लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनाव को अभी वक्त है, लेकिन तैयारियों में जुटी सियासी पार्टियां अभी से ही धर्म और जातियों में विभेद पैदा कर सियासी समीकरण बनाने और बिगाड़ने में लग गई हैं. कुछ सत्ता में आने के बाद बेटियों को स्कूटी और स्मार्टफोन देने की बात कह रहे हैं तो कुछ मुस्लिमों को आरक्षण और किसानों को एमएसपी देने की गारंटी दे रहे हैं. कुछ नेता खुद को दलितों का रहनुमा बताए फिर रहे हैं तो कुछ अपने को अखलियतों का हमदर्द करार दे रहे हैं. लेकिन इन सब के बीच निर्णायक की भूमिका में बैठी जनता बड़ी खामोशी से हर एक की बातें सुन रही है.
वादों और दावों के पिटारे खोलने के क्रम में अब छोटी पार्टियां भी पीछे नहीं हैं. हालात यह है कि कल को कोई पार्टी अगर हर घर चांद और सूरज पहुंचाने की गारंटी दे तो उसमें भी आश्चर्य नहीं होगी. क्योंकि देना तो है नहीं, बोलने पर थोड़ी न कोई टैक्स लगता है.
कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के बाद अब आजाद समाज पार्टी के प्रमुख व भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद ने काशीराम के सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति आंदोलन को गति देते हुए पश्चिम यूपी में जन जुड़ाव को दौरों और जनसंपर्क पर खासा जोर दिया है.
साथ ही बहुजन समाज भाईचारा बनाए रखने को नित्य नए सियासी कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं. वहीं, चंद्रशेखर ने अपनी चुनावी हुंकार भरते हुए अब दलितों और मुस्लिमों को एकजुट होने को सियासी संदेश दिया है.
आजाद समाज पार्टी कांशीराम के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद ने कहा- "अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो वे मुस्लिमों को आरक्षण और किसानों को एमएसपी की गारंटी देने का काम करेंगे." लांकि, इस बीच गुर्जरों को साधते को उन्होंने कहा- "उनकी सरकार बनने पर जेवर एयरपोर्ट का नाम बदलकर मिहिर भोज करेंगे."
वहीं, कश्मीर में आतंकवाद के रोकथाम को लेकर चंद्रशेखर कहते हैं कि सरकार अगर आर्मी में गुर्जर और जाटव रेजीमेंट बनाने का काम करे तो फिर आतंक खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा. लेकिन केंद्र की मोदी सरकार और सूबे की योगी सरकार ने अभी तक उन वादों को पूरा नहीं किया है, जो उन्होंने पिछले चुनाव में जनता से किया था.
इसके इतर वे लगातार बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी को बतौर अहम मुद्दा उठा रहे हैं तो वहीं, किसानों के मुद्दे पर भाजपा की घेराबंदी करने में जुटे हैं. उनको पता है कि किसान भाजपा से खफा और पश्चिम यूपी में उन्हें इसका फायदा हो सकता है.
हालांकि, चंद्रशेखर सत्ता में आने को बहुजन समाज को संगठित करने में जुट गए हैं. सियासी जानकारों की मानें तो चंद्रशेखर दलितों और पिछड़ों को एक कर उन्हें बसपा से काटने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही मुस्लिमों को साधने के लिए आरक्षण का शगुफा छोड़ दिए हैं.
बता दें कि यूपी में दलित समुदाय की आबादी करीब 22 फीसद के आसपास है और पश्चिम यूपी की कई सीटों पर ये मतदाता निर्णायक की भूमिका में हैं. वहीं, यूपी की कुल 403 विधानसभा सीटों में से 85 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं. पहले दलित समुदाय का बसपा को एकमुश्त वोट जाया करता था. लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनावों में दलितों के बीच मायावती का ग्राफ बहुत गिरा है.
दरअसल, सूबे के सियासी जानकार डॉ. ललित कुचालिया बताते हैं कि चंद्रशेखर बसपा की सियासी जमीन हथियाने और दलित वोटों को अपने साथ करने को नित्य नए पैंतरे आजमा रहे हैं. हालांकि, हाल के कुछ सालों में उनकी सक्रियता को देखे तो यह स्पष्ट होगा कि वे मायावती की तुलना में अधिक सक्रिय रहने के अलावा दलित समुदाय के बीच खासा जनप्रिय हो गए हैं.
उनकी जनप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें सुनने को लोग पानी में भीगने से भी पीछे नहीं हटते.
ऐसे में दलित अधिकारों पर एक मजबूत आवाज के रूप में उभरे चंद्रशेखर आजाद दलित समाज के युवा मतदाताओं के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाने की कवायद में है. लेकिन, यूपी में दलित समाज जाटव और गैर-जाटव के तौर पर दो हिस्सों में बंटा हुआ है. मायावती और चंद्रशेखर दोनों ही जाटव समुदाय के साथ-साथ पश्चिम यूपी से आते हैं. ऐसे में दोनों का एक ही वोट बैंक हैं.
बीते कुछ सालों में चंद्रशेखर बड़ी तेजी से दलित नेता के तौर पर उभरे हैं. दिल्ली के बाल्मिकी मंदिर के मामले से लेकर हाथरस सहित देश में होने वाले दलितों के अत्याचार के मामले पर चंद्रशेखर सबसे ज्यादा मुखर दिखे हैं. इसी का नतीजा है कि पश्चिमी यूपी में इस बार पंचायत चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी ने तीन दर्जन जिला पंचायत सदस्य की सीटों पर जीत दर्ज है.
इधर, अंबेडकर महासभा के अध्यक्ष अशोक भारतीय कहते हैं कि चंद्रशेखर के सामने अवसर तो है, लेकिन अब सिर्फ दलित के नाम पर सियासत नहीं खड़ी की जा सकती है.
अंबेडकर से लेकर काशीराम तक बहुजन समाज की बात करते थे, लेकिन चंद्रशेखर बहुजन समाज के बीच अभी तक अपने आपको स्थापित नहीं कर पाए हैं और सियासत में अभी से वो बड़ी उम्मीदें लगा रहे हैं. यूपी में अभी तक जमीनी स्तर पर उनका संगठन खड़ा नहीं हो सका है.