लखनऊ: यूपी बोर्ड ने शनिवार को 10वीं और 12वीं का परीक्षा परिणाम घोषित कर दिया. इस बार दोनों कक्षाओं की परीक्षा में हिंदी विषय में फेल होने वाले विद्यार्थियों की संख्या पिछले कई सालों की मुकाबले सबसे अधिक है. इस बार दोनों कक्षाओं में हिंदी विषय की परीक्षा में 7 लाख से अधिक विद्यार्थी फेल हुए हैं.
वहीं करीब दो लाख से अधिक विद्यार्थी हिंदी विषय की परीक्षा में शामिल ही नहीं हुए. हिंदी विषय में विद्यार्थियों के इतने बड़े पैमाने पर फेल होने और हिंदी विषय से जुड़े तमाम मुद्दों पर ईटीवी भारत ने लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रोफेसर पवन अग्रवाल से खास बातचीत की.
हिंदी के साथ हो रहा सौतेला व्यवहार
बातचीत में प्रो. पवन अग्रवाल ने कहा कि हम अपने घर में ही हिंदी के साथ सौतेला व्यवहार करते हैं. बच्चा जब बोलना शुरू करता है, तब से ही उसे अंग्रेजी बोलने के लिए प्रेरित किया जाता है. हमारे घर आने वाले मेहमान भी बच्चे से अंग्रेजी कविता सुनाने की बात करते हैं.
उन्होंने कहा कि घर से लेकर स्कूल तक बच्चों के उनके सामने एक ऐसा माहौल बनाया जाता है कि हिंदी बोलने वाला, हिंदी पढ़ने वाला, लिखने वाला पिछड़ जाता है. अंग्रेजी बोलने वाला बच्चा अच्छा माना जाता है. वह भले ही टूटी-फूटी अंग्रेजी ही क्यों ना बोले. इन्हीं सब कारणों के चलते बच्चों में हिंदी के प्रति लगाव कम होता जा रहा है.
शिक्षा व्यवस्था भी इसके लिए है जिम्मेदार
प्रो. अग्रवाल ने बताया कि हिंदी के प्रति बच्चों में कम हो रहे लगाव के लिए अकेले अभिभावक ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि इसके लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था भी जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर सरकार हिंदी के लिए प्रयासरत है, लेकिन जो कदम उठाया जाना चाहिए, वह नहीं किया जा रहा है.
प्रो. पवन अग्रवाल ने कहा कि कहीं न कहीं कमी जरूर है, जिस कारण हिंदी के विद्यार्थी दूर होते जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि बच्चों में हिंदी के प्रति लगाव पैदा करने के लिए अभिभावकों और शिक्षकों को प्रयास करना होगा. वहीं शिक्षकों से कहीं ज्यादा सरकार को आगे आकर महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे. योग्य शिक्षकों की भर्ती का मामला हो या फिर मानक के हिसाब से हिंदी के शिक्षकों की तैनाती का हो.