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99 साल का हुआ लखनऊ चिड़ियाघर, ताज के बाद सबसे ज्यादा आते हैं पर्यटक - लखनऊ का चिड़ियाघर

नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान यानी राजधानी के चिड़ियाघर ने अपने 99 साल पूरे कर लिए हैं. उत्तर प्रदेश में यह सबसे प्राचीन प्राणी उद्यान है, जहां अलग-अलग किस्म के वन्यजीवों को रखा गया है. इसका निर्माण प्रिंस ऑफ वेल्स के आगमन पर कराया गया था.

राजधानी का चिड़ियाघर
राजधानी का चिड़ियाघर
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Published : Dec 2, 2020, 4:47 PM IST

Updated : Dec 2, 2020, 6:29 PM IST

लखनऊ: नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान यानी राजधानी के चिड़ियाघर ने अपने 99 साल पूरे कर लिए हैं. उत्तर प्रदेश का यह सबसे प्राचीन प्राणी उद्यान है, जहां अलग-अलग किस्म के वन्यजीवों को रखा गया है. 29 नवंबर 1921 को नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान की नींव रखी गई थी. इस जूलॉजिकल पार्क में 152 बाड़े हैं, जिनमें 100 से अधिक प्रजातियों के 1000 से ज्यादा वन्यजीवों को रखा गया है.

राजधानी का चिड़ियाघर

ऐसे बना राजधानी का चिड़ियाघर

चिड़ियाघर परिषद की स्थापना 18वीं सदी में आमों के बाग के रूप में अवध के तत्कालीन नवाब नसीरुद्दीन हैदर ने करवाई थी. जिसे बनारसी बाग के रूप में जाना जाता था. सन 1921 में अंग्रेजी शासनकाल के दौरान प्रिंस ऑफ वेल्स लखनऊ आए थे. उन्हें वन्यजीवों से काफी प्यार था. वन्यजीवों के लिए उनके प्यार को देखते हुए लखनऊ के तत्कालीन गवर्नर सर हरकोल बटलर ने 29 नवंबर 1921 में इस बनारसी बाग को वन्य जीव प्राणी उद्यान बना दिया, जिसमें उस समय 2,28,000 रुपये का खर्च आया था.

शुरुआती दौर में कम थी प्रजातियां

नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान की स्थापना के बाद प्राणी उद्यान में केवल 6 से 7 प्रजातियां ही थीं. वहीं वर्तमान समय की अगर बात की जाए तो प्राणी उद्यान में 100 से अधिक विभिन्न प्रजातियों के 1000 से ज्यादा वन्य जीव मौजूद हैं. राजधानी लखनऊ का चिड़ियाघर प्रदेश का सबसे प्राचीनतम प्राणी उद्यान है.

दर्शकों की संख्या रहती है अधिक

चिड़ियाघर में दर्शकों की संख्या अधिक रहने का मुख्य कारण चिड़ियाघर का शहर के बीचो-बीच बना होना है. भले ही कोविड-19 की वजह से कुछ समय के लिए प्राणी उद्यान बंद कर दिया गया था, लेकिन अब दोबारा से दर्शकों की संख्या बढ़ने लगी है. वहीं अगर उत्तर प्रदेश में पर्यटकों की संख्या देखी जाए तो ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा दर्शक लखनऊ के चिड़ियाघर में ही आते हैं.


ट्रस्ट के माध्यम से होता है संचालन

लखनऊ का प्राणी उद्यान यानी चिड़ियाघर ट्रस्ट के माध्यम से संचालित किया जाता है. दर्शकों के चिड़ियाघर आने पर जो पैसा उन्हें मिलता है, उसी से वहां के कर्मचारियों को तनख्वाह और पेंशन दी जाती है. वहीं सरकार द्वारा भी प्राणी उद्यान को मदद दी जाती है.

ऑडियो टूर है खासियत
लखनऊ का प्राणी उद्यान एकमात्र ऐसा प्राणी उद्यान है, जहां पर ऑडियो टूर की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है. यदि कोई व्यक्ति अपने मोबाइल में चिड़ियाघर का ऐप डाउनलोड करता है और बाड़े के सामने आकर फाइनेंस पर लगे कोड को स्कैन करता है तो उसे उस बाड़े की पूरी जानकारी ऑडियो के माध्यम से मिल जाती है.

स्वच्छता पर विशेष ध्यान
प्राणी उद्यान में स्वच्छता को लेकर विशेष अभियान चलाया जाता है. जहां स्कूली बच्चों को बुलाकर स्वच्छता अभियान में भाग दिलवाया जाता है. वहीं स्कूली बच्चे भी पूरे मन से स्वच्छता अभियान में काम करते हैं, लेकिन इस साल कोविड-19 के कारण स्कूली बच्चों को इनवाइट नहीं किया गया. जैसे ही इस महामारी का दौर खत्म होगा दोबारा से यह प्रक्रिया शुरू की जाएगी. प्राणी उद्यान में नेचर इंटरप्रिटेशन सेंटर भी बना हुआ है, जहां पर लोगों को ऑडियो-वीडियो माध्यम से वन्यजीवों के बारे में पूरी जानकारी मिलती है.

