हैदराबाद: देवबंद के जिक्र के साथ ही कई अनसुलझी तस्वीरें सामने आती हैं, जिसकी कल्पना में खौफ और हकीकत कुछ और ही बयां करती हैं. खैर, सूबे में विधानसभा चुनाव है, सो देवबंद की चर्चा इसलिए भी खास है, क्योंकि यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल है और यहां तमाम उतार-चढ़ाव के बीच सियासी तौर पर ठाकुरों का दबदबा है. वहीं, देवबंद विधानसभा सीट के आंकड़े बताते हैं कि 1952 से आज तक इस सीट पर ठाकुर ही सियासी रूप से प्रभावित हैं. क्योंकि इस सीट से जितने भी विधायक रहे उनमें से दो को छोड़कर सभी ठाकुर ही बिरादरी के ही रहे हैं.
दरअसल, देवबंद यूपी के सहारनपुर जनपद के उन पांच विधानसभा क्षेत्रों में से एक है, जहां मुस्लिम आबादी अधिक है. यहां एक प्रसिद्ध मुस्लिम मदरसा भी है, जो किसी न किसी कारण से सुर्खियों में बना रहता है. सूबे के सियासी जानकारों की मानें तो हमेशा से ही देवबंद सीट हॉट सीटों की सूची में शामिल रही है. खैर, पिछले दिनों देवबंद उस वक्त सुर्खियों में रहा, जब इस सीट का नाम देवबंद से बदलकर 'देववृंद' करने की वकालत की गई थी. वहीं, चुनाव आयोग की ओर से जारी जानकारी के मुताबिक देवबंद में आगामी 14 फरवरी को मतदान और 10 मार्च को नतीजों का एलान किया जाएगा.
ये हैं मैदान में
इस सीट पर मुख्य रूप से मुकाबला भाजपा, सपा और बसपा के बीच माना जा रहा है. लेकिन वर्तमान में इस सीट पर भाजपा का कब्जा है और पार्टी ने एक बार फिर अपने विधायक बृजेश सिंह रावत पर विश्वास जाहिर करते हुए उन्हें मैदान में उतारा है तो सपा ने पूर्व मंत्री राजेंद्र राणा के बेटे कार्तिकेय राणा को अपना प्रत्याशी बनाया है. वहीं, बसपा ने राजेन्द्र सिंह पर दांव खेला है. इसके अलावा ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से मसूद मदनी के बेटे उमर मदनी और आम आदमी पार्टी के प्रवीण कुमार धींमान समेत कुल 11 प्रत्याशी मैदान में हैं.
चुनावी इतिहास
बात अगर इस सीट के चुनावी इतिहास की करें तो यहां का सियासी समीकरण किसी एक पार्टी के पक्ष में नहीं जाता है. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बृजेश रावत को सफलता मिली थी तो वहीं, सपा के माजिद अली यहां दूसरे स्थान पर रहे थे. दोनों के बीच 29 हजार से अधिक वोटों का अंतर था. वहीं, 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के राजेंद्र सिंह राणा ने करीब 3 हजार वोटों के अंतर से बसपा को पराजित किया था. जबकि 2007 में बसपा के मनोज चौधरी ने भाजपा के शशिबाला पुंडीर को 17 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया था.
1952 में पहली बार अस्तित्व में आई थी देवबंद सीट
साल 1952 में देवबंद विधानसभा सीट पहली बार अस्तित्व में आई थी और साल 2008 में हुए परिसीमन में भी इसे बरकरार रखा गया. 1952 में कांग्रेस के ठाकुर फूल सिंह को जनता ने जीताकर विधानसभा भेजा था. इस सीट पर दूसरा विधानसभा 1957 में हुआ और निर्दलीय प्रत्याशी ठाकुर यशपाल सिंह जीते. 1962 में यह सीट वापस कांग्रेस के खाते में गई और ठाकुर फूल सिंह विधायक बने. 1967 में कांग्रेस के पं. हरदेव सिंह चौधरी जीते थे तो वहीं, मानबीर सिंह राणा 1969 में और 1974 में लगातार इस सीट पर कांग्रेस पार्टी से विधायक रहे.
कब इस सीट से कौन जीता
साल 1977 में इस सीट पर हुए विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी के मोहम्मद उस्मान को जीत मिली. 1980, 1985, 1989 में लगातार तीन बार कांग्रेस के मानबीर सिंह राणा विधायक रहे. 1991 में जनता दल के वीरेंद्र सिंह जीते. 1993 में यह सीट पहली बार भाजपा के खाते में आई और शशि बाला पुंडीर जीतीं. उनके बाद 1993 में फिर चुनाव हुए और सुखबीर सिंह राणा जीते. 2002 में बसपा के राजेंद्र सिंह राणा और 2007 में बसपा के मनोज चौधरी जीते. 2012 में सपा के राजेंद्र सिंह राणा जीते. उनके निधन के बाद कांग्रेस के खाते में यह सीट आई तो वहीं 2017 में भाजपा के टिकट पर बृजेश विजयी हुए थे. उन्होंने बसपा के माजिद अली को हराया था. इस चुनाव में बृजेश को 102244 वोट मिले थे, जबकि दूसरे स्थान पर रहे माजिद अली को 72844 वोट पड़े थे.
सपा-भाजपा के बीच होगी टक्कर
देवबंद सीट पर ठाकुर और सैनी बिरादरी के वोटरों के अलावा मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों ही जातियां पूरी तरह भाजपा के साथ हैं. हालांकि लोग स्थानीय विधायक से नाराज बताए जा रहे हैं. लेकिन सीएम योगी आदित्यनाथ के नाम पर वोट करने को तैयार हैं. वहीं, मुस्लिम मतदाता पूरी तरह से सपा केंद्रित हो गए हैं. ऐसे में यहां मुकाबला भाजपा बनाम सपा होती दिख रही है.
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