लखनऊ : सर्दी का सितम जारी है. बड़ी संख्या में बच्चे कोल्ड डायरिया (Patients of cold diarrhea) की चपेट में आ रहे हैं. सर्दी में उल्टी-दस्त जैसी परेशानी को नजरअंदाज न करें. डॉक्टर की सलाह पर इलाज कराएं. राजधानी के जिला अस्पतालों में पीडियाट्रिक विभाग में कोल्ड डायरिया से पीड़ित मरीजों की संख्या अधिक आ रही है.
बलरामपुर अस्पताल में बाल रोग विभाग की ओपीडी में रोजाना 30 से 35 बच्चे कोल्ड डायरिया से पीड़ित होकर आ रहे हैं. दो से तीन बच्चों को भर्ती करने की जरूरत पड़ रही है. इन बच्चों की उम्र 10 साल से कम है. अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. हिमांशु चतुर्वेदी के मुताबिक, 'ठंड में बच्चे डायरिया और निमोनिया की चपेट में आसानी से आ सकते हैं. अच्छी तरह से कपड़े पहनाएं. खान-पान पर ध्यान दें. ठंड में बाहर ले जाने से बचें.'
बड़ी संख्या में बच्चे भर्ती : लोकबंधु अस्पताल में बाल रोग विभाग की ओपीडी में कोल्ड डायरिया के 18 से 20 बच्चे आ रहे हैं. तीन चार बच्चों को भर्ती कर इलाज मुहैया कराया जा रहा है. अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अजय शंकर त्रिपाठी ने बताया कि 'बच्चों के इलाज के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं. 24 घंटे जांच की सुविधा भी है, वहीं सिविल अस्पताल के 20 से 25 बच्चे कोल्ड डायरिया और निमोनिया से पीड़ित आ रहे हैं. केजीएमयू में यह संख्या 30 से अधिक हैं. यहां 20 से ज्यादा बच्चे कोल्ड डायरिया के भर्ती हैं.'
पानी की कमी न होने दें : बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. आशुतोष वर्मा बताते हैं कि 'तीन चार दिनों में कोल्ड डायरिया से पीड़ित बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है. ओपीडी में करीब 30 फीसदी बच्चे कोल्ड डायरिया व निमोनिया से पीड़ित होकर आ रहे हैं. इनमें तीन से चार बच्चों को भर्ती कर इलाज उपलब्ध कराने की जरूरत पड़ रही है.' उन्होंने बताया कि 'कोल्ड डायरिया में एंटीबायोटिक दवा देने से बचें. शरीर में पानी की कमी न होने दें. ओआरएस घोल दें. अत्याधिक मीठा खिलाने से परहेज करें.' उन्होंने बताया कि 'बच्चे की यूरीन पर भी ध्यान देने की जरूरत है. यदि बच्चा यूरीन कम कर रहा है तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें.'
सीएमओ डॉ. मनोज अग्रवाल ने बताया कि प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में चिकित्सा सुविधा बेहतर बनाने के लिए नए अस्पताल बनाए जाएंगे. इन अस्पतालों को दूसरे राज्य की सीमा पर बनाया जाएगा, ताकि दूसरे प्रदेश के लोगों को भी चिकित्सा सुविधा मिल सके. इसकी कवायद शुरू कर दी गई है. इन अस्पतालों के लिए जगह चिह्नित करने की कवायद शुरू कर दी गई है. ये अस्पताल कहीं 50 तो कहीं 100 बेड के होंगे. तराई क्षेत्रों पर विशेष फोकस किया जा रहा है, क्योंकि यहां मच्छर जनित बीमारियों के साथ संक्रामक बीमारियां भी ज्यादा होती हैं. नए अस्पतालों को बनाते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाएगा कि सड़क हादसे में घायल होने वालों को तत्काल प्राथमिक उपचार मिल सके. इसके लिए पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी, मेडिसिन, हड्डी, सर्जरी आदि विशेषज्ञ भी तैनात किए जाएंगे.