लखनऊ : कोविड के बाद से एकाएक एंग्जाइटी से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ी है, इसमें ज्यादातर युवा और बच्चों की संख्या अधिक है. दरअसल, कोविड के बाद लोगों की इम्यूनिटी पर अधिक प्रभाव पड़ा है. इस कारण लोग जल्दी-जल्दी किसी भी वायरल की चपेट में आ रहे हैं. इसी के साथ तबियत बिगड़ने की वजह से लोग एंग्जाइटी के भी शिकार हो रहे हैं. अस्पताल में बहुत सारे ऐसे मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, जिनको पहले कोविड हुआ फिर वह पोस्ट कोविड से परेशान हैं. इसके बाद वायरल बुखार ने मरीजों की हिम्मत तोड़ दी. फिर इसके बाद इनफ्लुएंजा ने दस्तक दी. लगातार एक के बाद एक बीमारी से परेशान होने के कारण मरीज अवसाद से ग्रसित हो रहे हैं.
सिविल अस्पताल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ दीप्ति सिंह ने कहा कि 'एक के बाद एक बीमारी से पीड़ित होने के चलते मरीज तनाव के कारण अवसाद से ग्रसित हो रहे हैं. अवसाद के कारण मरीज को कई प्रकार की दिक्कत परेशानी हो रही है. ऐसे मरीजों की संख्या अस्पताल की ओपीडी में रोजाना बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि इस तरह के मरीज ओपीडी में 10 से 15 ही आते हैं, जिन्हें अन्य विभाग से मनोरोग विभाग में रेफर किया जाता है, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि मरीज के मस्तिष्क में कोई बात घर कर गई होती है. जिस कारण मरीज बार-बार उसे सोचता रहता है, जिसके बाद तबीयत और भी गंभीर हो जाती है. मरीज को ऐसा लगता है कि क्या वह इस बीमारी से उभर पाएगा या नहीं, क्योंकि बीते दो सालों में लोगों की इम्यूनिटी कमजोर हुई है. कमजोर इम्यूनिटी होने के चलते मरीज जल्दी-जल्दी अन्य बीमारियों से भी पीड़ित हो जाते हैं. इसके बाद अस्पताल की ओपीडी में रोजाना ऐसे मरीजों की संख्या अधिक होती है, जो यह बताते हैं कि बीते एक साल से या छह महीने से वह शरीर में दर्द से परेशान हैं. ऐसे मरीजों को आर्थोपेडिक विभाग से मनोरोग विभाग में रेफर किया गया है या फिर ऐसे मरीज जिन्हें बेचैनी-घबराहट होती है, उन मरीज को कार्डियोलॉजी विभाग से मनोरोग विभाग में रेफर किया जाता है. ऐसे मरीजों की संख्या लगातार ओपीडी में रहती ही है.'
डॉ दीप्ति ने बताया कि 'रोजाना अस्पताल की ओपीडी में 150 से अधिक ही मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं. कोविड के बाद से मरीजों की संख्या में एकाएक बढ़ोतरी हुई है. इससे पहले मनोरोग विभाग में इतने मरीज इलाज के लिए नहीं पहुंचते थे. मनोरोग विभाग में अवसाद से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है. मौजूदा समय में ओपीडी में जो मरीज आते हैं उनकी शिकायत रहती है कि उन्हें जल्द से जल्द ठीक होना है. अच्छा हो जाना है, लेकिन तमाम बीमारी से घिरे हुए हैं. जिंदगी बहुत कठिन लग रही है. जिंदगी बोझिल लग रही है. जीने की इच्छा खत्म हो गई है. हमेशा घबराहट, बेचैनी, चक्कर आना जैसी समस्या हो रही है.'
उन्होंने कहा कि 'मौजूदा समय में इन मरीजों को खुश रहने की आदत डालनी होगी, ताकि यह बीमारी से उभर सकें. खुश रहने के लिए जरूरी है कि मरीज के दिमाग में ऐसी कोई भी बातें न चलें, जिससे मरीज की तबीयत और गंभीर हो सकती है. घर का एनवायरनमेंट अच्छा हो. लड़ाई, झगड़े, नोकझोंक से बचें. जब घर में इस तरह का माहौल रहता है तो मरीज के मस्तिक में यही बातें घर बना लेती हैं, जिसके चलते वह अपनी बीमारी से तो परेशान रहता ही है और इसी के साथ बाकी बातों को भी जोड़ता चलता है. दिमाग में सभी चीजें एक साथ चलने के बाद मरीज पूरी तरह से अवसाद से ग्रसित हो जाता है. उसे ऐसा महसूस होने लगता है कि वह कभी ठीक हो पाएगा या नहीं, जिससे वह डिप्रेशन में चला जाता है. मराजी सोंचता है कि कुछ भी उसके साथ अच्छा नहीं हो रहा है. घर परिवार में अच्छा नहीं हो रहा है. इस तरह की भावनाएं नहीं आनी चाहिए.'
बीमारी से बचाव
- दिन की शुरुआत खुशी-खुशी करें और एक अच्छी दिनचर्या से करें.
- बहुत जल्दी हताश न हों.
- छोटी बातों से खुश होना सीखें.
- अधिक समय मोबाइल में न बिताकर बल्कि परिवार के बीच में बैठें और घर के सदस्यों से बातचीत करें.
- अपनी दिनचर्या में व्यायाम और योगा को जरूर शामिल करें.
- अच्छा और हेल्दी खाना खाएं.
- परिवार के साथ पिकनिक मनाने के लिए बाहर घूमने जाएं.
- अगर घर में बच्चे हैं तो कुछ समय उनके साथ खेलने कूदने में बिताएं.
- किसी भी बात को अधिक न सोचें. अगर आपके दिमाग में कोई बात चल रही है तो अपने परिजन या दोस्तों से बातों को शेयर करें.