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गुरुद्वारों में श्रद्धा के साथ मनाया गया शहीद बाबा दीप सिंह का जन्मोत्सव - बाबा दीप सिंह की कहानी

राजधानी के गुरुद्वारों में 26 जनवरी को अमर शहीद बाबा दीप सिंह का 339वां जन्मोत्सव श्रद्धा और सत्कार के साथ मनाया गया. इस मौके गुरुद्वारों में शबद-कीर्तन हुए और लंगर का आयोजन किया गया.

धूमधाम से मना जन्मोत्सव
धूमधाम से मना जन्मोत्सव
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Published : Jan 27, 2021, 4:29 AM IST

लखनऊ: राजधानी के गुरुद्वारों में 26 जनवरी को अमर शहीद बाबा दीप सिंह का 339वां जन्मोत्सव श्रद्धा और सत्कार के साथ मनाया गया. इस मौके गुरुद्वारों में शबद-कीर्तन हुए और लंगर का आयोजन किया गया.

नाका गुरुद्वारा

श्री गुरू सिंह सभा ऐतिहासिक गुरूद्वारा, नाका हिन्डोला में शहीद बाबा दीप सिंह का 339वां जन्मोत्सव बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया गया. गुरुद्वारे में दीवान सजाया गया. सुखमनी साहिब जी के पाठ से दीवान आरम्भ हुआ. रागी भाई राजिन्दर सिंह ने आसा दी वार का शबद-कीर्तन गायन कर संगत को निहाल कर दिया. मुख्य ग्रंथी ज्ञानी सुखदेव सिंह ने गणतंत्र दिवस पर देश की अखण्डता, समृद्धि, खुशहाली की गुरु महाराज के चरणों में अरदास की.

शहीद बाबा दीप सिंह
शहीद बाबा दीप सिंह

'अमृतसर में हुआ था जन्म'

ज्ञानी हरविन्दर सिंह सुहाणा वालों ने शहीद बाबा दीप सिंह के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बाबा दीप सिंह जी का जन्म 26 जनवरी, 1682 को ग्राम पहुविंड तहसील पट्टी, जिला अमृतसर में हुआ था. उनके पिता का नाम भाई भगता जी एवं माता का नाम जीऊणी जी था. बाबा दसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह के परम शिष्य थे. उन्होंने गुरुमुखी, फारसी, अरबी भाषा का ज्ञान, घुड़सवारी एवं शस्त्र विद्या में निपुणता गुरू से ही सीखी थी.

'बाबा दीप सिंह की शहादत'

सिक्ख धर्म के महान योद्धा बाबा दीप सिंह की शहादत की मिसाल पूरे विश्व में कहीं नहीं मिलती. मुरादबेग ने अहमद शाह अब्दाली को पत्र लिखकर भारत पर हमला करने की गुजारिश की. अब्दाली ने एक लाख की फौज के साथ हमला कर दिया. क्रूरता की सारी हदें पार कर दी. फौज ने जब बच्चों और स्त्रियों को भी नहीं बख्शा. सिक्ख समुदाय के बाबा दीप सिंह से यह देखा न गया.

बाबा शहीद दीप सिंह का जन्मोत्सव
बाबा शहीद दीप सिंह का जन्मोत्सव

'आखिर तक लड़ते रहे बाबा दीप सिंह'

बाबा दीप सिंह ने प्रण लिया कि ‘‘खालसा सो जो चढे़ तुरंग, खालसा सो जो करे नित जंग’. 1757 में गोलवड़ के टिब्बे पर 40,000 फौजियों ने हमला कर दिया. 75 वर्ष की आयु में बाबा दीप सिंह ने अपने साथियों बाबा नौध सिंह, भाई दयाल सिंह, बलवंत सिंह, बसन्त सिंह और कई यो़द्धाओं के साथ मुकाबला किया. धर्म की रक्षा करने के साथ ही महिलाओं एवं बच्चों की रक्षा करने वाले बाबा दीप सिंह 18 सेर का दो धारी खंडा (दो धार वाली तलवार) लेकर मैदान-ए-जंग में लड़ते रहे. बाबा ने सुधासर (अमृतसर) में शहीद होने का प्रण लिया था. बाबा का सिर जंग में कट जाने के बावजूद एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में सिर लेकर वह गुरु रामदास के चरणों में पहुंच गए. वहां अब बाबा के नाम से टाहला साहिब गुरुद्वारा है. बाबा के शरीर का जहां अंतिम संस्कार किया गया, वहां अब गुरुद्वारा शहीदगंज बाबा दीप सिंह जी बना है.

यहियागंज गुरुद्वारा

उधर यहियागंज स्थित गुरु श्री तेगबहादुर साहिब गुरुद्वारा में भी अमर शहीद बाबा दीप सिंह का जन्मोत्सव हर्षोल्लास से मनाया गया. गुरुद्वारा साहिब में दीवान सजाया गया. दीवान की समाप्ति के श्री गुरुग्रंथ साहिब पर गुलाब के फूलों की वर्षा की गई. डाॅ. अमरजोत सिंह के नेतृत्व में मुफ्त चिकित्सा शिविर लगाया गया. लाॅयन परमजीत सिंह के नेतृत्व में रक्तदान शिविर भी लगाया गया. इस अवसर पर समाज में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सिरोंज भेट कर सम्मानित भी किया गया. गुरुद्वारा सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि कार्यक्रम का संयोजन डाॅ. गुरुजी सिंह ने किया.

