लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से राज्य विश्वविद्यालयों में लागू किए गए समान पाठ्यक्रम को लेकर शिक्षकों ने खुली चुनौती दे दी है. शिक्षकों ने साफ किया है कि अगर कॉमन मिनिमम सिलेबस (common minimum syllabus) को उन पर थोपा गया तो बड़ा आंदोलन होगा. लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (luta) के अध्यक्ष डॉक्टर विनीत वर्मा और महामंत्री डॉ राजेंद्र वर्मा ने साफ किया है कि मांग पूरी न होने पर प्रदेश व्यापी आंदोलन, राजभवन मार्च, धरना, प्रदर्शन, काला फीता आदि लोकतांत्रिक तरीके से विरोध किया जाएगा. विश्वविद्यालय में मंगलवार को ही लूटा की आम सभा के बाद इसकी घोषणा की गई.
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सभी राज्य विश्वविद्यालयों में कॉमन मिनिमम सिलेबस लागू करने की घोषणा की गई है. इसके तहत सभी राज्य विश्वविद्यालयों में 70 प्रतिशत सिलेबस एक जैसा पढ़ाया जाएगा. उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा का कहना है कि इससे एकरूपता आएगी और नई शिक्षा नीति को प्रभावी ढंग से लागू किया जा जा सकेगा. इसे नए शैक्षिक सत्र 2021-22 से सभी राज्य विश्वविद्यालयों में लागू करने का फरमान भी जारी किया गया है. वहीं, लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ का कहना है कि यह राज्य विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर हमला है. संगठन की ओर से लगातार इसका विरोध किया जा रहा है.
आम सभा की बैठक में यह लिए गए फैसले
इसी मुद्दे को लेकर मंगलवार को लखनऊ विश्वविद्यालय में लूटा की आम सभा की बैठक आयोजित की गई. दावा है कि बैठक में शिक्षकों ने सर्वसम्मति से सरकार के कॉमन मिनिमम सिलेबस का विरोध करने का फैसला लिया. इसे विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर हमला बताया और इसके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया. बैठक में सभी शिक्षकों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि सरकार लखनऊ विश्वविद्यालय को कॉमन मिनिमम सिलेबस के दायरे से बाहर रखें. यह नई शिक्षा नीति की मूल भावना (उच्च शिक्षा संस्थानों की स्वायत्तता) के विपरीत है.
विश्वविद्यालय द्वारा तैयार सिलेबस पर पढ़ाई
बैठक में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ कि लखनऊ विश्वविद्यालय ने नई शिक्षा नीति 2020 के अनुसार कुलपति के निर्देशन में एक अच्छा पाठ्यक्रम तैयार किया है, उसी को लागू करेगा. पूर्व में विभिन्न संकायों द्वारा कॉमन मिनिमम सिलेबस के संबंध में लिया गया निर्णय अंतिम है. शिक्षक संघ कार्यकारिणी को कॉमन मिनिमम सिलेबस के विरोध की रूपरेखा तय करने के लिए पूर्ण रूप से अधिकृत किया गया है. आम सभा में पारित सभी प्रस्तावों से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, मानव संसाधन मंत्रालय, कुलाधिपति और मुख्यमंत्री को अवगत करवाया जाए.
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सिर्फ दो विश्वविद्यालयों से उठी विरोध की आवाज
उत्तर प्रदेश में करीब 30 राज्य विश्वविद्यालय हैं. तकनीकी विश्वविद्यालयों को छोड़ दिया जाए तो सभी अन्य राज्य विश्वविद्यालयों में कॉमन मिनिमम सिलेबस लागू किया जाना है. सभी राज्य विश्वविद्यालयों की अपनी नियमावली है. ऐसे में इसे लागू करने के लिए विश्वविद्यालयों के स्तर पर इसे पास कराना आवश्यक होता है. गोरखपुर के दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय को छोड़कर सभी अन्य राज्य विश्वविद्यालयों ने इसे इसी रूप में स्वीकार भी कर लिया है.