लखनऊ: 'तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है' अदम गोंडवी की ये रचना प्रदेश के सखी सेंटरों के हालात बताने के लिए काफी है. कहने को वन स्टॉप सेंटर खोल दिए गए, लेकिन प्रदेश के तमाम जिलों में बिल्डिंग ही नहीं बनी. ये सेंटर कहीं किराए की बिल्डिंग में चल रहे हैं तो कहीं अस्पताल के किसी कमरे को वन स्टॉप सेंटर का नाम दे दिया गया है. इस रिपोर्ट में हम आपको बताते हैं कि कहां बेटियों के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए सरकार फंड जारी होने के बाद भी क्या जिम्मेदारी निभा रही है.
बात करें प्रदेश के जिलों की तो जौनपुर में अभी सिर्फ जमीन चिन्हित की गई है. वहीं झांसी में अभी जगह तक तय नहीं की जा सकी है. मिर्जापुर में निर्माण एजेंसी को फंड भी ट्रांसफर कर दिया गया मगर फिर भी सेंटर नहीं बना है. संतकबीर नगर में सेंटर के लिए बिल्डिंग नहीं है. वहीं महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए कुख्यात उन्नाव में वन स्टॉप सेंटर अस्थायी तौर पर ही चल रहा है. चंदौली के सखी वन स्टॉप सेंटर को अब तक 19 लाख रुपये का बजट मिला, लेकिन अभी तक अपनी बिल्डिंग नहीं मिल सकी है.
उत्तर प्रदेश के औरैया में वन स्टॉप सेंटर की बिल्डिंग अभी बनाई जा रही है. वहीं अयोध्या में वन स्टॉप सेंटर की औपचारिकता पूरी करने के बाद उसे बंद कर दिया गया. महराजगंज में तो सखी सेंटर पर ताला लटका रहता है. बलरामपुर में सखी सेंटर किराए के भवन के सहारे चल रहा है. बलिया में भी सखी वन स्टॉप सेंटर किराए के भवन में चल रहा है. यही हाल सोनभद्र, चंदौली और आजमगढ़ जिलों का भी है.
बजट के बाद भी यूपी के ज्यादातर सखी सेंटर अस्पताल के किसी कमरे या किराए के भवनों में ही चल रहे हैं, जिसकी वजह से इन सेंटरों में वे सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं, जिनका जिक्र शासनादेश में किया गया है.
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