लखनऊ: राजधानी के गुरुद्वारों में 26 जनवरी को अमर शहीद बाबा दीप सिंह का 339वां जन्मोत्सव श्रद्धा और सत्कार के साथ मनाया गया. इस मौके गुरुद्वारों में शबद-कीर्तन हुए और लंगर का आयोजन किया गया.

नाका गुरुद्वारा

श्री गुरू सिंह सभा ऐतिहासिक गुरूद्वारा, नाका हिन्डोला में शहीद बाबा दीप सिंह का 339वां जन्मोत्सव बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया गया. गुरुद्वारे में दीवान सजाया गया. सुखमनी साहिब जी के पाठ से दीवान आरम्भ हुआ. रागी भाई राजिन्दर सिंह ने आसा दी वार का शबद-कीर्तन गायन कर संगत को निहाल कर दिया. मुख्य ग्रंथी ज्ञानी सुखदेव सिंह ने गणतंत्र दिवस पर देश की अखण्डता, समृद्धि, खुशहाली की गुरु महाराज के चरणों में अरदास की.

शहीद बाबा दीप सिंह
शहीद बाबा दीप सिंह

'अमृतसर में हुआ था जन्म'

ज्ञानी हरविन्दर सिंह सुहाणा वालों ने शहीद बाबा दीप सिंह के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बाबा दीप सिंह जी का जन्म 26 जनवरी, 1682 को ग्राम पहुविंड तहसील पट्टी, जिला अमृतसर में हुआ था. उनके पिता का नाम भाई भगता जी एवं माता का नाम जीऊणी जी था. बाबा दसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह के परम शिष्य थे. उन्होंने गुरुमुखी, फारसी, अरबी भाषा का ज्ञान, घुड़सवारी एवं शस्त्र विद्या में निपुणता गुरू से ही सीखी थी.

'बाबा दीप सिंह की शहादत'

सिक्ख धर्म के महान योद्धा बाबा दीप सिंह की शहादत की मिसाल पूरे विश्व में कहीं नहीं मिलती. मुरादबेग ने अहमद शाह अब्दाली को पत्र लिखकर भारत पर हमला करने की गुजारिश की. अब्दाली ने एक लाख की फौज के साथ हमला कर दिया. क्रूरता की सारी हदें पार कर दी. फौज ने जब बच्चों और स्त्रियों को भी नहीं बख्शा. सिक्ख समुदाय के बाबा दीप सिंह से यह देखा न गया.

बाबा शहीद दीप सिंह का जन्मोत्सव
बाबा शहीद दीप सिंह का जन्मोत्सव

'आखिर तक लड़ते रहे बाबा दीप सिंह'

बाबा दीप सिंह ने प्रण लिया कि ‘‘खालसा सो जो चढे़ तुरंग, खालसा सो जो करे नित जंग’. 1757 में गोलवड़ के टिब्बे पर 40,000 फौजियों ने हमला कर दिया. 75 वर्ष की आयु में बाबा दीप सिंह ने अपने साथियों बाबा नौध सिंह, भाई दयाल सिंह, बलवंत सिंह, बसन्त सिंह और कई यो़द्धाओं के साथ मुकाबला किया. धर्म की रक्षा करने के साथ ही महिलाओं एवं बच्चों की रक्षा करने वाले बाबा दीप सिंह 18 सेर का दो धारी खंडा (दो धार वाली तलवार) लेकर मैदान-ए-जंग में लड़ते रहे. बाबा ने सुधासर (अमृतसर) में शहीद होने का प्रण लिया था. बाबा का सिर जंग में कट जाने के बावजूद एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में सिर लेकर वह गुरु रामदास के चरणों में पहुंच गए. वहां अब बाबा के नाम से टाहला साहिब गुरुद्वारा है. बाबा के शरीर का जहां अंतिम संस्कार किया गया, वहां अब गुरुद्वारा शहीदगंज बाबा दीप सिंह जी बना है.

यहियागंज गुरुद्वारा

उधर यहियागंज स्थित गुरु श्री तेगबहादुर साहिब गुरुद्वारा में भी अमर शहीद बाबा दीप सिंह का जन्मोत्सव हर्षोल्लास से मनाया गया. गुरुद्वारा साहिब में दीवान सजाया गया. दीवान की समाप्ति के श्री गुरुग्रंथ साहिब पर गुलाब के फूलों की वर्षा की गई. डाॅ. अमरजोत सिंह के नेतृत्व में मुफ्त चिकित्सा शिविर लगाया गया. लाॅयन परमजीत सिंह के नेतृत्व में रक्तदान शिविर भी लगाया गया. इस अवसर पर समाज में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सिरोंज भेट कर सम्मानित भी किया गया. गुरुद्वारा सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि कार्यक्रम का संयोजन डाॅ. गुरुजी सिंह ने किया.

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