज नहीं है, लेकिन इसके कुछ अंश, जिसमें जातियों को इंगित करते हुए वर्ग और वर्ण विशेष को इंगित करते हुए कटाक्ष किया गया है. अपमानजनक टिप्पणियां की गई हैं. उन अपमानजनक टिप्पणियों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए. यह हमारी मांग है.' वह बताते हैं 'उन्हीं चौपाइयों का एक अंश है, जिसमें हिंदू धर्म को मानने वाली कई जातियों के नाम लेते हुए आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई हैं. इससे करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत होती हैं, वहीं एक स्थान पर एक चौपाई में कहा गया है, ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी यानी इन सबको ताड़ना या मारना. कौन सा पाप कर दिया है शूद्रों ने. इसलिए या तो यह हिस्से अलग कर दिए जाएं या सरकार द्वारा इस पर प्रतिबंध लगाया जाए.'
स्वामी प्रसाद मौर्य के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा सांसद और प्रदेश के पूर्व डीजीपी बृजलाल ने ट्वीट किया 'चरण वंदन कर राजनीतिक ऊंचाइयों के सपने देखने वाले नेता द्वारा हिंदुओं की पवित्र ग्रंथ श्री रामचरित मानस का अपमान हिंदू और भारतवंशी कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे. इसका खामियाजा मायावती से ज्यादा अखिलेश यादव भुगतेंगे.'
स्वामी के बयान से पहले विगत 11 जनवरी को बिहार के शिक्षा मंत्री डॉ. चंद्रशेखर ने नालंदा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में विवादित बयान दिया था. इस बयान के बाद उनके खिलाफ मुजफ्फरपुर और किशनगंज जिलों में केस दर्ज कराए गए और इसे हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने वाला बयान करार दिया गया. उन्होंने कहा था 'रामचरित मानस और मनुस्मृति समाज को विभाजित करने वाली पुस्तकें हैं.' डॉ. चंद्रशेखर ने अपने बयान में कहा था 'मनुस्मृति में हिंदू समाज के पच्चासी फीसद आबादी वाले तबके के खिलाफ गालियां दी गई हैं. रामचरित मानस के उत्तर कांड में लिखा है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करने के बाद सांप की तरह जहरीले हो जाते हैं. यह नफरत बोने वाला ग्रंथ है.' डॉ चंद्रशेखर ने आगे कहा था 'एक युग में मनुस्मृति, दूसरे में रामचरित मानस और तीसरे युग में गोलवलकर की बंच ऑफ थॉट, यह सब देश और समाज को नफरत में बांटते हैं. नफरत कभी देश को महान नहीं बना पाएगी. देश को महान केवल मोहब्बत बना सकती है.'