लखनऊ: यूपी-बिहार में नदी में कई शव उतराते देखे गए. इन मृतकों को कोरोना से पीड़ित होने को लेकर चर्चाएं गर्म हैं. यदि शव संक्रमित व्यक्ति के हैं, तो क्या पानी के जरिए कोरोना के प्रसार का खतरा है. इस पर चिकित्सा विशेषज्ञ भी अपने-अपने दावे कर रहे हैं.
एसजीपीजीआई (SGPGI) की माइक्रोबायोलॉजी की हेड डॉ. उज्ज्वला घोषाल ने इसे घातक बताया. डॉ. उज्ज्वला घोषाल के मुताबिक संक्रमित शव को डिस्पोज करने का एक प्रोटोकॉल है. इन्हें नदी में बहाया नहीं जा सकता है. यदि नदी में बहते शव कोरोना संक्रमित के हैं, तो वायरस के प्रसार का खतरा पानी के जरिए लाजिमी है. इसको लेकर कई स्टडी भी हो चुके हैं.
क्या है स्टडी में दावा
ऑनलाइन जर्नल केडब्लूआर के 24 मार्च 2020 के अंक में नीदरलैंड के वैज्ञानिकों के शोध प्रकाशित हुए. इसमें वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में कोरोना वायरस के तीन सक्रिय जींस मिलने का दावा किया गया. इसी तरह यूके के सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी के अनुसार भी कोरोना वायरस मल या फिर गंदे पानी में भी कुछ वक्त तक सक्रिय रहता है. हालांकि ये कितनी देर पानी में जीवित रहता है, इसकी अभी कोई पुष्टि नहीं हो सकी है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि एक फैमिली के सारे पैथोजन एक ही तरह से प्रतिक्रिया करते हैं. ऐसे में यहां भी पानी के सीवेज या लीकेज से कोरोना संक्रमण बढ़ सकता है. वायरस पानी की फुहारों के जरिए हवा में फैल सकता है. इस प्रक्रिया को शॉवरहेड्स एयरोसोल ट्रांसमिशन कहते हैं. वायरस गंदे या अशुद्ध पानी में लंबे वक्त तक जिंदा रह सकते हैं. गुजरात में भी सीवेज प्लांट से लिए गए सैंपल की स्टडी में कोरोना वायरस पाया गया था.