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ओमप्रकाश राजभर और BJP में पक रही सियासी खिचड़ी, साथ आने की संभावना

असदुद्दीन ओवैसी सिर्फ मुस्लिम कार्ड खेलते हुए यूपी विधानसभा की चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ा रहे हैं. इसके अलावा बहराइच दौरे पर जाकर उन्होंने सालार मसूद की मजार में चादर चढ़ाई, उसको लेकर राजभर समाज के बीच नाराजगी है. इन सब कारणों को लेकर ओमप्रकाश राजभर ओवैसी से दूरियां बना रहे हैं.ओवैसी और राजभर के बीच की इन दूरियों का फायदा भारतीय जनता पार्टी उठाना चाहती है.

ओमप्रकाश राजभर और BJP में पक रही सियासी खिचड़ी
ओमप्रकाश राजभर और BJP में पक रही सियासी खिचड़ी
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Published : Jul 18, 2021, 6:22 PM IST

लखनऊ: 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर एक बार फिर बीजेपी के साथ आ सकते हैं. सूत्रों के अनुसार, ओमप्रकाश राजभर और भारतीय जनता पार्टी के बीच सियासी खिचड़ी पक रही है. इस सियासी खिचड़ी के पकने के पीछे का सबसे बड़ा कारण एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर के बीच पिछले दिनों पैदा हुई दरारें हैं.

ओवैसी से ओमप्रकाश राजभर की बढ़ रही हैं दूरियां
असदुद्दीन ओवैसी सिर्फ मुस्लिम कार्ड खेलते हुए यूपी विधानसभा की चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ा रहे हैं. इसके अलावा बहराइच दौरे पर जाकर उन्होंने सालार मसूद की मजार में चादर चढ़ाई, उसको लेकर राजभर समाज के बीच नाराजगी है. इन सब कारणों को लेकर ओमप्रकाश राजभर ओवैसी से दूरियां बना रहे हैं.ओवैसी और राजभर के बीच की इन दूरियों का फायदा भारतीय जनता पार्टी उठाना चाहती है. यही कारण है कि आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी और ओमप्रकाश राजभर के फिर साथ आने की संभावना जताई जा रही है.

ओमप्रकाश राजभर के BJP के साथ में आने की संभावना.

मुरादाबाद में पंचायती राज मंत्री से राजभर ने की थी मुलाकात
कुछ दिन पहले एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की सभा ओमप्रकाश राजभर के साथ मुरादाबाद में होनी थी, लेकिन ओमप्रकाश राजभर सभा में शामिल नहीं हुए थे. इसके बाद ओमप्रकाश राजभर मुरादाबाद में ही भारतीय जनता पार्टी की सरकार में पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र चौधरी से भी मिले थे. इन सियासी चालों को देखकर तमाम समीकरण बनाए जा रहे हैं.

ओमप्रकाश राजभर और ओवैसी.
ओमप्रकाश राजभर और ओवैसी.


ओवैसी के साथ राजभर के होने से भाजपा को हो सकता है नुकसान
हालांकि ओमप्रकाश राजभर भाजपा के साथ जाने का खंडन कर रहे हैं, उनका कहना है अब वह भारतीय जनता पार्टी के साथ कभी नहीं जाएंगे, लेकिन सूत्रों का कहना है कि आने वाले समय में ओमप्रकाश राजभर भाजपा के साथ नजर आएंगे. फिलहाल सीटों को लेकर दोनों दलों के बीच में बातचीत हो रही है. उत्तर प्रदेश विधान परिषद की रिक्त हुई 4 सीटों में से 1 सीट भारतीय जनता पार्टी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा को दे सकती है. अगर ऐसा होता है तो स्वाभाविक रूप से ओमप्रकाश राजभर भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में जुड़ेंगे. वहीं भाजपा की कोशिश भी है कि ओमप्रकाश राजभर ओवैसी के साथ ना जुड़ें. ओवैसी के ओमप्रकाश राजभर के साथ होने से मुस्लिमों के साथ साथ अति पिछड़े वोटबैंक में भी सेंधमारी होगी, जिसका नुकसान भाजपा होगा. यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी ओमप्रकाश राजभर और ओवैसी को एक साथ नहीं रहने देना चाहती.

