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गर्भस्थ शिशु के डीएनए को डैमेज कर रहा ये केमिकल...ऐसे पहुंचाता है नुकसान - केमिकल स्ट्रेस क्या है

पेस्टीसाइड (कीटनाशक) अब गर्भस्थ शिशुओं के डीएनए को डैमेज कर रहा है. इस विषय पर हुए एक शोध में इसका खुलासा हुआ है. चलिए जानते हैं इसके बारे में.

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Published : Dec 17, 2021, 4:50 PM IST

लखनऊ : पेस्टीसाइड (कीटनाशक) का अंधाधुन्ध प्रयोग भावी पीढ़ी को बीमार कर रहा है. खानपान के जरिये शरीर में पहुंच रहे खतरनाक रसायन स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहे हैं. गर्भावस्था के दरम्यान शिशु भी केमिकल स्ट्रेस का शिकार हो रहे हैं. ऐसी स्थिति में शिशुओं का डीएनए डैमेज हो रहा है. यह खुलासा केजीएमयू के बायोकेमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष डॉ. अब्बास अली मेहंदी के शोध में हुआ है.


उनके मुताबिक पेस्टीसाइड का व्यक्ति की सेहत पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है, शोध में पहले ही इसकी पुष्टि हो चुकी थी. वहीं यदि कोई महिला केमिकल स्ट्रेस का शिकार है, तो क्या उसके गर्भस्थ शिशु पर भी दुष्प्रभाव हो रहा है. इसे लेकर वर्ष 2019 से 2021 तक स्टडी की गई.

केजीएमयू के बायोकेमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष डॉ. अब्बास अली मेहंदी ने दी यह जानकारी.

क्वीन मैरी अस्पताल में आने वाली 221 गर्भवती महिला के खून के नमूने लिए गए. इसी के साथ गर्भ नाल से भी 221 नमूने संग्रह किए गए. जांच में गर्भ नाल तक के नमूनों में केमिकल का असर पाया गया. कुल सैम्पल में 47 फीसदी में केमिकल का ख़तरनाक स्तर मिला.

ये भी पढ़ेंः UP Election 2022: वाराणसी के बाद PM मोदी का यूपी में ताबड़तोड़ दौरा, दस दिन में 4 बार आएंगे उत्तर प्रदेश


डॉ. अब्बास अली के मुताबिक खून के सैम्पल की जांच में ऑर्गेनोक्लोराइड पेस्टीसाइड का लेवल अधिक पाया गया है. इसमें डीडीटी, मेलिथियोन, इंडोसल्फान आदि रसायन मिले हैं.

पेस्टीसाइड से बच्चे जन्म से ही केमिकल स्ट्रेस का शिकार हो रहे हैं. यह रसायन उनके फैट में छिप जाते हैं. यह लिपिड, प्रोटीन को नुकसान पहुंचाने के साथ ही डीएनए को डैमेज कर रहे हैं. यह शोध इंटरनेशनल इनवायरमेंटल रिसर्च पेपर में प्रकाशित हुआ है.

चार तरह का होता है स्ट्रेस

स्ट्रेस मुख्यत: चार तरह का होता है. इन्हें केमिकल स्ट्रेस, फिजिकल स्ट्रेस, बायोलॉजिकल स्ट्रेस और इमोशनल स्ट्रेस कहते हैं. केमिकल स्ट्रेस में सबसे बड़ा कारण पेस्टीसाइड का अंधाधुंध उपयोग है. ऐसे में भविष्य में कैंसर, डायबिटीज, पार्किंसन, लिवर सिरोसिस, सिकिल सेल एनीमिया की समस्या बढ़ सकती है. उन्होंने बचाव के लिए सलाह दी है कि अनाज, सब्जी आदि अच्छी तरह धुलकर और पकाकर सेवन करें. वहीं, दुग्ध उत्पाद के सेवन में भी सावधानी बरतें. इसका कारण फसलों के अवशेष पशु चारे के तौर पर खाते हैं. ऐसे में उनके दुग्ध में भी रसायन पहुंच जाते हैं.


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लखनऊ : पेस्टीसाइड (कीटनाशक) का अंधाधुन्ध प्रयोग भावी पीढ़ी को बीमार कर रहा है. खानपान के जरिये शरीर में पहुंच रहे खतरनाक रसायन स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहे हैं. गर्भावस्था के दरम्यान शिशु भी केमिकल स्ट्रेस का शिकार हो रहे हैं. ऐसी स्थिति में शिशुओं का डीएनए डैमेज हो रहा है. यह खुलासा केजीएमयू के बायोकेमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष डॉ. अब्बास अली मेहंदी के शोध में हुआ है.


उनके मुताबिक पेस्टीसाइड का व्यक्ति की सेहत पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है, शोध में पहले ही इसकी पुष्टि हो चुकी थी. वहीं यदि कोई महिला केमिकल स्ट्रेस का शिकार है, तो क्या उसके गर्भस्थ शिशु पर भी दुष्प्रभाव हो रहा है. इसे लेकर वर्ष 2019 से 2021 तक स्टडी की गई.

केजीएमयू के बायोकेमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष डॉ. अब्बास अली मेहंदी ने दी यह जानकारी.

क्वीन मैरी अस्पताल में आने वाली 221 गर्भवती महिला के खून के नमूने लिए गए. इसी के साथ गर्भ नाल से भी 221 नमूने संग्रह किए गए. जांच में गर्भ नाल तक के नमूनों में केमिकल का असर पाया गया. कुल सैम्पल में 47 फीसदी में केमिकल का ख़तरनाक स्तर मिला.

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डॉ. अब्बास अली के मुताबिक खून के सैम्पल की जांच में ऑर्गेनोक्लोराइड पेस्टीसाइड का लेवल अधिक पाया गया है. इसमें डीडीटी, मेलिथियोन, इंडोसल्फान आदि रसायन मिले हैं.

पेस्टीसाइड से बच्चे जन्म से ही केमिकल स्ट्रेस का शिकार हो रहे हैं. यह रसायन उनके फैट में छिप जाते हैं. यह लिपिड, प्रोटीन को नुकसान पहुंचाने के साथ ही डीएनए को डैमेज कर रहे हैं. यह शोध इंटरनेशनल इनवायरमेंटल रिसर्च पेपर में प्रकाशित हुआ है.

चार तरह का होता है स्ट्रेस

स्ट्रेस मुख्यत: चार तरह का होता है. इन्हें केमिकल स्ट्रेस, फिजिकल स्ट्रेस, बायोलॉजिकल स्ट्रेस और इमोशनल स्ट्रेस कहते हैं. केमिकल स्ट्रेस में सबसे बड़ा कारण पेस्टीसाइड का अंधाधुंध उपयोग है. ऐसे में भविष्य में कैंसर, डायबिटीज, पार्किंसन, लिवर सिरोसिस, सिकिल सेल एनीमिया की समस्या बढ़ सकती है. उन्होंने बचाव के लिए सलाह दी है कि अनाज, सब्जी आदि अच्छी तरह धुलकर और पकाकर सेवन करें. वहीं, दुग्ध उत्पाद के सेवन में भी सावधानी बरतें. इसका कारण फसलों के अवशेष पशु चारे के तौर पर खाते हैं. ऐसे में उनके दुग्ध में भी रसायन पहुंच जाते हैं.


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