लखनऊ: राजधानी वायु प्रदूषण के मामले में खतरनाक श्रेणी में पहले ही पहुंच चुकी है. अब वायु प्रदूषण के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण भी शहर के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है. केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई के बाद लखनऊ ध्वनि प्रदूषण के मामले में दूसरे पायदान पर पहुंच चुका है. हैदराबाद, दिल्ली और चेन्नई भी इस सूची में शामिल हैं. हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने सात शहरों में 35 स्थानों का चयन किया था.
कैसे होता है ध्वनि प्रदूषण
पूरे देश में सबसे ज्यादा शोर मोटर वाहनों से होता है. ध्वनि प्रदूषण कार्यालय के उपकरण, निर्माण कार्य के उपकरण, बिजली उपकरण, ऑडियो, मनोरंजन सिस्टम के साथ-साथ कई अन्य चीजों से ध्वनि उत्पन्न होती है. कमर्शियल और रेजिडेंशियल एरिया एक हो जाने पर भी ध्वनि प्रदूषण बढ़ जाता है. इसके चलते लोगों में कई बीमारियां भी हो रही हैं. यह प्रदूषण मानवीय स्रोत, उद्योग, परिवहन के साधन, आतिशबाजी आदि से भी बढ़ता है.
शहर में दौड़ रहे लाखों वाहन
वनों के विनाश, उद्योग, कल कारखाने, खनन के साथ-साथ परिवहन को भी वायु और ध्वनि प्रदूषण का कारक माना जा रहा है. शहर में दौड़ रहे वाहनों में लगे हॉर्न से उत्पन्न होने वाली आवाजें ध्वनि प्रदूषण में इजाफा कर रही हैं. उत्तर प्रदेश में करीब 21,23, 813 पुराने वाहन और करीब 2,03,584 ट्रांसपोर्ट वाहन हैं. लखनऊ में पंजीकृत वाहनों में ट्रांसपोर्ट वाहन करीब 14,223, नॉन ट्रांसपोर्ट गाड़ियां 3,32,067 हैं. इस प्रकार से राजधानी में कुल वाहनों की संख्या 3,46,290 है.
ध्वनि प्रदूषण के मानक
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार नींद की अवस्था में वातावरण में 35 डेसीबल से ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए. दिन का शोर 45 डेसीबल से ज्यादा नुकसानदेह है. 2018 में जारी की गई एक रिपोर्ट के जरिए दिन-रात के डेसीबल का अंतर और उससे होने वाले नुकसान को बताया गया.
क्षेत्र | दिन(डेसीबल) | रात(डेसीबल) |
औद्योगिक क्षेत्र | 75 | 70 |
व्यवसायिक क्षेत्र | 65 | 55 |
आवासीय क्षेत्र | 55 | 45 |
शांत क्षेत्र | 50 | 40 |
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भारतीय मानक संस्थान द्वारा स्वीकृत डेसीबल में ध्वनि स्तर इस प्रकार रहता है. ग्रामीण क्षेत्र में 25 से 30, उपनगरीय 30 से 35, नगरीय (आवासीय) 35 से 40, नगरीय (व्यवसायिक) 40 से 45, नगरीय सामान्य 45 से 50, औद्योगिक क्षेत्र 50 से 55 होता है. विभिन्न भवनों में स्वीकृत आंतरिक ध्वनि स्तर रेडियो और टेलीविजन स्टूडियो में 25 से 30, संगीत कक्ष 30 से 35, ऑडिटोरियम, हॉस्टल 35 से 40, कोर्ट, निजी कार्यालय 40 से 45, सार्वजनिक कार्यालय, बैंक 45 से 50, रेस्टोरेंट्स 50 से 55. ये सभी आंकड़े 2018 में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार हैं.
राजधानी के 7 इलाकों में दिन रात का ध्वनि प्रदूषण वार्षिक
क्षेत्र | दिन औसत (डेसीबल) | रात औसत (डेसीबल) |
तालकटोरा | 66.50 | 60.17 |
हजरतगंज | 68.17 | 64.25 |
पीजीआई | 58.83 | 52.50 |
इंदिरा नगर | 53.50 | 46.17 |
गोमती नगर | 65.83 | 59.67 |
चिनहट | 65.33 | 56.08 |
यूपीपीसीबी | 64.08 | 58.92 |
आईटी कॉलेज | 65.08 | 59.58 |
एयरपोर्ट | 63.50 | 59.25 |
अलीगंज | 76.58 | 69.00 |
पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था सी कार्बन के अध्यक्ष बीपी श्रीवास्तव बताते हैं कि ध्वनि प्रदूषण का बढ़ता स्तर मानव जीवन में बहुत ज्यादा असर डाल रहा है. इससे इंसान की श्रवण क्षमता को हानि पहुंच रही है. तेज ध्वनि मानव ही नहीं जीव-जंतुओं के जीवन पर बुरा असर डाल रही है.
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दिन और रात का ध्वनि प्रदूषण स्तर होता है अलग-अलग
ईएनटी विशेषज्ञ डॉक्टर विजय शुक्ला बताते हैं कि जैसे-जैसे समाज तरक्की करता जा रहा है, ध्वनि प्रदूषण भी धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. यह एक बड़ी समस्या है. इस पर न तो सरकार और न ही समाज का ध्यान है. वायु प्रदूषण को लेकर तो फिर भी लोग जागरूक हैं, लेकिन ध्वनि प्रदूषण को लेकर हम लोग ध्यान नहीं देते. कंस्ट्रक्शन का काम और मशीनों का काम बढ़ रहा है. ट्रेन की आवाज, प्लेन की आवाज से भी ध्वनि प्रदूषण होता है. पहले दिन में ही तेज आवाजें सुनाई देती थी, लेकिन अब रात में भी ध्वनि का स्तर बढ़ता जा रहा है.
मीठा जहर है ध्वनि प्रदूषण
सेवानिवृत्त रेलवे अधिकारी ने बताया कि आज से करीब 40 साल पहले ध्वनि प्रदूषण न के बराबर था. अब ध्वनि प्रदूषण मीठा जहर बनता जा रहा है. यह समस्या आगे और बढ़ने वाली है.