ओमप्रकाश राजभर
ओमप्रकाश राजभर
क्या है राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषक डॉ दिलीप अग्निहोत्री का कहना है कि ओमप्रकाश राजभर पहले भी भारतीय जनता पार्टी के साथ रहे हैं और अगर वह वैचारिक रूप से फिर से बीजेपी के साथ आते हैं तो उसका स्वाभाविक फायदा ओमप्रकाश राजभर को होगा. भाजपा के साथ आने के चलते ही उन्हें पिछली बार 4 सीटें मिली थीं, लेकिन कुछ कारणो की वजह से भाजपा से दूर हो गए थे.

डॉ दिलीप अग्निहोत्री का कहना है कि पिछले दिनों ओवैसी से बढ़ती नजदीकियों को लेकर राजभर समाज में भी काफी नाराजगी देखने को मिली थी, लेकिन ओवैसी ने बहराइच जाकर सालार मसूद की मजार पर चादर चढ़ाई थी जिसके बाद राजभर समाज में ओवैसी के लिए नाराजगी बढ़ी है. अब ओमप्रकाश राजभर और ओवैसी के बीच दूरियां भी बढ़ी हैं. ऐसे में अगर आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी और राजभर एक साथ आते हैं तो स्वाभाविक रूप से इसका फायदा दोनों लोगों को हो सकता है.


क्या कहते हैं भाजपा प्रवक्ता
भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार में आने से पहले उत्तर प्रदेश की पहचान बन गई थी. उस उत्तर प्रदेश में जाति धर्म और ध्रुवीकरण के आधार पर समीकरणों के आधार पर सरकार बनती थी, लेकिन भाजपा ने 'सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास' के नारे के साथ काम किया है. भाजपा तमाम छोटे दलों के साथ गठबंधन करके सबको साथ लेकर क्षेत्रीय आकांक्षाओं और जातीय आकांक्षाओं को समाहित करते हुए सबको साथ लेकर चलने की पक्षधर है. भाजपा की नीतियों के साथ जो आना चाहता है. भाजपा हमेशा उसका स्वागत करती है, लेकिन अगर सिर्फ कोई अपने फायदे के लिए साथ आना चाह रहा है तो निश्चित रूप से कठिनाई होगी. भाजपा के साथ जुड़कर जो लोग समाज सेवा के लिए भाजपा के साथ जुड़ना चाहते हैं, उनका हमेशा स्वागत है.

इसे भी पढ़ें- 2007 वाले फार्मूले पर लौट रहीं माया, 23 जुलाई को अयोध्या में होगा ब्राह्मण सम्मेलन

लखनऊ: 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर एक बार फिर बीजेपी के साथ आ सकते हैं. सूत्रों के अनुसार, ओमप्रकाश राजभर और भारतीय जनता पार्टी के बीच सियासी खिचड़ी पक रही है. इस सियासी खिचड़ी के पकने के पीछे का सबसे बड़ा कारण एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर के बीच पिछले दिनों पैदा हुई दरारें हैं.

ओवैसी से ओमप्रकाश राजभर की बढ़ रही हैं दूरियां
असदुद्दीन ओवैसी सिर्फ मुस्लिम कार्ड खेलते हुए यूपी विधानसभा की चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ा रहे हैं. इसके अलावा बहराइच दौरे पर जाकर उन्होंने सालार मसूद की मजार में चादर चढ़ाई, उसको लेकर राजभर समाज के बीच नाराजगी है. इन सब कारणों को लेकर ओमप्रकाश राजभर ओवैसी से दूरियां बना रहे हैं.ओवैसी और राजभर के बीच की इन दूरियों का फायदा भारतीय जनता पार्टी उठाना चाहती है. यही कारण है कि आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी और ओमप्रकाश राजभर के फिर साथ आने की संभावना जताई जा रही है.

ओमप्रकाश राजभर के BJP के साथ में आने की संभावना.

