लखनऊ: नदी में प्रदूषण स्तर की मॉनिटरिंग करने वाली नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल मॉनिटरिंग कमेटी ने गोमती में बढ़ते प्रदूषण की बेहद डरावनी तस्वीर पेश की है. कमेटी ने नदी में प्रदूषण का अध्ययन करने के बाद ट्रिब्यूनल को जो सिफारिश भेजी है उसमें कहा है कि गोमती में प्रदूषण रोकने में सरकार पूरी तरह फेल है. ऐसे में सरकार पर 100 करोड़ रुपये का जुर्माना अनुपालन गारंटी के रूप में लगाया जाए. प्रदेश सरकार दो साल में अगर गोमती को स्वच्छ कर देती है तो यह राशि लौटाई जा सकती है.
- कमेटी ने नगर निगम, उत्तर प्रदेश जल निगम और गोमती से जुड़े सभी नगर निकायों पर भी जुर्माना लगाया जाए.
- पीलीभीत से निकलने वाली नदी 900 किमी की यात्रा के दौरान नाला बनकर रह गई है.
- यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की कमेटी की है.
- लखनऊ नगर निगम की 34,75,212 जनसंख्या से प्रतिदिन 2,46,375 लाख लीटर सीवेज का उत्पादन हो रहा है, जबकि 144349 लाख लीटर सीवेज ही उपचारित किया जा रहा है.
- हर रोज 102026 लाख लीटर सीवेज और गंदा पानी गोमती में जा रहा है.
समिति ने दिए निर्देश
- समिति ने 11 जिलों के कलेक्टर को यह निर्देश दिया है कि वह लोगों को सूचित करें कि गोमती नदी में तब तक स्नान न करें जब तक यह प्रदूषण से मुक्त न हो.
- इसके किनारों पर सुबह टहलने और डुबकी लगाने से बचें.
- 11 जिलों के कलेक्टर जल निगम या अन्य माध्यम से नमामि गंगा परियोजना के तहत अपनी टीपीआर भेजें.
- सचिव नगर विकास, सचिव पर्यावरण और सचिव सिंचाई की एक समिति बनाई जाए जो निर्देशों का निश्चित समय में क्रियान्वयन करें और प्रमुख सचिव नगर विकास इसका पर्यवेक्षण करें.
- उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नदी का संरक्षण करने में नाकाम रहा है. इसलिए उस पर भी 6 करोड़ 84 लाख 75 हजार रुपये का पर्यावरणीय हर्जाना लगाया जाए.
- उत्तर प्रदेश जल निगम पर भी तीन करोड़ का पर्यावरण हर्जाना लगाया जाए.
- 11 जिलों के नगर आयुक्त, जिला मैजिस्ट्रेट और अधिशासी अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि गोमती नदी में कोई ठोस अथवा जैव चिकित्सा अपशिष्ट न गिरने पाए.
- एसटीपी की स्थापना में अत्यधिक समय लगता है, ऐसे में उत्तर प्रदेश जल निगम और 11 जिलों के जिला कलेक्टर को निर्देशित किया जाए कि वह दो माह के अंदर बायोरेमेडीएशन प्रोजेक्ट उचित तकनीक और टेक्नोलॉजी के साथ लगवाने की व्यवस्था करें.