लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि वह इस प्रश्न पर विचार करेगा कि सिर्फ अल्पसंख्यक आयोग द्वारा किसी संथान को 'अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान' घोषित किए जाने पर उसके शुल्क निर्धारण पर क्या प्रभाव पड़ेगा. न्यायालय ने इस सम्बंध में दाखिल याचिका पर राज्य सरकार से एक माह में जवाब मांगा है.
यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने एमटीवी बुद्धिस्ट रिलीजियस ट्रस्ट की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया. याचिका में कहा गया है कि याची ट्रस्ट के संस्थान को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान आयोग द्वारा अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया गया है. जबकि राज्य सरकार द्वारा संस्थान के मेडिकल छात्रों के शुल्क के बावत निर्देश दिया गया है कि शुल्क यूपी प्राइवेट प्रोफेशनल एजुकेशन इंस्टीट्यूशन एक्ट के अनुसार निर्धारित की जाए.
याची की ओर से दलील दी गई कि संस्थान के अल्पसंख्यक संस्थान होने के कारण उक्त अधिनियम उस पर लागू नहीं होता. वहीं याचिका का विरोध करते हुए दलील दी गई कि याची के संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान के तौर पर राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित नहीं किया गया है, लिहाजा शुल्क निर्धारण के मामले में उसे छूट नहीं प्राप्त है. न्यायालय ने याचिका पर विचार की आवश्यकता जताई व सरकार को जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है.