लखनऊ. प्रदेशभर में डेंगू और चिकनगुनिया (dengue and chikungunya patients) महामारी का रूप लेता जा रहा है. सरकारी आंकड़ों के विपरीत रोगियों की संख्या कई गुना ज्यादा है. प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार और केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार यानी डबल इंजन की सरकारें मच्छरों पर नियंत्रण करने में नाकाम हैं. विगत पांच वर्षों से डेंगू और चिकनगुनिया के रोगियों की तादाद साल-दर-साल बढ़ती जा रही है और सरकारें हैं कि हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं.
दरअसल, मच्छर जनित रोगों पर नियंत्रण के लिए जितने उपाये किए जाने चाहिए उतने विगत कई दशकों से नहीं किए गए. इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थीं, उस समय राष्ट्रीय स्तर पर मच्छर उन्मूलन को लेकर एक वृहद कार्यक्रम चलाया गया था. लोग बताते हैं कि उस वक्त गांव-गांव मच्छर मारने के लिए दवाओं का छिड़काव किया गया था, जिससे लोगों को काफी राहत मिली थी. आज-कल नगर निगमों द्वारा महज शहरी क्षेत्रों में रस्मी तौर पर फाॅगिंग कराई जाती है, जिससे मच्छर मरते नहीं. घरों में उपयोग किए जाने वाले मच्छर रोधी उपाय भी कुछ दिन ही काम करते हैं. फिर धीरे-धीरे मच्छर इनके आदी हो जाते हैं. मच्छरदानी ही एक ऐसा उपाय है, जिससे सोते वक्त मच्छरों से बचा जाता है, किंतु डेंगू का मच्छर तो आमतौर पर दिनके समय यानी प्रकाश में ही अधिक काटता है. शहरों में अधाधुंध कृत्रिम प्रकाश का उपयोग किया जाता है, जिससे यह मच्छर अब रात को कृत्रिम प्रकाश के भी आदी हो गए हैं और अब रात के वक्त भी लोगों को नुकसान पहुंचाने लगे हैं.
गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में मच्छर सालभर प्रजनन करने में सक्षम होते हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में मच्छरों का और खतरा भी बढ़ना तय है. एडीज (डेंगू फैलाने वाला मच्छर) साफ और ठहरे हुए पानी में अपनी आबादी बढ़ाता है. समस्या यह है कि लोगों में भी इसे लेकर पर्याप्त जागरूकता नहीं होती है. वैसे भी कॉलोनी के खाली प्लाटों, पार्कों आदि में तमाम स्थान मिल ही जाते हैं, जहां बारिश का पानी जमा होता है और मच्छरों की आबादी तेजी से बढ़ती है. सरकार लोगों को जागरूक करने के लिए विज्ञापन आदि पर जो खर्च करती है, उससे कितनी आबादी जागरूक हो पाती है, यह कहना कठिन है. हालांकि जिस तेजी से मच्छर जनित रोगों से लोग बीमार हो रहे हैं, उससे नहीं लगता कि इससे जन जागरूकता हो रही है.
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मच्छरजनित बामारियों के रोगी प्राय: स्थिति गंभीर होने पर ही सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए जाते हैं. यही कारण है कि इनके रोगियों का सही आंकड़ा कभी मिल नहीं पाता. राज्य और केंद्र की सरकारों को मच्छरों पर नियंत्रण के लिए एक वृहद अभियान चलाना चाहिए, जिससे गांव, कस्बे और शहरी क्षेत्रों में मच्छरों का सफाया हो सके. दवा और अस्पताल उद्योग के लिए अगस्त से नवंबर के बीच का वक्त सहालग का मौसम होता है. इस धंधे से जुड़े लोग लाखों-लाख रुपये कमाते हैं, जबकि गरीब जनता कंगाल हुई जाती है. यह अच्छा संयोग है कि केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार है. यदि यह सरकारें चाहें, तो इस बीमारी का सफाया भले न हो, लेकिन काफी हद तक इससे छुटकारा तो मिल ही सकता है. गोरखपुर और पूर्वांचल इसका जीता-जागता उदाहरण हैं. इस क्षेत्र में जापानी इंसेफ्लाइटिस का ऐसा प्रकोप था कि यहां हर साल सैकड़ों बच्चों की मौतें हो जाती थीं, वहीं कुछ साल के भीतर ही यहां महामारी पर पूरी तरह से नियंत्रण पा लिया गया है. इससे साफ है कि यदि सरकार चाह ले, तो डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया आदि रोगों पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है.
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