लखनऊ : राजधानी लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (पीजीआई) में सोमवार को ऑपरेशन थियेटर में आग लगने से दो मरीजों की मौत हो गई. फायर विभाग की जांच में सामने आया है कि इन दोनो ही मरीजों की जान बचाई जा सकती थी, लेकिन ऑपरेशन कर रहे डॉक्टर और स्टाफ की नासमझी और लापरवाही के चलते दोनों की जान चली गई. फिलहाल सूबे के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने इस पूरे मामले की जांच प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा को सौंपी है.
एसजीपीजीआई में हुए अग्निकांड की शुरुआती जांच बड़ा खुलासा हुआ है. मौके पर आग पर काबू पाने गए फायर विभाग के अधिकारी के मुताबिक जिन दो मरीजों की इस अग्निकांड में जान गई है वह बचाई जा सकती थी. अधिकारी के मुताबिक एसजीपीजीआई में आग लगने की सूचना पर जब वो अपने दमकल कर्मचारियों के साथ पहुंचे तो उन्हें किसी भी स्टाफ की ओर से यह नहीं बताया गया कि ऑपरेशन थियेटर में कोई मरीज फंसा हुआ है. जब ऑपरेशन थियेटर में पहुंचे तो वहां एक महिला मरीज और एक बच्चे को एनेस्थीसिया दिया गया था और उनकी सर्जरी होने जा रही थी, वह बेहोशी की स्थित में वहीं आग में फंसे हुए थे. जिन्हें तत्काल रेस्क्यू तो किया गया, लेकिन तब तक उनकी मौत हो चुकी थी.
चीफ फायर ऑफिसर मंगेश कुमार ने बताया कि जिस वक्त अस्पताल के ओटी में आग लगी थी, उस दौरान वहां मौजूद डॉक्टर और स्टाफ को सबसे पहले उन दोनों मरीजों को शिफ्ट करना था. जिन्हें एनेस्थीसिया दिया गया था, क्योंकि वे खुद उठ भी नहीं सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ऐसे में थोड़ी से लापरवाही और न समझी से महिला और उसके मासूम बच्चे की जान चली गई. पीजीआई प्रशासन के मुताबिक संस्थान के ऑपरेशन थियेटल-1 में मॉनिटर में स्पार्क होने के कारण आग लग गई थी. जिसमें एक महिला रोगी, जिसकी एन्डोसर्जरी ओटी में सर्जरी चल रही थी, उसकी मौत हो गई. वहीं एक बच्चे जिसकी हार्ट सर्जरी हो रही थी. धुएं के कारण वहां से निकाल कर डायलिसिस आईसीयू में लाकर उसे बचाने की कोशिश की गई, लेकिन उसकी भी मौत हो गई है.
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