लखनऊ: नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान यानी राजधानी के चिड़ियाघर ने अपने 99 साल पूरे कर लिए हैं. उत्तर प्रदेश का यह सबसे प्राचीन प्राणी उद्यान है, जहां अलग-अलग किस्म के वन्यजीवों को रखा गया है. 29 नवंबर 1921 को नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान की नींव रखी गई थी. इस जूलॉजिकल पार्क में 152 बाड़े हैं, जिनमें 100 से अधिक प्रजातियों के 1000 से ज्यादा वन्यजीवों को रखा गया है.

राजधानी का चिड़ियाघर

ऐसे बना राजधानी का चिड़ियाघर

चिड़ियाघर परिषद की स्थापना 18वीं सदी में आमों के बाग के रूप में अवध के तत्कालीन नवाब नसीरुद्दीन हैदर ने करवाई थी. जिसे बनारसी बाग के रूप में जाना जाता था. सन 1921 में अंग्रेजी शासनकाल के दौरान प्रिंस ऑफ वेल्स लखनऊ आए थे. उन्हें वन्यजीवों से काफी प्यार था. वन्यजीवों के लिए उनके प्यार को देखते हुए लखनऊ के तत्कालीन गवर्नर सर हरकोल बटलर ने 29 नवंबर 1921 में इस बनारसी बाग को वन्य जीव प्राणी उद्यान बना दिया, जिसमें उस समय 2,28,000 रुपये का खर्च आया था.

शुरुआती दौर में कम थी प्रजातियां

नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान की स्थापना के बाद प्राणी उद्यान में केवल 6 से 7 प्रजातियां ही थीं. वहीं वर्तमान समय की अगर बात की जाए तो प्राणी उद्यान में 100 से अधिक विभिन्न प्रजातियों के 1000 से ज्यादा वन्य जीव मौजूद हैं. राजधानी लखनऊ का चिड़ियाघर प्रदेश का सबसे प्राचीनतम प्राणी उद्यान है.

दर्शकों की संख्या रहती है अधिक

चिड़ियाघर में दर्शकों की संख्या अधिक रहने का मुख्य कारण चिड़ियाघर का शहर के बीचो-बीच बना होना है. भले ही कोविड-19 की वजह से कुछ समय के लिए प्राणी उद्यान बंद कर दिया गया था, लेकिन अब दोबारा से दर्शकों की संख्या बढ़ने लगी है. वहीं अगर उत्तर प्रदेश में पर्यटकों की संख्या देखी जाए तो ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा दर्शक लखनऊ के चिड़ियाघर में ही आते हैं.


ट्रस्ट के माध्यम से होता है संचालन

लखनऊ का प्राणी उद्यान यानी चिड़ियाघर ट्रस्ट के माध्यम से संचालित किया जाता है. दर्शकों के चिड़ियाघर आने पर जो पैसा उन्हें मिलता है, उसी से वहां के कर्मचारियों को तनख्वाह और पेंशन दी जाती है. वहीं सरकार द्वारा भी प्राणी उद्यान को मदद दी जाती है.

ऑडियो टूर है खासियत
लखनऊ का प्राणी उद्यान एकमात्र ऐसा प्राणी उद्यान है, जहां पर ऑडियो टूर की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है. यदि कोई व्यक्ति अपने मोबाइल में चिड़ियाघर का ऐप डाउनलोड करता है और बाड़े के सामने आकर फाइनेंस पर लगे कोड को स्कैन करता है तो उसे उस बाड़े की पूरी जानकारी ऑडियो के माध्यम से मिल जाती है.

स्वच्छता पर विशेष ध्यान
प्राणी उद्यान में स्वच्छता को लेकर विशेष अभियान चलाया जाता है. जहां स्कूली बच्चों को बुलाकर स्वच्छता अभियान में भाग दिलवाया जाता है. वहीं स्कूली बच्चे भी पूरे मन से स्वच्छता अभियान में काम करते हैं, लेकिन इस साल कोविड-19 के कारण स्कूली बच्चों को इनवाइट नहीं किया गया. जैसे ही इस महामारी का दौर खत्म होगा दोबारा से यह प्रक्रिया शुरू की जाएगी. प्राणी उद्यान में नेचर इंटरप्रिटेशन सेंटर भी बना हुआ है, जहां पर लोगों को ऑडियो-वीडियो माध्यम से वन्यजीवों के बारे में पूरी जानकारी मिलती है.

Last Updated : Dec 2, 2020, 6:29 PM IST
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