लखनऊ: उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल इलाका अपराध और राजनीतिक गठजोड़ के लिए जाना जाता है. 'अपराध का राजनीतिकरण' या 'राजनीति का अपराधीकरण' जैसे चर्चित मुहावरों की इसी कड़ी में गाजीपुर के मुख़्तार अंसारी और बृजेश सिंह का भी नाम आता है. पूर्वांचल में माफियाओं का खासा दबदबा है. इन माफिया गिरोहों का कोयले का कारोबार, खनन और रेलवे के स्क्रैप समेत ठेके पट्टे में हस्तक्षेप है. वैसे तो दोनों बाहुबली माफियाओं का सियासत में दखल है, लेकिन आजकल मौसम माफिया बृजेश सिंह के अनुकूल है. इसीलिए कहा जा रहा है कि बृजेश सिंह का पलड़ा भारी है. बृजेश सिंह अपने शतरंज की बिसात बिछाये हैं. नतीजन एक-एक करके मुख्तार अंसारी के मजबूत विकेट गिर रहे हैं. जानकारों की मानें तो जेल में बंद बृजेश ने इस काम को अमली जामा पहनाने के लिए पूर्वांचल के एक बाहुबली पूर्व सांसद को मोहरा बनाया. जेल में रची साजिश को इसी योजना के तहत अंजाम दिया जा रहा है.
सूत्रों की माने तो बाहुबली बृजेश सिंह के साथ सूबे के टॉप बाहुबली सांसद बृजभूषण शरण सिंह, पूर्व सांसद धनंजय सिंह, पूर्व एमएलसी सुशील सिंह, एमएलसी रामू द्विवेदी समेत कई बाहुबली उसके साथ हैं. यह माफिया एक खास प्रभावशाली वर्ग के माफिया के गैंग को खत्म करने का ब्लूप्रिंट तैयार कर चुका है. योजना के तहत ही सूबे में बाहुबली मुख्तार अंसारी के पांच करीबी लोगों की हत्या कर दी गई. खास बात यह रही कि इन सारी हत्याओं में अपरोक्ष रूप से पूर्व बाहुबली सांसद का नाम उभर कर आया. हालांकि 4 मामलों में विवेचना के दौरान पूर्व बाहुबली सांसद को क्लीन चिट दे दी गई. मगर हाल ही में हुए मऊ में मोहम्मदाबाद के पूर्व ब्लॉक प्रमुख अजीत सिंह हत्याकांड में धनंजय सिंह को साजिश रचने, साक्ष्य मिटाने एवं हत्या आरोपियों को संरक्षण देने का आरोपी बनाया गया है. इस कार्रवाई से यूपी की सियासत में हलचल मच गई है, क्योंकि सियासत का एक वर्ग पूर्व सांसद धनंजय सिंह को क्लीन चिट दिलाने की पैरवी कर रहा था. अब पुलिस धनंजय सिंह को गिरफ्तार करने के लिए दबिश दे रही है. धनंजय सिंह कोर्ट में हाजिर होने या फिर हाईकोर्ट से अरेस्टिंग स्टे लेने के प्रयास में लगे हैं. कहा तो ये भी जा रहा है कि पुलिस कोर्ट में पैरवी कर धनंजय सिंह की संपत्ति कुर्क करने की तैयारी कर रही है.
इन पांच की हुई हत्या
पिछले पांच सालों में बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के पांच खास लोगों को गोलियों से भून दिया गया. इसमें मुख्य रूप से गोमती नगर इलाके में शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी उर्फ प्रेम प्रकाश सिंह उसके साले पुष्पजीत सिंह साथ में जौनपुर के शिक्षक संजय मिश्रा और अब मऊ में मोहम्मदाबाद के पूर्व ब्लॉक प्रमुख अजीत सिंह की हत्या शामिल है.
ऐसे काम करते हैं बाहुबली
सूबे के एक उच्चपदस्थ अफसर बताते हैं कि 1990 के दशक का अंत आते-आते पूर्वांचल के माफिया ने खुद को राजनीति में लगभग स्थापित कर लिया. मुख़्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी पहले से ही राजनीति में थे. इसलिए मुख़्तार के लिए राजनीति में आना आसान था. बृजेश ने अपने बड़े भाई उदय नाथ सिंह उर्फ चुलबुल को राजनीति में उतारा. पहले उदय नाथ सिंह विधान परिषद के सदस्य रहे और उनके बाद उनके बेटे और बृजेश के भतीजे सुशील सिंह विधायक बने.
एनकाउंटर से बचने के लिए लड़ते हैं चुनाव
लखनऊ कमिश्नर डीके ठाकुर बताते हैं कि बिना राजनीतिक शह के माफिया नहीं पनप सकते. राजनीति में जाने का एक कारण अपने व्यापारिक निवेशों को सुरक्षित करना, उन्हें बढ़ाना देना और राजनीतिक पार्टियों में अपना दखल बढ़ाना भी होता है. माफिया चाहते हैं कि एसटीएफ को डराकर रखे. उन्हें लगता है कि अगर चुनाव जीत गए तो एसटीएफ एनकाउंटर नहीं करेगी या नहीं कर पाएगी.
रेत माफिया पर रेड करती पुलिस
एसटीएफ के एक इंस्पेक्टर कहते हैं कि पूर्वांचल में आज करीब 250 के आसपास गैंगस्टर बचे हैं. इनमें से कुछ राजनीति में हैं और जो नहीं हैं वो आना चाहते हैं. इनमें से पांच हजार करोड़ रुपये से ऊपर की एसेट वैल्यू वाले 5-7 नाम हैं. 500 करोड़ से ऊपर की एसेट वैल्यू वाले 50 से ज्यादा नाम हैं. बाकी जो 200 बचते हैं, वो टॉप के 5 माफियाओं जैसा बनना चाहते हैं
माफिया ने कैसे पसारे पांव
पूर्व डीजीपी एके जैन बताते हैं कि संगठित अपराध में शामिल होना तो माफिया होने की पहली शर्त है. फिर स्थानीय राजनीति और प्रशासन में दखल रखना और गैर-कानूनी काले धन को कानूनी धंधों में लगाकर सफेद पूंजी में तब्दील करना, दूसरी जब यह तीनों फैक्टर मिलते हैं तभी किसी गैंगस्टर या अपराधी को 'माफिया' कहा जा सकता है.