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जौहर विश्वविद्यालय की मान्यता समाप्त करने की याचिका पर हाईकोर्ट का दखल से इंकार

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय (Mohammad Ali Jauhar University) की मान्यता समाप्त करने की मांग वाली जनहित याचिका में दखल देने से इंकार कर दिया है. न्यायालय ने कहा कि यदि याची ऐसा प्रत्यावेदन देना चाहता है तो इस याचिका के निस्तारण का उस पर प्रभाव नहीं पड़ेगा.

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जौहर अली विश्वविद्यालय की मान्यता समाप्त करने की याचिका
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Published : Apr 1, 2022, 9:13 PM IST

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय (Mohammad Ali Jauhar University) की मान्यता समाप्त करने की मांग वाली जनहित याचिका में दखल देने से इंकार कर दिया है. हालांकि न्यायालय ने याची को यथोचित प्राधिकारी के समक्ष इस समबंध में प्रत्यावेदन देने की छूट दी है. न्यायालय ने कहा कि यदि याची ऐसा प्रत्यावेदन देना चाहता है तो इस याचिका के निस्तारण का उस पर प्रभाव नहीं पड़ेगा.

यह आदेश न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय (Justice DK Upadhyay) और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी (Justice Subhash Vidyarthi) की खंडपीठ ने सुधीर सिंह की याचिका पर दिया. याचिका में कहा गया था कि आजम खान जौहर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और इस वजह से जौहर अली विश्वविद्यालय अधिनियम 2005 के तहत उन्हें तमाम दायित्वों का निर्वहन करना है. याचिका में कहा गया कि एक विश्वविद्यालय जिसका कुलाधिपति सत्तर के आसपास मुकदमों में दो साल से जेल में हैं, उसे विश्वविद्यालय बने रहने का कोई अधिकार नहीं है.

इसे भी पढ़ेंः मुख्तार अंसारी से वसूली की मांग को लेकर याचिका, विधायक पद का दायित्व न निभाने के आधार पर की गई मांग

कहा गया कि अधिनियम की धारा 46 में दिए गए अधिकारों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार इस विश्वविद्यालय की मान्यता समाप्त कर सकती है. मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि याची ने किसी भी सक्षम प्राधिकारी के समक्ष कोई प्रत्यावेदन नहीं दिया है. सीधे वर्तमान याचिका दाखिल कर दी है. इस आधार पर न्यायालय ने याचिका में दखल से इंकार कर दिया. न्यायालय ने कहा कि प्रत्यावेदन देने के लिए इस न्यायालय के अनुमति की आवश्यकता नहीं है.
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लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय (Mohammad Ali Jauhar University) की मान्यता समाप्त करने की मांग वाली जनहित याचिका में दखल देने से इंकार कर दिया है. हालांकि न्यायालय ने याची को यथोचित प्राधिकारी के समक्ष इस समबंध में प्रत्यावेदन देने की छूट दी है. न्यायालय ने कहा कि यदि याची ऐसा प्रत्यावेदन देना चाहता है तो इस याचिका के निस्तारण का उस पर प्रभाव नहीं पड़ेगा.

यह आदेश न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय (Justice DK Upadhyay) और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी (Justice Subhash Vidyarthi) की खंडपीठ ने सुधीर सिंह की याचिका पर दिया. याचिका में कहा गया था कि आजम खान जौहर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और इस वजह से जौहर अली विश्वविद्यालय अधिनियम 2005 के तहत उन्हें तमाम दायित्वों का निर्वहन करना है. याचिका में कहा गया कि एक विश्वविद्यालय जिसका कुलाधिपति सत्तर के आसपास मुकदमों में दो साल से जेल में हैं, उसे विश्वविद्यालय बने रहने का कोई अधिकार नहीं है.

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कहा गया कि अधिनियम की धारा 46 में दिए गए अधिकारों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार इस विश्वविद्यालय की मान्यता समाप्त कर सकती है. मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि याची ने किसी भी सक्षम प्राधिकारी के समक्ष कोई प्रत्यावेदन नहीं दिया है. सीधे वर्तमान याचिका दाखिल कर दी है. इस आधार पर न्यायालय ने याचिका में दखल से इंकार कर दिया. न्यायालय ने कहा कि प्रत्यावेदन देने के लिए इस न्यायालय के अनुमति की आवश्यकता नहीं है.
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