लखनऊ : फेफड़ों में सूजन या पानी भर जाने की स्थिति को निमोनिया होता हैं. यह एक आम बीमारी है जिसका बचाव एवं इलाज पूरी तरह संभव है. समय पर सही इलाज न कराने पर यह स्थति गंभीर रूप भी ले सकती है. यूपी में संक्रामक रोगों से होने वाली मृत्यु में से लगभग 20 फीसदी मौत निमोनिया की वजह से होती हैं. लोगों को जागरूक करने के लिए ही हर साल 12 नवंबर को विश्व निमोनिया दिवस (world pneumonia day) मनाया जाता है. बावजूद इसके लोग इस गंभीर बीमारी के प्रति अभी सजग नहीं हैं.
यह बातें सिविल अस्पताल के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. एस देव (Dr. S Dev, Senior Physician, Civil Hospital) ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहीं. इस बार विश्व निमोनिया दिवस का थीम 'निमोनिया किसी को भी हो सकता है' रखा गया है. डॉ. देव ने बताया कि एक बार भी जिसे कोविड हुआ है और जो पोस्ट कोविड के शिकार हो चुके हैं, उन्हें निमोनिया होने की गुंजाइश अधिक होती है. कोरोनावायरस का असर सीधे फेफड़ों पर पड़ता है. ऐसे में पहले ही इम्यून सिस्टम कमजोर हो चुका होता है. ऐसे में जब कोई दूसरी बीमारी होती है तो मरीज की हालत गंभीर हो जाती है.
फेफड़े के संक्रमण (lung infection) की वजह से निमोनिया हो सकता है. कुछ अन्य कारण भी हैं जिनसे यह हो सकती है, जैसे केमिकल निमोनिया, एस्परेशन निमोनिया, ऑबस्ट्रक्टिव निमोनिया. बैक्टीरिया (न्यूमोकोकस, हिमोफिलस, लेजियोनेला, मायकोप्लाज्मा, क्लेमाइडिया, स्यूडोमोनास) के अलावा कई वायरस (इन्फ्लूएन्जा, स्वाइन फ्लू एवं कोरोना), फंगस एवं परजीवी रोगाणुओं के कारण भी निमोनिया हो सकती है. क्षय रोग यानि टीबी के कारण भी फेफड़े में निमोनिया हो जाता है.
19वीं शताब्दी में विलियम ओस्लर ने निमोनिया को ’मौत का सौदागर’ कहा गया था. हालांकि 20वीं सदी में एंटीबायोटिक उपचार व टीकों के कारण मृत्युदर में कमी आयी. विकासशील देशों में बुजुर्गों, बच्चों और रोगियों में निमोनिया अब भी मृत्यु का एक प्रमुख कारण बना हुआ है. निमोनिया का संक्रमण हालांकि किसी को भी हो सकता है, लेकिन कुछ बीमारियां व स्थितियां ऐसी हैं, जिसमें निमोनिया का खतरा अधिक होता है. इनमें शामिल हैं धूम्रपान, मदिरापान, डायलिसिस, हृदय, फेफड़े, लीवर की बीमारियों के मरीज, मधुमेह, गंभीर गुर्दा रोग, बुढ़ापा या कम उम्र (नवजात) एवं कैंसर व एड्स के मरीज जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2019 में निमोनिया से 25 लाख लोगों की मृत्यु हुई. सभी पीड़ितों में से लगभग एक तिहाई पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे थे. प्रतिवर्ष निमोनिया से लगभग 45 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं.
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डॉ. एस देव के मुताबिक खांसने या छींकने, डायलिसिस वाले मरीज या अस्पताल में लम्बे समय से भर्ती मरीज, मुंह एवं ऊपरी पाचन नली के स्रावों का फेफड़ों में चले जाने से निमोनिया हो जाता है. तेज बुखार, खांसी एवं बलगम (कई बार खून के छीटें भी हो सकती हैं), सीने में दर्द, सांस फूलना एवं कुछ मरीजों में दस्त, मतली और उल्टी, व्यवहार में परिवर्तन जैसे मतिभ्रम, चक्कर, भूख न लगना, जोड़ों और मांशपेशियों में दर्द, सर्दी लगकर शरीर ठंडा पड़ जाना, सिरदर्द, चमड़ी का नीला पड़ना आदि निमोनिया के मुख्य लक्षण हैं. निमोनिया के लक्षण दिखाई देत ही खून व बलगम की जांच, छाती का एक्स-रे कराना चाहिए. कोविड निमोनिया की जांच के लिए आरटी-पीसीआर की जांच के अलावा फेफड़े का सीटी स्कैन भी कराना पड़ता है.
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