मुरादाबाद में पंचायती राज मंत्री से राजभर ने की थी मुलाकात
कुछ दिन पहले एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की सभा ओमप्रकाश राजभर के साथ मुरादाबाद में होनी थी, लेकिन ओमप्रकाश राजभर सभा में शामिल नहीं हुए थे. इसके बाद ओमप्रकाश राजभर मुरादाबाद में ही भारतीय जनता पार्टी की सरकार में पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र चौधरी से भी मिले थे. इन सियासी चालों को देखकर तमाम समीकरण बनाए जा रहे हैं.

ओमप्रकाश राजभर और ओवैसी.
ओमप्रकाश राजभर और ओवैसी.


ओवैसी के साथ राजभर के होने से भाजपा को हो सकता है नुकसान
हालांकि ओमप्रकाश राजभर भाजपा के साथ जाने का खंडन कर रहे हैं, उनका कहना है अब वह भारतीय जनता पार्टी के साथ कभी नहीं जाएंगे, लेकिन सूत्रों का कहना है कि आने वाले समय में ओमप्रकाश राजभर भाजपा के साथ नजर आएंगे. फिलहाल सीटों को लेकर दोनों दलों के बीच में बातचीत हो रही है. उत्तर प्रदेश विधान परिषद की रिक्त हुई 4 सीटों में से 1 सीट भारतीय जनता पार्टी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा को दे सकती है. अगर ऐसा होता है तो स्वाभाविक रूप से ओमप्रकाश राजभर भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में जुड़ेंगे. वहीं भाजपा की कोशिश भी है कि ओमप्रकाश राजभर ओवैसी के साथ ना जुड़ें. ओवैसी के ओमप्रकाश राजभर के साथ होने से मुस्लिमों के साथ साथ अति पिछड़े वोटबैंक में भी सेंधमारी होगी, जिसका नुकसान भाजपा होगा. यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी ओमप्रकाश राजभर और ओवैसी को एक साथ नहीं रहने देना चाहती.

ओमप्रकाश राजभर
ओमप्रकाश राजभर
क्या है राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषक डॉ दिलीप अग्निहोत्री का कहना है कि ओमप्रकाश राजभर पहले भी भारतीय जनता पार्टी के साथ रहे हैं और अगर वह वैचारिक रूप से फिर से बीजेपी के साथ आते हैं तो उसका स्वाभाविक फायदा ओमप्रकाश राजभर को होगा. भाजपा के साथ आने के चलते ही उन्हें पिछली बार 4 सीटें मिली थीं, लेकिन कुछ कारणो की वजह से भाजपा से दूर हो गए थे.

डॉ दिलीप अग्निहोत्री का कहना है कि पिछले दिनों ओवैसी से बढ़ती नजदीकियों को लेकर राजभर समाज में भी काफी नाराजगी देखने को मिली थी, लेकिन ओवैसी ने बहराइच जाकर सालार मसूद की मजार पर चादर चढ़ाई थी जिसके बाद राजभर समाज में ओवैसी के लिए नाराजगी बढ़ी है. अब ओमप्रकाश राजभर और ओवैसी के बीच दूरियां भी बढ़ी हैं. ऐसे में अगर आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी और राजभर एक साथ आते हैं तो स्वाभाविक रूप से इसका फायदा दोनों लोगों को हो सकता है.


क्या कहते हैं भाजपा प्रवक्ता
भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार में आने से पहले उत्तर प्रदेश की पहचान बन गई थी. उस उत्तर प्रदेश में जाति धर्म और ध्रुवीकरण के आधार पर समीकरणों के आधार पर सरकार बनती थी, लेकिन भाजपा ने 'सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास' के नारे के साथ काम किया है. भाजपा तमाम छोटे दलों के साथ गठबंधन करके सबको साथ लेकर क्षेत्रीय आकांक्षाओं और जातीय आकांक्षाओं को समाहित करते हुए सबको साथ लेकर चलने की पक्षधर है. भाजपा की नीतियों के साथ जो आना चाहता है. भाजपा हमेशा उसका स्वागत करती है, लेकिन अगर सिर्फ कोई अपने फायदे के लिए साथ आना चाह रहा है तो निश्चित रूप से कठिनाई होगी. भाजपा के साथ जुड़कर जो लोग समाज सेवा के लिए भाजपा के साथ जुड़ना चाहते हैं, उनका हमेशा स्वागत है.

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