लखनऊ : प्रदेशभर से किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं. दूरदराज से जब मरीज यहां इलाज के लिए पहुंचते हैं और उन्हें गंभीर बीमारी होने के बावजूद रक्त उपलब्ध नहीं मिल पाता है तो वह हताश हो जाते हैं, खासकर जब मरीज को थैलेसीमिया, ब्लड कैंसर, हीमोफीलिया जैसी घातक बीमारी हो, लेकिन अब इन बीमारियों से पीड़ित मरीजों को हताश होकर केजीएमयू से वापस नहीं लौटना पड़ेगा, क्योंकि अब इन गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों को केजीएमयू में आधे घंटे में खून मिल सकेगा. अब इन बीमारियों से पीड़ित मरीजों को फीनोटाइप परखा हुआ खून जल्दी ही उपलब्ध कराया जाएगा. डायलिसिस जैसी बीमारी में मरीज को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है, उन मरीजों में एंटीबॉडी की अधिकता की वजह से सात से आठ घंटे बाद खून मिल पाता है. इसकी वजह से मरीजों को तमाम दिक्कत परेशानी झेलनी पड़ती है.
केजीएमयू प्रवक्ता डॉक्टर सुधीर सिंह ने बताया कि 'केजीएमयू के ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में रोजाना 300 से 450 यूनिट खून की खपत है. ब्लड बैंक में तीन हजार से 3500 यूनिट खून व उसके अव्यय का स्टॉक रहता है. ऐसे जिन मरीजों को तत्काल ब्लड की आवश्यकता होती है, उनके लिए और अधिक सहूलियत होने जा रही है. अब किसी भी मरीज की इस वजह से जान नहीं जाएगी कि उसे सही समय से खून नहीं मिल पाया.'
इसके अलावा केजीएमयू के ट्रांसफ्यूजन मेडिसन विभाग की अध्यक्ष डॉ. तूलिका चन्द्रा ने बताया कि 'डायलिसिस, थैलेसीमिया, ब्लड कैंसर, हीमोफीलिया और गुर्दा समेत दूसरी बीमारी से पीड़ित मरीजों को बार-बार खून चढ़वाना पड़ता है. मरीज को कई खून चढ़ने से 50 से 60 तरह की एंटीबॉडी बनती हैं. इस स्थिति में मरीज को खून जारी करने में बहुत ही सावधानी बरतनी पड़ती है. बड़े पैमाने पर शरीर में पनपी एंटीबॉडी के हिसाब से खून जारी किया जाता है ताकि मरीज को कोई खतरा न हो.'
उन्होंने कहा 'एंटीबॉडी की अधिकता से खून की मिलान (क्रासमैच) करने में बहुत दिक्कतें आती हैं. आलम यह है कि एक यूनिट के लिए विशेषज्ञों को 50 से 60 खून के पैकेट की जांच करनी पड़ रही है. इस दौरान उन्होंने कहा कि इस समय मरीज को खून मिल पा रहा है. गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों की सहूलियतों के लिए फीनोटाइप जांच की सुविधा जल्द ही शुरू की जा रही है. हर यूनिट खून की फीनोटाइप जांच की जाएगी. इसके साथ उसे कम्प्यूटर में अपलोड किया जाएगा, वहीं खून की यूनिट में एंटीबॉडी का भी जिक्र किया जाएगा, जिससे किसी जरूरतमंद गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज का नमूना आए तो कम्प्यूटर की मदद से आसानी से ब्लड का क्रास मैच हो सके. यह सब कुछ करने में लैब टेक्नीशियन को 15 से 20 मिनट समय लगता है. यह सुविधा हो जाने से मरीजों को सहूलियत होगी और उन्हें अस्पताल का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा.'
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