लखनऊ: उत्तर प्रदेश में कुछ शर्तों के साथ 19 अक्टूबर से कक्षा 9 से 12 तक के विद्यालयों को खोले जाने का आदेश जारी किया जा चुका है. स्कूल प्रबंधकों को कोविड-19 की गाइडलाइन का सख्ती के साथ पालन करना होगा, लेकिन राजधानी के राष्ट्रीय व अनुदानित विद्यालयों ने सैनिटाइजेशन की व्यवस्था करने में असमर्थता जताई है. वहीं डीएम अभिषेक प्रकाश ने एसओपी के नियमों का पालन न करने पर स्कूलों के खिलाफ कोविड-19 एपिडेमिक 1897 के अंतर्गत कठोर कार्रवाई करने का निर्देश दिया है.
बजट के अभाव में स्कूलों को सैनिटाइज कराने का फंसा पेंच. गौरतलब है कि शासन की ओर से 19 अक्टूबर से माध्यमिक विद्यालय खोले जाने की गाइडलाइन जारी हो चुकी है. इसके तहत रोजाना हर शिफ्ट से पहले क्लास, कुर्सी-मेज आदि को सैनिटाइज करने का निर्देश दिया गया है. बकायदा शिक्षा विभाग के अधिकारियों से इसके खर्च का इंतजाम करने को कहा गया है, लेकिन अब सबसे बड़ी समस्या यह आ रही है कि राजकीय विद्यालय को वार्षिक रख-रखाव समेत मरम्मत का बजट मिलता है. लेकिन अनुदानित विद्यालयों को मात्र शिक्षकों का वेतन दिया जाता है. ऐसे में अनुदानित स्कूल प्रशासन सैनिटाइजेशन का अतिरिक्त खर्च उठाने को तैयार नहीं है. वहीं उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा की ओर से स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि फिलहाल इसके लिए बजट का कोई प्रावधान नहीं है. राजकीय विद्यालय अपने उपलब्ध बजट से ही कोरोना से बचाव के इंतजाम की व्यवस्था करेंगे.
अनुदानित स्कूलों के लिए कोविड-19 प्रोटोकॉल बना मुसीबतराजधानी में 51 राजकीय और 101 अनुदानित विद्यालय हैं. दरअसल अनुदानित स्कूलों में नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत कक्षा 8 तक की फीस नहीं ली जाती है. सिर्फ शिक्षकों का वेतन ही आता है. ऐसे में स्कूल प्रबंधन अन्य खर्च समेत किसी तरह बिजली का बिल जमा कर पा रहे हैं. अब कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए स्कूलों में सैनिटाइजेशन का का निर्देश समस्या बन गया है. स्कूल प्रशासन सैनिटाइजेशन का खर्चा उठाने को तैयार नहीं है, बल्कि इसके लिए सरकार से ग्रांट की मांग कर रहे हैं.
राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत 50 हजार का बजटप्राचार्य धीरेंद्र मिश्र ने बताया कि सैनिटाइजेशन के नाम पर कोई भी अलग से बजट नहीं दिया जा रहा है, लेकिन राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की तरफ से 50 हजार का बजट मिलता है. इससे सैनिटाइजेशन की प्रक्रिया को किया जा सकता है, लेकिन अनुदानित स्कूलों के मैनेजरों को अन्य फंड से सैनिटाइजेशन की व्यवस्था करनी होगी. उन्होंने बताया कि उनके विद्यालय में 1188 बच्चों में 230 बच्चों के अभिभावकों की तरफ से सहमति पत्र दिया जा चुका है.
अभिभावकों पर सहमति पत्र देने का दबावअभिभावक विचार परिषद के अध्यक्ष राकेश सिंह ने आरोप लगाया कि स्कूल संचालक जबरदस्ती अभिभावकों पर सहमति पत्र देने का दबाव बना रहे हैं. इनको बच्चों की जिंदगी से नहीं, बल्कि फीस से प्यार है, जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती है स्कूलों को नहीं खोला जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में कुछ शिक्षा माफिया सक्रिय हो गए हैं.
स्कूलों को अपनाने होंगे यह नियमस्कूल कैंपस को दो बार सैनिटाइज किया जाएगा. इसमें प्रतिदिन हजार रुपए तक खर्च आने की संभावना है. इसके अलावा स्कूल में थर्मल स्क्रीनिंग होगी. साबुन या सैनिटाइजर से हैंड वॉश करने के बाद ही किसी को अंदर जाने दिया जाएगा. 6 फुट की दूरी मास्क है जरूरी नियम का पालन शिक्षकों, कर्मियों और बच्चों को अनिवार्य रूप से करना होगा. इसके अतिरिक्त खर्च के बोझ के कारण ही उनके लिए मौजूदा संसाधनों में यह संभव नहीं है.
50 फ़ीसदी बच्चे ही ले सकेंगे क्लासदरअसल स्कूलों को सशर्त खोलने का शासनादेश जारी किया जा चुका है. पहली शिफ्ट में कक्षा 9 व 10 और दूसरी शिफ्ट में कक्षा 11 और 12 की कक्षाएं चलेंगी. बच्चों को स्कूल भेजने के लिए अभिभावकों की सहमति लेनी होगी. एक दिन में प्रत्येक क्लास के 50 फ़ीसदी बच्चों को ही बुलाया जाएगा. बाकी 50 फीसदी बच्चे अगले दिन आएंगे. किसी भी बच्चे को स्कूल आने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा. उसे ऑनलाइन कक्षा पढ़ने का विकल्प दिया जाएगा. छुट्टी के समय सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा.