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कोर्ट परिसर में वकील भी नहीं रख सकते शस्त्र, उनका लाइसेंस निरस्त करके FIR दर्ज करें: हाईकोर्ट

मंगलवार को अपने एक आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि कोर्ट परिसर में वकील भी नहीं शस्त्र रख सकते (Lawyers cannot keep weapons in court premises). ऐसे लोगों के लाइसेंस निरस्त किये जाएं और एफआईआर दर्ज हो.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 20, 2023, 6:59 AM IST

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Allahabad High Court Lucknow Bench) ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय पारित करते हुए कहा है कि कोर्ट परिसर के भीतर वकील समेत कोई भी व्यक्ति शस्त्र नहीं रख सकता है, शस्त्र रखने का अधिकार सिर्फ सुरक्षाकर्मियों को है. न्यायालय ने प्रदेश के सभी जनपद न्यायाधीशों, न्यायाइक अधिकारियों, जिला अधिकारियों, कोर्ट परिसरों के सुरक्षा प्रभारियों व शस्त्र लाइसेंस प्राधिकारियों को आदेश दिया है कि कोर्ट परिसर के भीतर हथियार रखने वाले वकीलों समेत अन्य लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं.

साथ ही उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने व उनके शस्त्र लाइसेंस निरस्त करने की भी कार्रवाई की जाए. न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि कोर्ट परिसर के भीतर, अधिवक्ता चैंबर्स, कैंटीन, बार एसोसिएशन्स, व परिसर के भीतर किसी भी सार्वजनिक स्थल पर शस्त्र लेकर जाना लोक शांति व लोक सुरक्षा के लिए खतरा माना जाएगा.

यह निर्णय न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने अमनदीप सिंह की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया. याचिका में याची का शस्त्र लाइसेंस निरस्त करने सम्बंधी आदेश को चुनौती दी गई थी. याची का कहना था कि वह एक जूनियर अधिवक्ता है और तमाम विपक्षी पक्षकारों की नाराजगी की वजह से उसे जान का खतरा है. यह भी दलील दी गई कि अपने जीवन और सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए शस्त्र रखना उसका मौलिक अधिकार है. याचिका का राज्य सरकार की ओर से विरोध करते हुए कहा गया कि बाराबंकी कचहरी परिसर में शस्त्र लेकर जाने के कारण याची का लाइसेंस रद् किया गया है.

न्यायालय ने अपने विस्तृत निर्णय में कहा कि शस्त्र रखना किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार नहीं है बल्कि यह राज्य द्वारा दिया जाने वाला एक विशेषाधिकार है. न्यायालय ने याची के दलीलों पर आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि यह न्यायिक इतिहास का एक निराशाजनक क्षण है जबकि एक अधिवक्ता जिसकी महज दो सालों की प्रैक्टिस है, वह यह दलील दे रहा है कि पेशे में सफलता के लिए कोर्ट रूम में असलहा लेकर जाना आवश्यक है.

न्यायालय ने नसीहत देते हुए कहा कि एक अधिवक्ता के लिए हमेशा से कानून का ज्ञान, कठिन परिश्रम और ताकत जो उसके कलम से निकलती है, महत्वपूर्ण रहे हैं. न्यायालय ने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि कानून के पेशे में अब व्यवस्थित ट्रेनिंग के बिना आने वालों की भीड़ बढ़ रही है. न्यायालय ने बार काउंसिल को भी इस सम्बंध में उपाय करने की सलाह दी है. न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाकर्मियों के सिवाय किसी भी अन्य व्यक्ति के कोर्ट परिसर में शस्त्र लेकर जाने पर उसका लाइसेंस निरस्त किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- दस दिन में शिकायतों का निस्तारण नहीं हुआ तो नपेंगे थानेदार, PGRP के जरिए DGP खुद रखेंगे नजर

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Allahabad High Court Lucknow Bench) ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय पारित करते हुए कहा है कि कोर्ट परिसर के भीतर वकील समेत कोई भी व्यक्ति शस्त्र नहीं रख सकता है, शस्त्र रखने का अधिकार सिर्फ सुरक्षाकर्मियों को है. न्यायालय ने प्रदेश के सभी जनपद न्यायाधीशों, न्यायाइक अधिकारियों, जिला अधिकारियों, कोर्ट परिसरों के सुरक्षा प्रभारियों व शस्त्र लाइसेंस प्राधिकारियों को आदेश दिया है कि कोर्ट परिसर के भीतर हथियार रखने वाले वकीलों समेत अन्य लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं.

साथ ही उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने व उनके शस्त्र लाइसेंस निरस्त करने की भी कार्रवाई की जाए. न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि कोर्ट परिसर के भीतर, अधिवक्ता चैंबर्स, कैंटीन, बार एसोसिएशन्स, व परिसर के भीतर किसी भी सार्वजनिक स्थल पर शस्त्र लेकर जाना लोक शांति व लोक सुरक्षा के लिए खतरा माना जाएगा.

यह निर्णय न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने अमनदीप सिंह की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया. याचिका में याची का शस्त्र लाइसेंस निरस्त करने सम्बंधी आदेश को चुनौती दी गई थी. याची का कहना था कि वह एक जूनियर अधिवक्ता है और तमाम विपक्षी पक्षकारों की नाराजगी की वजह से उसे जान का खतरा है. यह भी दलील दी गई कि अपने जीवन और सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए शस्त्र रखना उसका मौलिक अधिकार है. याचिका का राज्य सरकार की ओर से विरोध करते हुए कहा गया कि बाराबंकी कचहरी परिसर में शस्त्र लेकर जाने के कारण याची का लाइसेंस रद् किया गया है.

न्यायालय ने अपने विस्तृत निर्णय में कहा कि शस्त्र रखना किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार नहीं है बल्कि यह राज्य द्वारा दिया जाने वाला एक विशेषाधिकार है. न्यायालय ने याची के दलीलों पर आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि यह न्यायिक इतिहास का एक निराशाजनक क्षण है जबकि एक अधिवक्ता जिसकी महज दो सालों की प्रैक्टिस है, वह यह दलील दे रहा है कि पेशे में सफलता के लिए कोर्ट रूम में असलहा लेकर जाना आवश्यक है.

न्यायालय ने नसीहत देते हुए कहा कि एक अधिवक्ता के लिए हमेशा से कानून का ज्ञान, कठिन परिश्रम और ताकत जो उसके कलम से निकलती है, महत्वपूर्ण रहे हैं. न्यायालय ने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि कानून के पेशे में अब व्यवस्थित ट्रेनिंग के बिना आने वालों की भीड़ बढ़ रही है. न्यायालय ने बार काउंसिल को भी इस सम्बंध में उपाय करने की सलाह दी है. न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाकर्मियों के सिवाय किसी भी अन्य व्यक्ति के कोर्ट परिसर में शस्त्र लेकर जाने पर उसका लाइसेंस निरस्त किया जा सकता है.

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