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लखनऊ: ऑटो पार्ट्स की कमी से जूझ रहे परिवहन निगम के स्टोर

उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के लखनऊ परिक्षेत्र के सभी डिपो की बात की जाए तो यहां पर वर्कशॉप के स्टोर्स में पार्ट्स की बड़ी कमी है. इस कारण से बसों का संचालन नहीं हो पा रहा है. इससे रोडवेज की आय पर भी जबरदस्त असर पड़ रहा है. अधिकारियों का ध्यान भी इस ओर नहीं जा रहा है.

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Published : Oct 20, 2020, 7:28 PM IST

ऑटो पार्ट्स की कमी से जूझ रहे परिवहन निगम के स्टोर
ऑटो पार्ट्स की कमी से जूझ रहे परिवहन निगम के स्टोर

लखनऊ: रोडवेज बसों का चक्का हिलता है तभी महीने के आखिर में अधिकारियों और कर्मचारियों की जेब में पैसा आता है. वेतन अधिकारियों को भी चाहिए और कर्मचारियों को भी, लेकिन बसों के संचालन पर ध्यान किसी का नहीं है. दरअसल परिवहन निगम के अधिकारी वर्कशॉप में पार्ट्स नहीं उपलब्ध करा रहे हैं, जिससे रोडवेज बस चलने के बजाय खड़ी हैं. इस समय ऑटो पार्ट्स की भयंकर कमी से परिवहन निगम के स्टोर्स जूझ रहे हैं. ऐसे में तमाम बसें मरम्मत के अभाव में डिपो के अंदर ही खड़ी हैं. जब बसों का संचालन नहीं हो पा रहा है, तो रोडवेज की आय पर भी जबरदस्त असर पड़ रहा है. इसके बावजूद अधिकारियों का ध्यान अब तक इधर नहीं गया. डिपो की तरफ से ऑटो पार्ट्स की डिमांड भेजी जाती है, लेकिन उसे पूरा नहीं किया जा रहा. अफसर इस पर कुछ बोलने को भी तैयार नहीं है.

जानकारी देते संवाददाता.



अपने पास से खरीदकर ड्राइवर लगाते हैं शीशे
उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के लखनऊ परिक्षेत्र के सभी डिपो की बात की जाए तो यहां पर वर्कशॉप के स्टोर्स में पार्ट्स की बड़ी कमी है. बस चालक पार्ट्स न मिलने के चलते बसें भी सड़क पर नहीं निकाल पा रहे हैं. इससे संविदा कर्मियों का काफी नुकसान हो रहा है. कैसरबाग डिपो की बात की जाए तो यहां के वर्कशॉप के स्टोर में जरूरत का काफी कम सामान है. बसों के शीशे वर्कशॉप में हैं ही नहीं. ड्राइवरों को खुद से शीशा खरीद कर बसों में लगाना पड़ रहा है. उपनगरीय डिपो के ड्राइवर सामान न मिलने के चलते काफी परेशान हैं. चालक बताते हैं कि कई बार जब सामान की डिमांड की जाती है, तब जाकर बसों में कहीं सामान मिल पाता है. इसके चलते बसें संचालित नहीं हो पा रही हैं, जिससे संविदा चालक-परिचालकों को पैसे नहीं मिल पा रहे हैं.

वाटर बॉडी की व्यवस्था नहीं
लखनऊ रीजन के हैदरगढ़ डिपो के चालक सुशील मिश्रा 19 सितंबर को लखनऊ से गोरखपुर के लिए बस (यूपी 78 एफएन 1764) लेकर निकले. खलीलाबाद के पास यह बस खराब हो गई. बस की वाटर बॉडी में फाल्ट आ गया. सुनसान इलाके में बस खराब होने पर ड्राइवर सुशील मिश्रा ने हैदर गढ़ डिपो के फोरमैन को इसकी जानकारी दी. फोरमैन लगातार टालमटोल करते रहे. तीन दिन बाद बस का पार्ट्स मिला, तब जाकर बस चल पाई.

रस्सी बांधकर बस लाए लखनऊ
कुछ दिन पहले हैदरगढ़ डिपो की दिल्ली रूट पर चलने वाली बस के गियर में बीच रास्ते में खराबी आ गई. चालक प्रदीप पांडेय किसी तरह दिल्ली से वापस लखनऊ बस लाए. महिला परिचालक नीलम भारद्वाज गियर बॉक्स में रस्सी बांधकर बस को हैदरगढ़ डिपो तक लाईं. अभी तक इस बस के पार्ट्स नहीं मिले हैं. अधिकारियों का कहना है कि टाटा के कई पार्ट्स मार्केट में नहीं मिले, इस वजह से लेट हो रहा है.


अधिकारी कुछ भी बोलने से कतरा रहे
रोडवेज वर्कशॉप में ऑटो पार्ट्स की कमी को लेकर जब 'ईटीवी भारत' ने परिवहन निगम मुख्यालय पर तैनात मुख्य प्रधान प्रबंधक (प्राविधिक) जयदीप वर्मा से बात की तो उन्होंने इस पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया. हां, यह जरूर माना कि कोरोना के कारण काफी दिन से पार्ट्स की खरीदारी नहीं हो पाई है. इसके चलते बसों का संचालन भी प्रभावित हुआ है.

