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पीढ़ियों से कैथेड्रल चर्च के क्रूस पर स्टार लगा रहे मोहम्मद अली

राजधानी लखनऊ में मोहम्मद अली भाईचारे की मिसाल पेश कर रहे हैं. कई दशकों से उनका परिवार कैथेड्रल चर्च के क्रूस पर स्टार लगाने का काम कर रहा है.

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Published : Dec 20, 2020, 4:00 PM IST

285 फीट की ऊंचाई पर लगता है स्टार.
285 फीट की ऊंचाई पर लगता है स्टार.

लखनऊ: भारत देश में अनेकता में एकता के प्रतीक की कई कहानियां सुनने को मिल जाएंगी. ऐसी ही एक कहानी राजधानी की कैथेड्रल चर्च की भी है, जहां पीढ़ियों से मोहम्मद अली और उनका परिवार चर्च के क्रूस पर स्टार लगाते आ रहे हैं. देखें ये खास रिपोर्ट...

पूरी दुनिया में क्रिसमस की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. वहीं, राजधानी की सभी चर्चों को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है. चर्च के क्रूस पर स्टार की बहुत महत्वता होती है. राजधानी की कैथेड्रल चर्च में स्टार लगाने के लिए मोहम्मद अली हर साल आते हैं. यह चर्च कैथोलिक क्रिश्चियन समुदाय की सबसे पुरानी और पहली चर्च है. इसका निर्माण सन 1860 में किया गया था. वहीं, करीब 110 साल बाद 1970 में इसे तोड़कर दोबारा से बनवाया गया, जिसमें अधिक से अधिक संख्या में लोग प्रार्थना के लिए आते हैं. जमीन से क्रूस तक की ऊंचाई लगभग 285 फीट है.

जानकारी देते इलेक्ट्रीशियन मोहम्मद अली.

चर्च के क्रूस पर स्टार लगाने वाले मोहम्मद अली ने बताया कि क्रूस पर स्टार लगाने का काम उनके पिताजी ने सन 1980 के दर्शक से शुरू किया था. इसके बाद उनके बड़े भाई ने काम संभाला. उन्होंने खुद साल 2004 से चर्च के क्रूस पर स्टार लगाना शुरू किया.

285 फीट की ऊंचाई पर लगता है स्टार.
285 फीट की ऊंचाई पर लगता है स्टार.

मोहम्मद अली ने बताया कि राजधानी की कैथेड्रल चर्च में सभी धर्मों के लोग आते हैं. इस चर्च में सभी की आस्था है. वह भी परिवार संघ यहां पर आते हैं. उनका कहना है कि चर्च में सच्चे मन से प्रार्थना करने वालों की दुआ जरूर कबूल होती है. उनका कहना है कि सबसे बड़ी बात है कि इस चर्च द्वारा संचालित एक स्कूल भी है. इस स्कूल में सभी धर्मों के लोगों के बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं.

उन्होंने बताया कि क्रूस पर स्टार लगाने के लिए उन्हें 6 घंटे दिए जाते हैं. उनके लिए सूरज की रोशनी बहुत ही महत्वपूर्ण होती है. साथ ही इतनी ऊंचाई पर स्टार लगाने में कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है.

लखनऊ: भारत देश में अनेकता में एकता के प्रतीक की कई कहानियां सुनने को मिल जाएंगी. ऐसी ही एक कहानी राजधानी की कैथेड्रल चर्च की भी है, जहां पीढ़ियों से मोहम्मद अली और उनका परिवार चर्च के क्रूस पर स्टार लगाते आ रहे हैं. देखें ये खास रिपोर्ट...

पूरी दुनिया में क्रिसमस की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. वहीं, राजधानी की सभी चर्चों को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है. चर्च के क्रूस पर स्टार की बहुत महत्वता होती है. राजधानी की कैथेड्रल चर्च में स्टार लगाने के लिए मोहम्मद अली हर साल आते हैं. यह चर्च कैथोलिक क्रिश्चियन समुदाय की सबसे पुरानी और पहली चर्च है. इसका निर्माण सन 1860 में किया गया था. वहीं, करीब 110 साल बाद 1970 में इसे तोड़कर दोबारा से बनवाया गया, जिसमें अधिक से अधिक संख्या में लोग प्रार्थना के लिए आते हैं. जमीन से क्रूस तक की ऊंचाई लगभग 285 फीट है.

जानकारी देते इलेक्ट्रीशियन मोहम्मद अली.

चर्च के क्रूस पर स्टार लगाने वाले मोहम्मद अली ने बताया कि क्रूस पर स्टार लगाने का काम उनके पिताजी ने सन 1980 के दर्शक से शुरू किया था. इसके बाद उनके बड़े भाई ने काम संभाला. उन्होंने खुद साल 2004 से चर्च के क्रूस पर स्टार लगाना शुरू किया.

285 फीट की ऊंचाई पर लगता है स्टार.
285 फीट की ऊंचाई पर लगता है स्टार.

मोहम्मद अली ने बताया कि राजधानी की कैथेड्रल चर्च में सभी धर्मों के लोग आते हैं. इस चर्च में सभी की आस्था है. वह भी परिवार संघ यहां पर आते हैं. उनका कहना है कि चर्च में सच्चे मन से प्रार्थना करने वालों की दुआ जरूर कबूल होती है. उनका कहना है कि सबसे बड़ी बात है कि इस चर्च द्वारा संचालित एक स्कूल भी है. इस स्कूल में सभी धर्मों के लोगों के बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं.

उन्होंने बताया कि क्रूस पर स्टार लगाने के लिए उन्हें 6 घंटे दिए जाते हैं. उनके लिए सूरज की रोशनी बहुत ही महत्वपूर्ण होती है. साथ ही इतनी ऊंचाई पर स्टार लगाने में कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है.

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