लखनऊ : उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही से बिजली विभाग लगातार घाटे में ही चल रहा है. यह घाटा कम होने के बजाय साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है. 23 साल में घाटा 77 करोड़ से बढ़कर एक लाख करोड़ रुपए पहुंच गया है. सबसे खास बात यह है कि बिजली विभाग के घाटे की भरपाई करने के लिए हर साल उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से सब्सिडी दी जाती है, लेकिन घाटा कम नहीं हो रहा है, बल्कि बढ़ता ही जा रहा है. इस घाटे की भरपाई के लिए बिजली विभाग बिजली दरें बढ़ाने का प्लान बनाता है, जिससे उपभोक्ताओं पर महंगी बिजली का भार डालकर घाटा पूरा किया जा सके.
साल 2000 में सरकार ने घाटे को कम करने के लिए 1959 में गठित राज्य विद्युत परिषद को तोड़कर विद्युत निगम बना दिया. पहले से चल रहे केस्को के साथ पूर्वांचल, पश्चिमांचल, मध्यांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम बना दिए गए. इसके बाद शुरू हुआ घाटा बढ़ने का सिलसिला. कई निगम बनने के बाद पावर कारपोरेशन के पहले साल का घाटा 77 करोड़ था जो 23 साल में बढ़कर अब एक लाख करोड़ तक जा पहुंचा है. बिजली विभाग के अधिकारी बताते हैं कि साल 2001 में बिजली निगमों का कुल घाटा 77 करोड़ था जो साल 2005 में बढ़कर 5439 करोड़ पर पहुंच गया. साल 2010-11 में यह घाटा 24,025 करोड़ रुपए पहुंच गया. 2015-16 में 72,770 करोड़ हो गया. वर्ष 2016-17 में यह घाटा बढ़कर 75,951 करोड़ जा पहुंचा. साल 2017-18 में 81,040 करोड़ और वर्ष 2018-19 में 87,089 करोड़ रुपए हो गया. 2020-21 में यह घाटा बढ़कर 97000 करोड़ हुआ और वर्तमान में घाटे का एक लाख करोड़ से भी ज्यादा का आंकड़ा पहुंच चुका है.
बिजली विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इस घाटे के लिए एक दूसरे पर तोहमत मढ़ रहे हैं, जबकि हकीकत यही है बिजली सप्लाई के एवज में राजस्व वसूली कर पाने में अधिकारी दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं और कर्मचारी लापरवाही कर रहे हैं. इसी वजह से घाटा कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है. पावर कारपोरेशन को लगातार घाटा ही हो रहा है तो इस घाटे को देखते हुए सप्लाई निर्बाध तरीके से जारी रखने के लिए लोन लेना पड़ता है जानकारी के मुताबिक, जहां पावर कारपोरेशन वर्तमान में एक लाख करोड़ के घाटे में तो वहीं लगभग 80 हजार करोड़ से 90,000 करोड़ रुपए के बीच पावर कारपोरेशन पर लोन है. इसी लोन को चुकाने के लिए सरकार बिजली विभाग की सहायता करती है. सरकार बड़ी रकम सब्सिडी में देती है. कर्ज जितना बढ़ता है ब्याज भी उतना अधिक हो जाता है. यही बढ़ते घाटे का बड़ा कारण बनता है. इसी घाटे की भरपाई के लिए ऐसे पावर कारपोरेशन की तरफ से उपभोक्ताओं को महंगी बिजली दर का झटका दिया जाता है. कुल मिलाकर घाटे का जिम्मेदार विभाग खुद होता है, लेकिन खामियाजा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ता है.
क्या कहते हैं बिजली संगठनों के नेता
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे का कहना है कि 'पहले विभाग का कोई इंजीनियर प्रमोट होकर एमडी बनाया जाता था. इंजीनियर को विभाग की अच्छे से समझ होती थी. अधीनस्थ भी उनकी बात को अहमियत देते थे क्योंकि वह कर्मचारी की परेशानी समझते थे, लेकिन अब इन पदों पर प्रशासनिक अधिकारियों को नियुक्त किया जा रहा है, जिसे विभाग को चलाने की कोई जानकारी ही नहीं होती. यही वजह है कि विभाग का घाटा बढ़ रहा है अगर इंजीनियर को एमडी बनाया जाए तो निश्चित तौर पर घाटा कम होने लगेगा.'
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा का मानना है कि 'बढ़ते हुए घाटे के लिए आईएएस अधिकारी जिम्मेदार नहीं बल्कि बिजली विभाग के ही अभियंता जिम्मेदार हैं. इसके पीछे तर्क भी देते हैं कि अभियंता बिजली चोरी पकड़ने जाते हैं तो अपनी पॉकेट को प्राथमिकता लेते हैं न कि विभाग के राजस्व को. बिजली चोरी में लाखों का मामला वे कुछ हजार में सेट कर लेते हैं और विभाग को भारी-भरकम नुकसान पहुंचाते हैं. इतना ही नहीं जहां चोरी पकड़ते हैं तो आधा दर्जन चोरियों में से इक्का-दुक्का की एफआईआर दर्ज करा देते हैं और बाकी से अपनी सेटिंग कर उगाही कर लेते हैं.'
क्या कहते हैं ऊर्जा मंत्री : उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा का कहना है कि 'बिजली विभाग लगातार घाटे में चल रहा है. वर्तमान में यह घाटा बढ़कर एक लाख करोड़ से ऊपर पहुंच गया है. इतना ही नहीं इसी घाटे के एवज में हमें लोन लेना पड़ता है जो तकरीबन इसी के आसपास है. लगभग 80 हजार से 90 हजार करोड़ रुपए का लोन है. ऐसे में कर्मचारियों को बोनस भला कैसे दिया जाए, फिर भी हमारी सरकार ने एक साल का बोनस भी कर्मचारियों को उपलब्ध कराया है. हम आगे भी कर्मचारियों के हित में बेहतर काम करेंगे, लेकिन घाटे को पूरा करने के लिए पूरी ईमानदारी से सभी को जुटना होगा.'
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