पूरी नहीं होती डिमांड
रोडवेज के वर्कशॉप में सामान की काफी कमी है, लेकिन खुलकर न मकैनिक बोल पाता है न कोई फोरमैन. ड्राइवर-कंडक्टर लगातार सामान की डिमांड करते रहते हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं होती. इससे बसों का संचालन भी प्रभावित हो रहा है. जब बसें चलेंगी तभी तो वेतन मिलेगा. इस पर भी अधिकारियों को ध्यान देना चाहिए.




लखनऊ: रोडवेज बसों का चक्का हिलता है तभी महीने के आखिर में अधिकारियों और कर्मचारियों की जेब में पैसा आता है. वेतन अधिकारियों को भी चाहिए और कर्मचारियों को भी, लेकिन बसों के संचालन पर ध्यान किसी का नहीं है. दरअसल परिवहन निगम के अधिकारी वर्कशॉप में पार्ट्स नहीं उपलब्ध करा रहे हैं, जिससे रोडवेज बस चलने के बजाय खड़ी हैं. इस समय ऑटो पार्ट्स की भयंकर कमी से परिवहन निगम के स्टोर्स जूझ रहे हैं. ऐसे में तमाम बसें मरम्मत के अभाव में डिपो के अंदर ही खड़ी हैं. जब बसों का संचालन नहीं हो पा रहा है, तो रोडवेज की आय पर भी जबरदस्त असर पड़ रहा है. इसके बावजूद अधिकारियों का ध्यान अब तक इधर नहीं गया. डिपो की तरफ से ऑटो पार्ट्स की डिमांड भेजी जाती है, लेकिन उसे पूरा नहीं किया जा रहा. अफसर इस पर कुछ बोलने को भी तैयार नहीं है.

जानकारी देते संवाददाता.



अपने पास से खरीदकर ड्राइवर लगाते हैं शीशे
उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के लखनऊ परिक्षेत्र के सभी डिपो की बात की जाए तो यहां पर वर्कशॉप के स्टोर्स में पार्ट्स की बड़ी कमी है. बस चालक पार्ट्स न मिलने के चलते बसें भी सड़क पर नहीं निकाल पा रहे हैं. इससे संविदा कर्मियों का काफी नुकसान हो रहा है. कैसरबाग डिपो की बात की जाए तो यहां के वर्कशॉप के स्टोर में जरूरत का काफी कम सामान है. बसों के शीशे वर्कशॉप में हैं ही नहीं. ड्राइवरों को खुद से शीशा खरीद कर बसों में लगाना पड़ रहा है. उपनगरीय डिपो के ड्राइवर सामान न मिलने के चलते काफी परेशान हैं. चालक बताते हैं कि कई बार जब सामान की डिमांड की जाती है, तब जाकर बसों में कहीं सामान मिल पाता है. इसके चलते बसें संचालित नहीं हो पा रही हैं, जिससे संविदा चालक-परिचालकों को पैसे नहीं मिल पा रहे हैं.

वाटर बॉडी की व्यवस्था नहीं
लखनऊ रीजन के हैदरगढ़ डिपो के चालक सुशील मिश्रा 19 सितंबर को लखनऊ से गोरखपुर के लिए बस (यूपी 78 एफएन 1764) लेकर निकले. खलीलाबाद के पास यह बस खराब हो गई. बस की वाटर बॉडी में फाल्ट आ गया. सुनसान इलाके में बस खराब होने पर ड्राइवर सुशील मिश्रा ने हैदर गढ़ डिपो के फोरमैन को इसकी जानकारी दी. फोरमैन लगातार टालमटोल करते रहे. तीन दिन बाद बस का पार्ट्स मिला, तब जाकर बस चल पाई.

रस्सी बांधकर बस लाए लखनऊ
कुछ दिन पहले हैदरगढ़ डिपो की दिल्ली रूट पर चलने वाली बस के गियर में बीच रास्ते में खराबी आ गई. चालक प्रदीप पांडेय किसी तरह दिल्ली से वापस लखनऊ बस लाए. महिला परिचालक नीलम भारद्वाज गियर बॉक्स में रस्सी बांधकर बस को हैदरगढ़ डिपो तक लाईं. अभी तक इस बस के पार्ट्स नहीं मिले हैं. अधिकारियों का कहना है कि टाटा के कई पार्ट्स मार्केट में नहीं मिले, इस वजह से लेट हो रहा है.


अधिकारी कुछ भी बोलने से कतरा रहे
रोडवेज वर्कशॉप में ऑटो पार्ट्स की कमी को लेकर जब 'ईटीवी भारत' ने परिवहन निगम मुख्यालय पर तैनात मुख्य प्रधान प्रबंधक (प्राविधिक) जयदीप वर्मा से बात की तो उन्होंने इस पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया. हां, यह जरूर माना कि कोरोना के कारण काफी दिन से पार्ट्स की खरीदारी नहीं हो पाई है. इसके चलते बसों का संचालन भी प्रभावित हुआ है.

पूरी नहीं होती डिमांड
रोडवेज के वर्कशॉप में सामान की काफी कमी है, लेकिन खुलकर न मकैनिक बोल पाता है न कोई फोरमैन. ड्राइवर-कंडक्टर लगातार सामान की डिमांड करते रहते हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं होती. इससे बसों का संचालन भी प्रभावित हो रहा है. जब बसें चलेंगी तभी तो वेतन मिलेगा. इस पर भी अधिकारियों को ध्यान देना चाहिए.




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