लखनऊ: उत्तर प्रदेश में तकरीबन 150 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाने वाले मुसलमानों को गोलबंद करने के लिए सियासी पार्टियां जोड़-तोड़ में जुटी हैं. समाजवादी पार्टी के पक्ष में अब तक रहे इन वोटों पर इस चुनाव में सभी की निगाहें हैं. हालांकि, इस बार असदुद्दीन ओवैसी के चुनावी मैदान में उतरने से मुसलमान कितना टूटता है और 2022 विधानसभा चुनाव में ओवैसी इफेक्ट कितना काम करता है, इसको लेकर ईटीवी भारत ने मुस्लिम धर्मगुरुओं व मुस्लिम स्कॉलर्स से उनकी राय जानी.
एआईएमआईएम (AIMIM) चीफ व हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी यूपी विधानसभा चुनाव में जमकर ताल ठोक रहे हैं. अपनी जोशीली तकरीरों और बयानों से ओवैसी मुसलमानों के बीच अपने लिए सियासी जमीन भी तलाश रहे हैं. हालांकि, मुसलमान ओवैसी को अपना नेता मानते हैं या नहीं इस पर शिया धर्मगुरु और शिया चांद कमेटी के अध्यक्ष मौलाना सैफ अब्बास का कहना है कि मुसलमानों की बड़ी तादाद ओवैसी को अपना नेता नहीं मानती है.
हालांकि, मुस्लिम स्कॉलर कल्बे सिबतेन नूरी का मानना है कि 90 फीसद मुसलमान ओवैसी को यूपी में अपना नेता नहीं मानते हैं. वहीं, काजी ए शहर मुफ्ती अबुल इरफान मियां फिरंगी महली का कहना है कि ओवैसी पढ़े लिखे और मुसलमानों की आवाज उठाने वाले नेता जरूर हैं.
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लेकिन यूपी में उनका जनाधार उतना नहीं है, जिससे साफ होता है कि अभी मुसलमान ओवैसी को अपना नेता नहीं मानते हैं. मुस्लिम स्कॉलर मोहम्मद मतीन का इस सवाल पर कहना था कि ओवैसी सिर्फ अल्पसंख्यक संबंधित नेता हैं.
यूपी चुनाव में ओवैसी के आने से कितना पड़ेगा फर्क
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तमाम सेकुलर पार्टियां मुस्लिम वोट को रिझाने में लगी है. लेकिन ओवैसी के आने से इन पार्टियों को कितना फर्क पढ़ेगा, इस सवाल पर मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि ओवैसी के आने से कोई फर्क इसलिए नहीं पड़ेगा, क्योंकि इस बार जनता बहुत जागरूक हो गई है. मौलाना ने कहा कि जनता ने बिहार का भी इलेक्शन देखा है और बंगाल का भी.
अब यही जनता यूपी में वोट करने जा रही है. इसलिए धर्म के ऊपर वोट नहीं, बल्कि बेरोजगार और महंगाई के मुद्दे पर वोट दिया जाएगा. डॉक्टर कल्बे सिब्तेन नूरी का इस पर कहना था कि ओवैसी को एक पार्टी पर्दे के पीछे से समर्थन करती है. क्योंकि उनके चुनाव में आने से सेकुलर पार्टियों को नुकसान और एक विशेष पार्टी को फायदा होता है.
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वहीं, मुफ्ती अबुल इरफान मियां फिरंगी महली ने कहा कि ओवैसी को यह देखना होगा कि अगर कहीं उनको कामयाबी मिल सकती है तो सीमित सीटों पर ही चुनाव लड़ें, जिससे दूसरी सेकुलर पार्टियों को ज्यादा नुकसान न हो. मुस्लिम स्कॉलर मोहम्मद मतीन का मानना है कि ओवैसी से यूपी चुनाव में दूसरी पार्टियों को कुछ हद तक जरुर फर्क पड़ेगा.
क्या ओवैसी के बयानों से बढ़ेगा ध्रुवीकरण ?
अपने जोशीले बयानों और तकरीरों के चलते तेजी से देश की सियासत में पहचान बनाने वाले असदुद्दीन ओवैसी भले ही भीड़ इकट्ठा कर लेते हो, लेकिन क्या उनके कठोर बयानों से सियासत में ध्रुवीकरण बढ़ता है और इसका फायदा किसको होता है. इस पर मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि जितना भी कठोर बयान या तकरीरों से वोटरों को बरगलाने की कोशिश कर ली जाए, लेकिन जनता जागरूक हो चुकी है और इन सब चक्करों में फसने वाली नहीं है.
डॉ. कल्बे सिब्तेन नूरी का मानना है कि ओवैसी के कठोर बयानों से बिल्कुल ध्रुवीकरण होता है और इसका सीधा नुकसान मुसलमानों को होता है. शहर के काजी अबुल इरफान मियां फिरंगी महली का कहना है कि ओवैसी को सोच समझकर बयान देना चाहिए.
लेकिन अगर मुसलमानों के मसले मसायल पर कोई बोल रहा है और जवाब दे रहा है तो कोई बुरी बात नहीं है. मुस्लिम स्कॉलर मतीन का मानना है कि ओवैसी के कठोर बयान से ध्रुवीकरण बढ़ता है और मुसलमानों को इसका नुकसान उठाना पड़ता है.
यूपी की राजनीति में मुसलमानों को कितना मिल रहा प्रतिनिधित्व
मुस्लिम धर्मगुरु और स्कॉलर इस बात को एकमत से मानते हैं कि यूपी में तकरीबन 150 सीटों पर निर्णायक भूमिका में रहने वाले मुसलमानों को उत्तर प्रदेश में समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है. मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि मुसलमानों को राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व नहीं मिलना उनकी खुद की चाहत की वजह से है. उन्होंने कहा कि अगर मुसलमान चाहे तो वे प्रतिनिधित्व ले सकता है.
लेकिन पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा है. कल्बे सिब्तेन नूरी का कहना है कि यूपी की राजनीति में मुसलमानों को समुचित प्रतिनिधित्व मिलें या न मिलें लेकिन मुसलमानों के मुद्दों पर बात होनी चाहिए.
मुसलमानों की शिक्षा और रोजगार में हिस्सेदारी मिलें, क्योंकि प्रतिनिधि खुद अपने लिए काम करेगा और कौम वहीं रह जाएगी. इधर, मोहम्मद मतीन का कहना है कि जब मुसलमान अपनी सियासी पार्टी के साथ ही नहीं है तो कैसे उनको यूपी में प्रतिनिधित्व मिलेगा.
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