लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधान परिषद में नेतृत्व के लिए इस बार कांग्रेस का कोई भी नेता नहीं बचेगा. वजह है कि विधान परिषद चुनाव में कांग्रेस को कहीं जीत मिलती नजर नहीं आ रही है. वर्तमान में कांग्रेस का एक ही विधान परिषद सदस्य है, वही नेता विधान परिषद भी है. लेकिन अब एमएलसी दीपक सिंह का कार्यकाल भी जुलाई माह में खत्म हो रहा है. लिहाजा कांग्रेस के लिए विधान परिषद में कोई भी नेता पार्टी का पक्ष रखने वाला नहीं रहेगा. ऐसा होने पर विधान परिषद पहली बार बिना किसी कांग्रेसी नेता की मौजूदगी में चलेगी.
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 36 सीटों पर विधान परिषद का चुनाव होना है. इस चुनाव के लिए नामांकन भी शुरू हो गया है. पहले चरण के लिए नामांकन 21 मार्च तक किए जा सकेंगे. इसके बाद नामांकन पत्रों की जांच होगी और नाम वापस लिए जा सकेंगे. उत्तर प्रदेश की बात करें तो विधान परिषद में कुल 100 सीटें हैं. विधान परिषद का नियम है कि विधानसभा के एक तिहाई से ज्यादा सदस्य विधान परिषद में नहीं होने चाहिए. उत्तर प्रदेश में 403 विधानसभा सदस्य हैं, इसका सीधा मतलब है कि यूपी विधान परिषद में ज्यादा से ज्यादा 134 सदस्य हो सकते हैं. वहीं विधान परिषद में कम से कम 40 सदस्य होना भी अनिवार्य हैं.
गौर करने वाली बात कि उच्च सदन में सत्ताधारियों का ही बोलबाला रहता है. आमतौर पर यह चुनाव सत्ता का ही माना जाता है. कांग्रेस पार्टी की बात करें तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस पार्टी की स्थिति बिगड़ती जा रही है. पार्टी के महज दो ही विधायक इस बार जीत पाए हैं. ऐसे में कांग्रेस पार्टी की तरफ से विधान परिषद में किसी भी प्रत्याशी को जिता पाना संभव नहीं है. इतना ही नहीं स्थानीय स्तर पर भी कांग्रेस पार्टी इतनी मजबूत नहीं है कि उसे कहीं से भी अपने प्रत्याशी को जीत मिलती नजर आए. इससे साफ है कि विधान परिषद में इस बार कांग्रेस का कोई नेतृत्वकर्ता नहीं होगा.
दीपक सिंह हैं कांग्रेस के एकमात्र एमएलसी
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के एकमात्र एमएलसी दीपक सिंह हैं, जो पूर्व में दो बार ब्लॉक प्रमुख के रूप में चुने गए थे. उन्हें साल 1995-2005 में शाहगढ़ ब्लॉक अमेठी से ब्लॉक प्रमुख चुना गया था. कैडर स्तर पर पार्टी को मजबूत करने के लिए उन्हें साल 2002 में पार्टी के सचिव के रूप में नियुक्त किया गया. दीपक सिंह उत्तर प्रदेश युवा कांग्रेस और एनएसयूआई के प्रभारी भी रह चुके हैं. माना जाता है कि उनके कार्यकाल के दौरान दोनों मोर्चों को मजबूती मिली थी.
साल 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दीपक सिंह को केंद्रीय रेल मंत्रालय के पीएससी अध्यक्ष के रूप में राज्य मंत्री नियुक्त किया गया था, लेकिन उन्होंने केंद्र में एनडीए सरकार के गठन के तुरंत बाद रेल किराया में बढ़ोतरी के विरोध में पद से इस्तीफा दे दिया था. साल 2016 में उत्तर प्रदेश एमएलसी चुनाव में दीपक सिंह कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े. चुनाव आसान नहीं था, क्योंकि पार्टी के पास संख्या की कमी थी. दीपक सिंह ने एक बार फिर 12वें दौर में भाजपा के उपाध्यक्ष को हराकर अपनी धाक जमा दी. इसके बाद उन्हें 18 जून 2018 को यूपी विधान परिषद के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया.
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विधायक के बराबर होता है विधान परिषद सदस्य का दर्जा
विधान परिषद सदस्य का दर्जा विधायक के ही बराबर होता है. विधान परिषद के सदस्य का कार्यकाल 6 साल होता है. चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम उम्र 30 साल होनी चाहिए. इस सदन के लिए एक तिहाई सदस्यों को विधायक चुनते हैं और इसके अलावा एक तिहाई सदस्यों को नगर निगम, नगर पालिका, जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत के सदस्य चुनते हैं. इसके अलावा 1/12 सदस्यों को शिक्षक और 1/12 सदस्यों को रजिस्टर्ड ग्रेजुएट चुनते हैं.
यूपी में विधान परिषद के 100 में से 38 सदस्य का चुनाव विधायक करते हैं. 36 सदस्यों को स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र के तहत जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य और नगर निगम या नगर पालिका के निर्वाचित प्रतिनिधि चुनते हैं. उत्तर प्रदेश के राज्यपाल 10 मनोनीत सदस्यों को नॉमिनेट करते हैं. इसके साथ ही आठ-आठ सीटें शिक्षक निर्वाचन और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के तहत आती हैं.
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