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जानें नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी का महाराष्ट्र से क्या है खास कनेक्शन...

भारतीय मूल के अर्थशास्त्री और नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी का महाराष्ट्र से खास जुड़ाव है. आपको बता दें कि अभिजीत बनर्जी को सपत्नीक वैश्विक गरीबी को कम करने के क्षेत्र में उनके काम के लिए प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.

नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी
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Published : Oct 16, 2019, 7:23 AM IST

मुंबई: भारतीय-अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी, उनकी फ्रांसीसी पत्नी एस्तेर डुफ्लो और साथी अमेरिकी प्रोफेसर माइकल क्रेमर को अर्थशास्त्र में 2019 के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया. अभिजीत बनर्जी को मिले इस पुरस्कार से पूरी दुनिया के भारतीयों में खुशी की लहर है. खास बात यह है कि नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी का महाराष्ट्र से एक खास जुड़ाव है. दरअसल, 58 वर्षीय अभिजीत बनर्जी का जन्म 1961 में महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में हुआ था. उन्होंने निर्मला और विनायक बनर्जी के घर जन्म लिया था.

पढ़ें:- भारतीय अर्थव्यवस्था डगमगाती स्थिति में है : अभिजीत बनर्जी

उन्होंने कोलकाता में प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की और परास्नातक की पढ़ाई उन्होंने प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से की. इसके बाद वह अपने 'सूचना अर्थशास्त्र में निबंध' पर अपने डॉक्टरेट के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय गए. वह वर्तमान में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में फोर्ड फाउंडेशन इंटरनेशनल के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं.

आपको बता दें, तीनों विजेताओं को वैश्विक गरीबी को कम करने के लिए उनके प्रयोगात्मक दृष्टिकोण के लिए इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा गया है. इन तीनों ने कई देशों के गरीब क्षेत्रों में काफी काम किया है. इन देशों में भारत, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका शामिल हैं.

नोबेल प्रशस्ति पत्र में कहा गया, पुरस्कार विजेताओं के शोध निष्कर्ष और उनके नक्शेकदम पर चलने वाले शोधकर्ताओं के निष्कर्ष ने गरीबी से लड़ने की हमारी क्षमता में नाटकीय रूप से सुधार किया है. उनके अध्ययन के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में, पांच मिलियन से अधिक भारतीय बच्चों को लाभ हुआ है. इसी के साथ निवारक स्वास्थ्य देखभाल के लिए भारी सब्सिडी की व्यवस्था को कई देशों में लागू किया गया है.

प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन (PEF) NGO के सह-संस्थापक माधव चव्हाण ने बताया कि 1998-2000 के बीच अभिजीत बनर्जी उनके द्वारा सह-स्थापित 'अब्दुल लतीफ जमील गरीबी एक्शन लैब (Abdul Latif Jameel Poverty Action Lab)' के माध्यम से PEF के संपर्क में आए.

चव्हाण ने बताया कि बनर्जी ने ही विकास के क्षेत्र में रैंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल (RTC) लागू किया था. उन्होंने अपना पहला अध्ययन हमारे लिए मुंबई में सिविक स्कूल के छात्रों के लिए और वड़ोदरा (गुजरात) में बच्चों के पढ़ने की क्षमता और अंकगणित में सुधार करने के लिए किया था.

पिछले लगभग दो दशकों में, PEF के लिए ऐसे ही शैक्षिक और सामुदायिक-आधारित RTC कार्यक्रम भारत के विभिन्न भागों में किया गया. इनमें उत्तर प्रदेश के जौनपुर, सीतापुर और उन्नाव, हरियाणा के महेंद्रगढ़ और बिहार के राज्य सरकार के साथ एक संयुक्त पहल थी. PEF की सीईओ रुक्मिणी बनर्जी ने बताया कि विभिन्न आयु समूहों के लिए कार्यक्रम पर हुआ अध्ययन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों में प्रकाशित हुआ है.

डुफ्लो-बैनर्जी ने अन्य सह-लेखकों के साथ दर्जनों शोध पत्र लिखे हैं जोकि प्रकाशित भी हुए हैं. उन्होंने आगामी 'Good Economics for Hard Times' पुस्तक (2019) को संयुक्त रूप से लिखा है. इनकी नवीनतम पुस्तक 'What the Economy Needs Now' (2019) है, जिसे गीता गोपीनाथ, रघुराम राजन और मिहिर एस शर्मा के साथ सह-संपादित किया गया है.

