लखनऊ: महाशिवरात्रि एक ऐसा महापर्व है, जब शिव के भक्तों की भीड़ देश के हर मंदिर में नजर आती है. अपने आराध्य के दर्शन के लिए भक्त मंदिर की ओर दौड़े चले आते हैं. इस महापर्व से जुड़े कई किस्से और पौराणिक कथाएं हैं...
आइये जानते हैं क्या है महाशिवरात्रि के पीछे की कहानी
कैसे महादेव बने नीलकंठ
कहते हैं जब देवताओं और असुरों में अमृत को पाने के लिए समुद्र मंथन हुआ था, उस समय समुद्र से कालकूट नामक एक विष निकला था. वह विष देख देवताओं और असुरों में कोलाहल मच गया कि उसे कौन पियेगा? फिर देवताओं ने महादेव की आराधना की. देवताओं की प्रार्थना सुन भगवान शिव ने उसे अपने शंख में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण किया और उस विष को पी गए.
भगवान विष्णु अपने हर भक्त का दुख हर लेते हैं. वैसे ही भगवान शिव के स्मरण करते भगवान विष्णु ने महादेव के कंठ (गले) में उस विष को रोक दिया और उसका असर खत्म कर दिया. इसके बाद ही शिव जी का गला नीला पड़ गया और वे नीलकंठ के नाम से विख्यात हुए.
वैसे तो भगवान के कई नाम हैं और उन सबके पीछे कोई न कोई भागवन की महिमा छुपी हुई है. खैर, आईये जानते हैं एक और पौराणिक कथा शिव जी की महिमा की.
महाशिवरात्रि का व्रत रखने वालों को सुनाई जाती है ये कहानी
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक लकड़हारा जंगल में लकड़ी काटने गया था. लकड़ी काटते-काटते बहुत रात हो गई. अंधेरा होने के कारण लकड़हारे को रास्ता समझ नहीं आ रहा था. वहीं वह जंगल के बहुत अंदर था, जिसके कारण उसे जंगली जानवरों का भी भय था.
इन सबसे बचने के लिए लकड़हारा एक पेड़ पर बैठ गया, लेकिन उसे डर था कि अगर वह पेड़ पर सो गया, तो वह नीचे गिर जाएगा और जानवर उसे खा जाएंगे. इसलिए वह जागता रहा. पेड़ पर बैठे-बैठे लकड़हारे ने पत्ती तोड़ना शुरू किया और पत्ती को तोड़कर उसे पेड़ से नीचे गिराता गया और शिव जी का नाम जपता रहा.
जब सुबह हुई तो उसने देखा कि वह पत्तियां शिवलिंग पर गिरा रहा था और वह जिस पेड़ पर बैठा था वह बेल पत्र का पेड़ था. उसकी इस पूजा से शंकर भगवान काफी खुश हुए और उसे आशीर्वाद दिया.
कहते हैं कि ये कथा उन्हें सुनाई जाती है, जो महाशिवरात्रि का व्रत रहते हैं. रात में चढ़ाया गया प्रसाद से दूसरे दिन सुबह भक्त अपना व्रत तोड़ते हैं.
भगवान भोलेनाथ हुए थे 12 जगहों पर प्रकट
यूं तो कई कहानियां शिव जी की प्रचलित हैं, लेकिन शिव शंकर ज्योतिर्लिंग की अलग ही मान्यता है. कहते हैं कि जहां-जहां शिव जी स्वंय प्रकट हुए थे, वह ज्योतिर्लिंग कहलाई.
भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंग हैं...
सोमनाथ- यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के प्रभास पाटन, सौराष्ट्र में स्थित है.
केदारनाथ- यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड के केदारनाथ में स्थित है.
महाकालेश्वर- यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है.
काशी विश्वनाथ- यह ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है.
रामेश्वर- यह ज्योतिर्लिंग तमिल नाडू के रामेश्वरम में स्थित है.
वैद्दवाथ- यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के बीड जिला में स्थित है.
मल्लिकार्जुन- यह ज्योतिर्लिंग आंद्र प्रदेश के कुर्नूल में स्थित है.
ॐकारेश्वर- यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के नर्मदा नदी में एक द्वीप पर स्थित है.
भीमाशंकर- यह ज्योतिर्लिंग महाराष्द्र के भीमाशंकर में स्थित है.
त्र्यम्बकेश्वर- यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के त्र्यम्बकेश्वर, निकट नासिक में स्थित है.
नागेश्वर- यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका में स्थित है.
घृष्णेश्वर- यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिला, एलोरा के पास में स्थित है.
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