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एक ही जिले में जन्में तीनों क्रांतिकारियों को एक ही दिन हुई थी फांसी, जानें पूरी कहानी

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Published : Dec 19, 2020, 8:15 PM IST

काकोरी कांड के क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह को एक ही दिन फांसी दी गई थी. तीनों को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी. तीनों क्रांतिकारियों को जन्म यूपी के शाहजहांपुर जिले में हुआ था. तीनों क्रांतिकारियों से जुड़ी रोजक खबर पढ़िए ईटीवी भारत की रिपोर्ट में.

काकोरी कांड के क्रांतिकारी.
काकोरी कांड के क्रांतिकारी.

लखनऊ: 19 दिसंबर की तारीख भारत के इतिहास में काफी अहम है. इतिहास के पन्नों में ऐसे कई आजादी के नायकों का नाम दर्ज है. जिनका जन्म स्थान एक ही है और वह एक ही दिन फांसी के फंदे पर देश के लिए लटक गए थे.आज ही के दिन काकोरी कांड में अंग्रेजों ने देश के तीन क्रांतिकारियों को फांसी दी थी. 19 दिसंबर 1927 को काकोरी कांड के नायक महान क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान और राम प्रसाद बिस्मिल के साथ ठाकुर रोशन सिंह को भी फांसी दी गई थी.

काकोरी कांड के क्रांतिकारियों की कहानी.
फांसी का दिन एक और जेल अलग-अलग
अंग्रजों ने तीनों को फांसी की सजा देने के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख तय की थी लेकिन तीनों को अलग-अलग जेलों में फांसी दी गई थी. रामप्रसाद बिस्मिल को फैजाबाद, रोशन सिंह को इलाहाबाद और अशफाक उल्ला खान को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई थी.

काकोरी कांड का गवाह है बाजनगर गांव

बाजनगर गांव में 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड की घटना हुई थी. आजादी की लड़ाई के लिए हथियार खरीदने के लिए क्रांतिकारियों ने यहां पर ब्रिटिश खजाने को ले जा रही ट्रेन में लूट की घटना को अंजाम दिया था. यह घटना इतिहास के पन्नों में काकोरी कांड के नाम से दर्ज है.


एक ही है तीनों क्रांतिकारियों का जन्म स्थान
आप इसे महज इत्तेफाक ही मान सकते हैं. अशफाक उल्ला खान, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह का जन्म स्थान एक ही है और उन्हें फांसी भी एक ही दिन दी गई थी. तीनों का जन्म यूपी के शाहजहांपुर जिले में हुआ था.


काकोरी कांड
काकोरी कांड की घटना 9 अगस्त 1925 के दिन को हुई थी. रामप्रसाद बिस्मिल और चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में 8 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों की एक अहम बैठक हुई थी, जिसमें योजना बनाई गई कि सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में काकोरी स्टेशन पर लूटपाट की जाएगी. इस ट्रेन में अंग्रेजों का खजाना था. क्रांतिकारी जिस धन को लूटना चाहते थे, दरअसल वह धन अंग्रेजों ने भारतीयों से ही हड़पा था. इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माउजर पिस्टल भी इस्तेमाल किए गए और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के केवल 10 सदस्यों ने इस पूरी घटना को अंजाम दिया था. इस दौरान हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को चेन खींचकर रोक लिया था.

40 क्रांतिकारियों हुए थे गिरफ्तार
काकोरी कांड में 26 सितंबर 1925 के दिन हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के करीब 40 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया था. उनके खिलाफ राजद्रोह करने, सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने और मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया गया. बाद में राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी.

आज ही हैं काकोरी कांड के सबूत

एसडीएम सदर उमेश सिंह ने बताया कि भले ही काकोरी कांड के 88 साल हो गए हो लेकिन उसने निशान यहां मौजूद हैं. चाहे रेलवे लाइन की वह जगह हो जहां पर ट्रेन को लूटा गया, या फिर जहां पर लूटे गए बॉक्स को तोड़कर पैसे निकाले गए थे. उन्होंने कहा कि क्रांतिकारियों के हौसलों को दफन करने के लिए 19 दिसंबर 1927 को रामप्रसाद बिस्मिल को फैजाबाद, रोशन सिंह को इलाहाबाद, अशफाक उल्लाह खां को गोरखपुर और राजेंद्र प्रसाद लाहिड़ी को फांसी दे दी गई थी.

