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लखनऊ: देश में तीसरे लॉकडाउन के बाद भी मजदूरों का पलायन जारी - पुलिस ने बस में बैठाकर किया रवाना

उत्तर प्रदेश की राजधानी में कई श्रमिक एक ट्रांसपोर्ट गाड़ी पर बैठकर पहुंचे. इस दौरान श्रमिकों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग भी देखने को नहीं मिली. जिससे सरकार की तरफ से की गई तमाम कोशिशें नाकाम नजर आईं.

workers did not followed social distancing
बिना सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए श्रमिक पहुंचे लखनऊ
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Published : May 4, 2020, 10:34 AM IST

लखनऊ: लॉकडाउन के कारण श्रमिक वर्ग के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. श्रमिकों की रोजमर्रा की जिंदगी काफी ज्यादा प्रभावित हुई है. इसकी वजह से मजदूर किसी भी तरह से अपने घर जाने के लिए मजबूर हो गए हैं. वहीं सरकार की ओर से मजदूरों को मुहैया कराई गई सुविधाएं भी नहीं दिख रही हैं.


जिले के मड़ियाव थाना अंतर्गत बिठौली क्रॉसिंग अजीज नगर चौकी के पास से निकल रही ट्रांसपोर्ट गाड़ी पर एक साथ कई श्रमिक जान को जोखिम में डालकर गाड़ी में भरे माल के ऊपर बैठकर लखनऊ आए. इन श्रमिकों के बीच किसी तरह का सोशल डिस्टेंस नहीं था. इन सभी स्थितियों को देखते हुए मड़ियाव थाना प्रभारी विपिन के नेतृत्व में सभी श्रमिकों को समझा-बुझाकर नीचे उतारा गया. इसके बाद उन श्रमिकों को सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए बसों से उनके गंतव्य के लिए रवाना किया गया.

श्रमिकों के ऐसे आने से कहीं न कहीं सरकार के दावे फीके पड़ते नजर आ रहे हैं. हाल ऐसा कि मजदूर अपनी जान जोखिम में डालकर अपने घर जाने को निकल पड़े हैं. फिर चाहे उन्हें पैदल या किसी प्राइवेट संसाधन में भरकर ही क्यों न जाना पड़े.

लखनऊ: लॉकडाउन के कारण श्रमिक वर्ग के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. श्रमिकों की रोजमर्रा की जिंदगी काफी ज्यादा प्रभावित हुई है. इसकी वजह से मजदूर किसी भी तरह से अपने घर जाने के लिए मजबूर हो गए हैं. वहीं सरकार की ओर से मजदूरों को मुहैया कराई गई सुविधाएं भी नहीं दिख रही हैं.


जिले के मड़ियाव थाना अंतर्गत बिठौली क्रॉसिंग अजीज नगर चौकी के पास से निकल रही ट्रांसपोर्ट गाड़ी पर एक साथ कई श्रमिक जान को जोखिम में डालकर गाड़ी में भरे माल के ऊपर बैठकर लखनऊ आए. इन श्रमिकों के बीच किसी तरह का सोशल डिस्टेंस नहीं था. इन सभी स्थितियों को देखते हुए मड़ियाव थाना प्रभारी विपिन के नेतृत्व में सभी श्रमिकों को समझा-बुझाकर नीचे उतारा गया. इसके बाद उन श्रमिकों को सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए बसों से उनके गंतव्य के लिए रवाना किया गया.

श्रमिकों के ऐसे आने से कहीं न कहीं सरकार के दावे फीके पड़ते नजर आ रहे हैं. हाल ऐसा कि मजदूर अपनी जान जोखिम में डालकर अपने घर जाने को निकल पड़े हैं. फिर चाहे उन्हें पैदल या किसी प्राइवेट संसाधन में भरकर ही क्यों न जाना पड़े.

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