इसके अलावा बनर्जी ने वृत्तचित्र फिल्मों का सह-निर्देशन भी किया है. इनमें The Magnificent Journey: Times and Tales of Democracy (सह-निर्देशक रानू घोष) और 2006 में आई The Name Of The Disease (सह-निर्देशक अरुंधति तुली-बनर्जी, बप्पा सेन, कोंकणा सेन-शर्मा और सुमित घोष) शामिल हैं.

मुंबई: भारतीय-अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी, उनकी फ्रांसीसी पत्नी एस्तेर डुफ्लो और साथी अमेरिकी प्रोफेसर माइकल क्रेमर को अर्थशास्त्र में 2019 के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया. अभिजीत बनर्जी को मिले इस पुरस्कार से पूरी दुनिया के भारतीयों में खुशी की लहर है. खास बात यह है कि नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी का महाराष्ट्र से एक खास जुड़ाव है. दरअसल, 58 वर्षीय अभिजीत बनर्जी का जन्म 1961 में महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में हुआ था. उन्होंने निर्मला और विनायक बनर्जी के घर जन्म लिया था.

पढ़ें:- भारतीय अर्थव्यवस्था डगमगाती स्थिति में है : अभिजीत बनर्जी

उन्होंने कोलकाता में प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की और परास्नातक की पढ़ाई उन्होंने प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से की. इसके बाद वह अपने 'सूचना अर्थशास्त्र में निबंध' पर अपने डॉक्टरेट के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय गए. वह वर्तमान में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में फोर्ड फाउंडेशन इंटरनेशनल के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं.

आपको बता दें, तीनों विजेताओं को वैश्विक गरीबी को कम करने के लिए उनके प्रयोगात्मक दृष्टिकोण के लिए इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा गया है. इन तीनों ने कई देशों के गरीब क्षेत्रों में काफी काम किया है. इन देशों में भारत, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका शामिल हैं.

नोबेल प्रशस्ति पत्र में कहा गया, पुरस्कार विजेताओं के शोध निष्कर्ष और उनके नक्शेकदम पर चलने वाले शोधकर्ताओं के निष्कर्ष ने गरीबी से लड़ने की हमारी क्षमता में नाटकीय रूप से सुधार किया है. उनके अध्ययन के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में, पांच मिलियन से अधिक भारतीय बच्चों को लाभ हुआ है. इसी के साथ निवारक स्वास्थ्य देखभाल के लिए भारी सब्सिडी की व्यवस्था को कई देशों में लागू किया गया है.

प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन (PEF) NGO के सह-संस्थापक माधव चव्हाण ने बताया कि 1998-2000 के बीच अभिजीत बनर्जी उनके द्वारा सह-स्थापित 'अब्दुल लतीफ जमील गरीबी एक्शन लैब (Abdul Latif Jameel Poverty Action Lab)' के माध्यम से PEF के संपर्क में आए.

चव्हाण ने बताया कि बनर्जी ने ही विकास के क्षेत्र में रैंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल (RTC) लागू किया था. उन्होंने अपना पहला अध्ययन हमारे लिए मुंबई में सिविक स्कूल के छात्रों के लिए और वड़ोदरा (गुजरात) में बच्चों के पढ़ने की क्षमता और अंकगणित में सुधार करने के लिए किया था.

पिछले लगभग दो दशकों में, PEF के लिए ऐसे ही शैक्षिक और सामुदायिक-आधारित RTC कार्यक्रम भारत के विभिन्न भागों में किया गया. इनमें उत्तर प्रदेश के जौनपुर, सीतापुर और उन्नाव, हरियाणा के महेंद्रगढ़ और बिहार के राज्य सरकार के साथ एक संयुक्त पहल थी. PEF की सीईओ रुक्मिणी बनर्जी ने बताया कि विभिन्न आयु समूहों के लिए कार्यक्रम पर हुआ अध्ययन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों में प्रकाशित हुआ है.

डुफ्लो-बैनर्जी ने अन्य सह-लेखकों के साथ दर्जनों शोध पत्र लिखे हैं जोकि प्रकाशित भी हुए हैं. उन्होंने आगामी 'Good Economics for Hard Times' पुस्तक (2019) को संयुक्त रूप से लिखा है. इनकी नवीनतम पुस्तक 'What the Economy Needs Now' (2019) है, जिसे गीता गोपीनाथ, रघुराम राजन और मिहिर एस शर्मा के साथ सह-संपादित किया गया है.

इसके अलावा बनर्जी ने वृत्तचित्र फिल्मों का सह-निर्देशन भी किया है. इनमें The Magnificent Journey: Times and Tales of Democracy (सह-निर्देशक रानू घोष) और 2006 में आई The Name Of The Disease (सह-निर्देशक अरुंधति तुली-बनर्जी, बप्पा सेन, कोंकणा सेन-शर्मा और सुमित घोष) शामिल हैं.

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