लखनऊ: राजधानी के हृदय रोग अस्पतालों में जहां बीमार मरीजों को समय से इलाज दिलाना चुनौती थी, वहां अब सन्नाटा है. वजह मरीज का कम होना नहीं, बल्कि लॉकडाउन है. इसकी वजह से मरीज अस्पताल नहीं पहुंच पा रहे हैं या उनमें जानकारी का अभाव है.
राजधानी के हृदय रोग अस्पतालों की बात की जाए तो लॉकडाउन से पहले सैकड़ों की संख्या में मरीज आते थे, लेकिन अब वहां इक्का-दुक्का मरीज ही इमरजेंसी की हालत में भर्ती होते हैं.
केजीएमयू के लॉरी कार्डियोलॉजी सेंटर की बात की जाए तो लॉकडाउन से पहले वहां पर प्रतिदिन 650 मरीजों की ओपीडी होती थी. लॉकडाउन के दौरान ओपीडी बंद हो गई है, लेकिन इमरजेंसी में मरीज अभी भी भर्ती किए जा रहे हैं.
विभाग के एचओडी डॉक्टर वीएस नारायण का कहना है कि लॉकडाउन के बाद से मरीजों के अस्पताल तक आने में 60 से 70 प्रतिशत तक की कमी आई है. वह कहते हैं कि इसकी कई वजह हो सकती हैं. पहली वजह यह हो सकती है कि लोगों में जानकारी का अभाव हो कि इस वक्त हृदय विभाग खुला होगा या नहीं. इसके अलावा हृदय रोगियों को इंफेक्शन होने का खतरा भी अधिक होता है. ऐसे में अस्पताल आने से कतराते हैं. इसके अलावा समय पर उन्हें पब्लिक ट्रांसपोर्ट का न मिलना भी एक बड़ी वजह हो सकती है.
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ और कंसलटेंट डॉ राजेश श्रीवास्तव कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान ओपीडी पूरी तरह से बंद कर दी गई है. ऐसे में इमरजेंसी में आने वाले मरीजों को ही जरूरत पड़ने पर भर्ती किया जा रहा है. अगर इमरजेंसी की बात की जाए तो पहले की अपेक्षा यहां पर लॉकडाउन के बाद मरीजों की कमी देखी जा सकती है.
डॉक्टर श्रीवास्तव कहते हैं कि इसकी एक मुख्य वजह स्ट्रेस कम होना भी हो सकता है. लोगों की भाग दौड़ भरी जिंदगी में विराम लग गया है. ऐसे में अधिक फिजिकल एक्टिविटी न होने की वजह से हार्ट अटैक जैसे हादसे कम हो रहे हैं. इसके अलावा उनके खान-पान में भी सुधार आया है.
संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. आदित्य कपूर का कहना है भारत ही नहीं विदेशों में भी हृदय रोग से जुड़े मामलों में कमी देखने को मिली है. वह कहते हैं कि एसजीपीजीआई कि यदि बात की जाए तो यहां पर इमरजेंसी में आने वाले मरीजों की संख्या 70 प्रतिशत तक कम हुई है. इनमें हार्ट अटैक हार्ट ब्लॉकेज जैसे मरीज भी काफी कम आ रहे हैं. अमेरिका के एक जर्नल के मुताबिक, कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद के पहले महीने में हृदय संबंधी रोगियों में 50 से 60 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है. वहीं स्पेन की यदि बात की जाए तो वहां पर भी कार्डियोलॉजी के मरीजों में 70 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है.
डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर भुवन चंद्र की माने तो संस्थान में शहर के मुकाबले दूसरे जिलों से मरीज अधिक आते थे, लेकिन लॉकडाउन होने की वजह से अब यह मरीज संस्थान में न आकर अपने ही शहर में इलाज करवा रहे हैं. कुछ मरीज डॉक्टरों से फोन पर बात कर मेडिकेशन ले रहे हैं. लोहिया संस्थान में गोरखपुर, फैजाबाद, बाराबंकी, बस्ती, हरदोई, सीतापुर जैसे जिलों से रोजाना ओपीडी में आते थे. डॉ भुवन कहते हैं कि अब इमरजेंसी में भी हार्ट ब्लॉकेज या पेसमेकर लगाने की जरूरत वाले पेशेंट ही भर्ती किए जा रहे हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े
अस्पतालों में रोगियों के आंकड़ों की बात की जाए तो लॉकडाउन से पहले और लॉकडाउन के बाद की स्थिति में काफी अंतर आया है. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल में लॉकडाउन से पहले रोजाना 250 मरीजों की ओपीडी होती थी. वहीं इमरजेंसी में 8 से 10 मरीज भर्ती किए जाते थे. लॉकडाउन के बाद ओपीडी पूरी तरह से बंद है और इमरजेंसी में भी तीन से चार मरीजों को ही भर्ती करने की स्थिति आती है.
एसजीपीजीआई में मरीजों की बात की जाए तो 500 से 600 मरीजों की ओपीडी रोजाना होती थी, लेकिन फिलहाल यह बंद है. कुछ ऐसी ही स्थिति केजीएमयू में भी है. केजीएमयू में 650 मरीजों की ओपीडी रोजाना होती थी, लेकिन लॉकडाउन के बाद से सिर्फ इमरजेंसी में आने वाले मरीजों को ही भर्ती किया जा रहा है.
डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में लॉकडाउन के बाद इमरजेंसी के दौरान तकरीबन 5 मरीजों को पेसमेकर लगाया गया है और 6 मरीजों की एनजीओप्लास्टी की गई है. हालांकि लॉकडाउन से पहले यह संख्या दोगुनी या और अधिक होती थी.
विशेषज्ञों के अनुसार इन कारणों के साथ ही लॉकडाउन में बंद हुई तमाम नशे की चीजों का कम होना भी कहीं न कहीं हृदय रोग को कम करने में सहायक है. लेकिन यदि इमरजेंसी में मरीजों को अस्पताल आना पड़े तो लॉकडाउन में बंद हुई ट्रांसपोर्ट सेवा कहीं न कहीं एक मुख्य कारण हो सकती हैं.
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