लखनऊ : उत्तर प्रदेश में सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के यूजी पाठ्यक्रम में समान पाठ्यक्रम को लेकर चल रहा विरोध शनिवार को राजभवन तक पहुंच गया. लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षकों की ओर से राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखकर इसे लागू न किए जाने की मांग उठाई गई. प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को आगामी सत्र 2021-2022 से स्नातक स्तर पर, राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध करवाए गए पाठ्यक्रम का न्यूनतम 70% राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों के साथ लागू किए जाने के निर्देश शासन द्वारा दिए गए है.
शिक्षक संगठन की यह है आपत्ति
लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ का कहना है कि राज्य सरकार इस पाठ्यक्रम के माध्यम से संस्थानों की एकेडमिक ऑटोनॉमी को ही खत्म कर रही है. संघ के अध्यक्ष डॉ. विनीत वर्मा और महामंत्री डॉ. राजेंद्र वर्मा का कहना है कि नई शिक्षा नीति में शिक्षण संस्थानों की ऑटोनॉमी पर जोर दिया गया. जबकि राज्य सरकार इस बदलाव के माध्यम से खत्म करने पर लगी है.
![समान पाठ्यक्रम का विरोध](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/up-luc-06-protest-against-common-syllabus-7209790_29052021161647_2905f_1622285207_180.jpg)
- उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार शैक्षणिक मामलों में सभी निर्णय लेने का अधिकार विश्वविद्यालयों की एकेडमिक काउंसिल को है.
- अधिनियम, परिनियम और अध्यादेश में दी गई व्यवस्था के अनुसार विश्वविद्यालय एवं संबद्ध महाविद्यालयों के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण विश्वविद्यालयों के विभागों में विषय विशेष की बोर्ड ऑफ स्टडीज द्वारा किया जाता है. बोर्ड ऑफ स्टडीज में संबंधित विषय के आंतरिक एवं वाह्य विशेषज्ञों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व होता है.
- विभाग विश्वविद्यालय तथा संबद्ध महाविद्यालयों की आधारभूत संरचना, संसाधनों की उपलब्धता, समय की मांग, शिक्षकों की विशेषज्ञता आदि के दृष्टिगत छात्रों के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण करते हैं तथा आवश्यकतानुसार समय-समय पर इसे संशोधित भी करते हैं.
- विश्वविद्यालय अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत कॉमन मिनिमम सिलेबस राज्य सरकार द्वारा तैयार किया गया है और 70% की अनिवार्यता के साथ विश्वविद्यालयों से इसे लागू करने को कहा गया है, जो उचित नहीं है.
- वर्ष 2020 में देश में शिक्षा के स्तर को उन्नत करने के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 का निर्माण किया गया. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बिंदु 9.3 तथा 11.6 में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि एनईपी- 2020 के तहत संकाय और संस्थागत स्वायत्तता को बढ़ावा दिया जाएगा. वहीं, दूसरी तरफ कॉमन मिनिमम सिलेबस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विपरीत छात्रों के लिए पाठ्यक्रमों की उपलब्धता को सीमित कर देगा. कॉमन मिनिमम सिलेबस से पाठ्यक्रमों में नवाचार और नवसृजन समाप्त हो जायेगा.
- उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी पत्र के बिंदु- 4 के अनुसार क्रेडिट ट्रांसफर के लिए सभी विश्वविद्यालयों में सिलेबस समान होना चाहिए. ऐसा भ्रम फैलाया जा रहा है कि कॉमन सिलेबस के बिना राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रदेश में लागू नहीं किया जा सकता. यहां यह समझना आवश्यक है कि कॉमन सिलेबस और क्रेडिट ट्रांसफर दोनों अलग-अलग विषय हैं. क्रेडिट ट्रांसफर के लिए सभी विश्वविद्यालयों में सिलेबस का समान होना बिल्कुल जरूरी नहीं है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.