लखनऊ: राजधानी में बुधवार की रात लोहड़ी के त्योहार की धूम देखते ही बनी. जिले के चारबाग, आलमबाग, सिंगारनगर, टेढ़ी पुलिया सहित कई इलाकों में लोहड़ी का त्योहार हर्षोल्लास से मनाया गया. आग के चारों ओर बच्चे, युवा, पुरुष-महिलाएं नृत्य-संगीत करते हुए दिखे. लोगों ने मूंगफली, रेवड़ी का प्रसाद खाकर एक-दूसरे को लोहड़ी की बधाई दी.
धूमधाम से मनाई गई लोहड़ी, दिखी लोगों की चहल-पहल
यूपी की राजधानी लखनऊ में बुधवार रात पूरे हर्षोल्लास के साथ लोहड़ी का त्योहार मनाया गया. लोहड़ी का त्योहार फसल की कटाई और बुआई के तौर पर मनाया जाता है. लोग आग जलाकर इसके इर्द-गिर्द नाचते-गाते और खुशियां मनाते हैं.
हर्षोल्लास के साथ मनाई गई लोहड़ी.
लखनऊ: राजधानी में बुधवार की रात लोहड़ी के त्योहार की धूम देखते ही बनी. जिले के चारबाग, आलमबाग, सिंगारनगर, टेढ़ी पुलिया सहित कई इलाकों में लोहड़ी का त्योहार हर्षोल्लास से मनाया गया. आग के चारों ओर बच्चे, युवा, पुरुष-महिलाएं नृत्य-संगीत करते हुए दिखे. लोगों ने मूंगफली, रेवड़ी का प्रसाद खाकर एक-दूसरे को लोहड़ी की बधाई दी.
नाका स्थित श्रीगुरुसिंह सभा, गुरुद्वारा में लोहड़ी की खुशी दिखाई दी. गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा जी ने उपस्थित संगतों को लोहड़ी बधाई दी. उन्होंने बताया कि लोहड़ी एक सामाजिक पर्व है. पंजाबी समाज के लोग बेटे की शादी की पहली लोहड़ी या बच्चे के जन्म की पहली लोहड़ी बड़ी खुशी एवं उल्लास के साथ मनाते हैं. गुरुद्वारा भवन के समक्ष कोविड-19 की गाइडलाइन मास्क लगाकर एवं सोशल डिस्टेंसिग का पालन करते हुए त्योहार को मनाया गया.
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था
बग्गा जी ने आगे बताया कि लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था. यह शब्द तिल और रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) के शब्दों से बना है, जो समय के साथ बदलकर लोहड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गया. इस पर्व पर लकड़ियों को इकट्ठा कर आग जलाई जाती है और अग्नि के चारों तरफ चक्कर लगाकर अपने जीवन को खुशियों और सुख-शान्ति से व्यतीत होने की कामना की जाती है. लोहड़ी की आग में रेवड़ी, मूंगफली, मक्की के दानों की आहूति देते हैं. साथ ही नाचते गाते हैं, जिस घर में नई शादी हुई होती है या बच्चा पैदा होता है, वह इस त्योहार को विशेष तौर पर मनाता है.
लोहड़ी की कथा
कहा जाता है कि लोहड़ी की रात बहुत ठंडी और लम्बी होती है. लोहड़ी के बाद रात छोटी और दिन बड़ा हो जाता है. गाथा है कि बादशाह अकबर के समय दुल्ला भट्ठी नाम का डाकू था. वह दिल का बड़ा नेक था, वह अमीरों को लूटकर गरीबों मे बांट देता था. वह अमीरों द्वारा जबर्दस्ती से गुलाम बनाई गई लड़कियों को उनसे छुड़वाकर उनकी शादी करवा देता था. दहेज भी अपने पास से देता था. वह दुल्ला भट्ठी वाला के नाम से प्रसिद्ध हो गया, तभी से लोहड़ी की रात लोग आग जलाकर और रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर नाचते गाते हैं और उसका गुणगान करते हैं.
नाका स्थित श्रीगुरुसिंह सभा, गुरुद्वारा में लोहड़ी की खुशी दिखाई दी. गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा जी ने उपस्थित संगतों को लोहड़ी बधाई दी. उन्होंने बताया कि लोहड़ी एक सामाजिक पर्व है. पंजाबी समाज के लोग बेटे की शादी की पहली लोहड़ी या बच्चे के जन्म की पहली लोहड़ी बड़ी खुशी एवं उल्लास के साथ मनाते हैं. गुरुद्वारा भवन के समक्ष कोविड-19 की गाइडलाइन मास्क लगाकर एवं सोशल डिस्टेंसिग का पालन करते हुए त्योहार को मनाया गया.
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था
बग्गा जी ने आगे बताया कि लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था. यह शब्द तिल और रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) के शब्दों से बना है, जो समय के साथ बदलकर लोहड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गया. इस पर्व पर लकड़ियों को इकट्ठा कर आग जलाई जाती है और अग्नि के चारों तरफ चक्कर लगाकर अपने जीवन को खुशियों और सुख-शान्ति से व्यतीत होने की कामना की जाती है. लोहड़ी की आग में रेवड़ी, मूंगफली, मक्की के दानों की आहूति देते हैं. साथ ही नाचते गाते हैं, जिस घर में नई शादी हुई होती है या बच्चा पैदा होता है, वह इस त्योहार को विशेष तौर पर मनाता है.
लोहड़ी की कथा
कहा जाता है कि लोहड़ी की रात बहुत ठंडी और लम्बी होती है. लोहड़ी के बाद रात छोटी और दिन बड़ा हो जाता है. गाथा है कि बादशाह अकबर के समय दुल्ला भट्ठी नाम का डाकू था. वह दिल का बड़ा नेक था, वह अमीरों को लूटकर गरीबों मे बांट देता था. वह अमीरों द्वारा जबर्दस्ती से गुलाम बनाई गई लड़कियों को उनसे छुड़वाकर उनकी शादी करवा देता था. दहेज भी अपने पास से देता था. वह दुल्ला भट्ठी वाला के नाम से प्रसिद्ध हो गया, तभी से लोहड़ी की रात लोग आग जलाकर और रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर नाचते गाते हैं और उसका गुणगान करते हैं.