लखनऊ: 19 दिसंबर की तारीख भारत के इतिहास में काफी अहम है. इतिहास के पन्नों में ऐसे कई आजादी के नायकों का नाम दर्ज है. जिनका जन्म स्थान एक ही है और वह एक ही दिन फांसी के फंदे पर देश के लिए लटक गए थे.आज ही के दिन काकोरी कांड में अंग्रेजों ने देश के तीन क्रांतिकारियों को फांसी दी थी. 19 दिसंबर 1927 को काकोरी कांड के नायक महान क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान और राम प्रसाद बिस्मिल के साथ ठाकुर रोशन सिंह को भी फांसी दी गई थी.

काकोरी कांड के क्रांतिकारियों की कहानी.
फांसी का दिन एक और जेल अलग-अलग अंग्रजों ने तीनों को फांसी की सजा देने के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख तय की थी लेकिन तीनों को अलग-अलग जेलों में फांसी दी गई थी. रामप्रसाद बिस्मिल को फैजाबाद, रोशन सिंह को इलाहाबाद और अशफाक उल्ला खान को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई थी.

काकोरी कांड का गवाह है बाजनगर गांव

बाजनगर गांव में 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड की घटना हुई थी. आजादी की लड़ाई के लिए हथियार खरीदने के लिए क्रांतिकारियों ने यहां पर ब्रिटिश खजाने को ले जा रही ट्रेन में लूट की घटना को अंजाम दिया था. यह घटना इतिहास के पन्नों में काकोरी कांड के नाम से दर्ज है.


एक ही है तीनों क्रांतिकारियों का जन्म स्थान
आप इसे महज इत्तेफाक ही मान सकते हैं. अशफाक उल्ला खान, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह का जन्म स्थान एक ही है और उन्हें फांसी भी एक ही दिन दी गई थी. तीनों का जन्म यूपी के शाहजहांपुर जिले में हुआ था.


काकोरी कांड
काकोरी कांड की घटना 9 अगस्त 1925 के दिन को हुई थी. रामप्रसाद बिस्मिल और चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में 8 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों की एक अहम बैठक हुई थी, जिसमें योजना बनाई गई कि सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में काकोरी स्टेशन पर लूटपाट की जाएगी. इस ट्रेन में अंग्रेजों का खजाना था. क्रांतिकारी जिस धन को लूटना चाहते थे, दरअसल वह धन अंग्रेजों ने भारतीयों से ही हड़पा था. इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माउजर पिस्टल भी इस्तेमाल किए गए और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के केवल 10 सदस्यों ने इस पूरी घटना को अंजाम दिया था. इस दौरान हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को चेन खींचकर रोक लिया था.

40 क्रांतिकारियों हुए थे गिरफ्तार
काकोरी कांड में 26 सितंबर 1925 के दिन हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के करीब 40 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया था. उनके खिलाफ राजद्रोह करने, सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने और मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया गया. बाद में राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी.

आज ही हैं काकोरी कांड के सबूत

एसडीएम सदर उमेश सिंह ने बताया कि भले ही काकोरी कांड के 88 साल हो गए हो लेकिन उसने निशान यहां मौजूद हैं. चाहे रेलवे लाइन की वह जगह हो जहां पर ट्रेन को लूटा गया, या फिर जहां पर लूटे गए बॉक्स को तोड़कर पैसे निकाले गए थे. उन्होंने कहा कि क्रांतिकारियों के हौसलों को दफन करने के लिए 19 दिसंबर 1927 को रामप्रसाद बिस्मिल को फैजाबाद, रोशन सिंह को इलाहाबाद, अशफाक उल्लाह खां को गोरखपुर और राजेंद्र प्रसाद लाहिड़ी को फांसी दे दी गई थी.

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