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जब जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद ने दी थी सोनिया गांधी को चुनौती....

कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद ने बगावत करते हुए बुधवार को बीजेपी का दामन थाम लिया. उनका बीजेपी में शामिल होना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. जितिन प्रसाद को बगावत विरासत में ही मिली है. उनके पिता जितेंद्र प्रसाद ने भी साल 2000 में बगावत करते हुए कांग्रेस अध्‍यक्ष पद के लिए सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था.

जितेंद्र प्रसाद और सोनिया गांधी.
जितेंद्र प्रसाद और सोनिया गांधी.
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Published : Jun 9, 2021, 5:11 PM IST

Updated : Jun 9, 2021, 6:41 PM IST

लखनऊ: कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने कांग्रेस से बगावत करके बीजेपी का दामन थाम लिया. जितिन प्रसाद को बगावत विरासत में ही मिली है. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की किचन कैबिनेट में शामिल रहे दिग्गज कांग्रेस नेता व जितिन प्रसाद के पिता स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद ने भी एक बार कांग्रेस से बगावत की थी. जब नवंबर 2000 में सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रही थी. उस समय जितेंद्र प्रसाद ने बगावत करते हुए सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. हालांकि जितेंद्र प्रसाद चुनाव हार गए थे. उस वक्त जितेंद्र प्रसाद पार्टी में पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गए थे.

सीताराम केसरी को हटाने के विरोध में थे जितेंद्र प्रसाद
सोनिया गांधी ने 1997 में जब कांग्रेस पार्टी प्राथमिक सदस्यता ली, तब सीताराम केसरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. उनका 5 साल का कार्यकाल पूरा भी नहीं हुआ था कि 1998 में सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. लेकिन सीताराम केसरी सोनिया के इस घोषणा का विरोध नहीं कर सके. सोनिया के समर्थन में पार्टी नेता इस कदर एकजुट हो गए थे कि सीताराम केसरी को पार्टी मुख्यालय के अंदर तक नहीं आने दिया था. जितेंद्र प्रसाद भी सोनिया गांधी को इतनी जल्दी पार्टी अध्यक्ष बनाने के पक्षधर नहीं थे.

यहीं से शुरू हुई थी पार्टी में बगावत
जितेंद्र प्रसाद के अलावा तत्कालीन कांग्रेस पार्टी नेता शरद पवार, पीए संगमा, तारिक अनवर भी सोनिया को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के खिलाफ थे. उनका साफ तौर पर कहना था कि विदेशी मूल की महिला पार्टी में शीर्ष पद पर नहीं रह सकती. जबकि पार्टी के अंदर एक गुट सोनिया गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी में जुटा था. इन तीनों नेताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा और उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. बाद में इन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी )बना ली.

राजेश पायलट और जितेंद्र प्रसाद भी हो गए थे बागी
जब पार्टी ने शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर को निकाल दिया. तब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेहद करीबी मित्र माने जाने वाले राजेश पायलट ने सोनिया गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उनका कहना था कि पार्टी में सोनिया गांधी से भी काबिल और अनुभवी नेता मौजूद हैं तो अचानक से एक नए चेहरे को पार्टी की कमान देना उचित नहीं. कहा तो यहां तक जाता है कि राजेश पायलट खुद 1998 सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतरने को तैयार थे. लेकिन काफी मनाने के बाद उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए बाद में एक प्लेन क्रैश में राजेश पायलट की मौत हो गई.

जितेंद्र प्रसाद सोनिया के खिलाफ उतर गए मैदान में
साल 1998 में सोनिया के खिलाफ शुरू हुई बगावत साल 2000 और तेज हो गई. जितेंद्र प्रसाद ने बगावती सुर अपनाते हुए पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में सोनिया का विरोध करने का निश्चय कर लिया और उन्होंने चुनाव लड़ भी लिया, लेकिन गांधी परिवार की स्वीकृति पार्टी के अंदर इस हद तक थी कि जितेंद्र प्रसाद को महज 94 वोट मिले. वहीं, 7448 वोट सोनिया गांधी को मिले. इसमें कुल 7,542 वोट पड़े थे. जितेंद्र प्रसाद के तत्कालीन करीबियों का कहना है कि वह सोनिया के खिलाफ मिली करारी हार को बर्दाश्त नहीं कर पाए और 16 जनवरी 2001 को ब्रेन हैमरेज से दिल्ली में उनका निधन हो गया.

जितेंद्र प्रसाद का सियासी सफर
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के रहने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत 70 के दशक में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य के रूप में शुरू की थी. इसके बाद वर्ष 1971 में वह शाहजहांपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने थे. इसके बाद वे कई बार लोकसभा सांसद के रूप में निर्वाचित हुए. जितेंद्र प्रसाद 1994 से 1999 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं. इसके बाद साल 1999 वह एक बार फिर तेरहवीं लोकसभा के लिए सांसद के रूप में निर्वाचित हुए. जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे हैं और उनके पिता कुंवर ज्योति प्रसाद भी कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में रहे हैं और वह कांग्रेस के विधायक भी रहे हैं.

पूर्व पीएम राजीव गांधी के थे राजनीतिक सलाहकार
उत्तर प्रदेश की राजनीति के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में भी जितेंद्र प्रसाद का दबदबा रहा है. कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी व नरसिम्हा राव के राजनीतिक सलाहकार के रूप में भी काम किया. साल 2000 में जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर पार्टी के वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी चुनाव लड़ रही थी तो वह लोकतंत्र को खतरे में बताते हुए सोनिया गांधी के खिलाफ ही अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ा था. हालांकि वह चुनाव जीत नहीं सके और उन्होंने पार्टी छोड़ दी. हालांकि कुछ दिनों बाद ही दोबारा कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए.

अपने राजनीतिक सफर के दौरान स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष व ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य सहित तमाम अन्य समितियों में भी सदस्य रहे हैं. इसके अलावा लोकसभा व केंद्र सरकार की कई संसदीय समितियों के भी सदस्य वह बनते रहे हैं. इसके अलावा वह कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे हैं. केंद्र सरकार के कई मंत्रालयों में वह सलाहकार के रूप में भी काम कर चुके हैं. साल 2001 में उनका निधन हो गया. उसके बाद उनके बेटे जितिन प्रसाद उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेताओं में स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद का नाम शामिल है. शाहजहांपुर लोकसभा क्षेत्र से कई बार संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए और 1970 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य भी निर्वाचित हुए थे. इसके बाद वह कई बार शाहजहांपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी व नरसिम्हा राव के राजनीतिक सलाहकार भी रहे हैं केंद्र सरकार की कई समितियों और अन्य मंत्रालयों समितियों में भी रहे हैं वह कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- जितिन प्रसाद ने थामा भाजपा का दामन, कहा कांग्रेस व्यक्ति विशेष दल

लखनऊ: कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने कांग्रेस से बगावत करके बीजेपी का दामन थाम लिया. जितिन प्रसाद को बगावत विरासत में ही मिली है. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की किचन कैबिनेट में शामिल रहे दिग्गज कांग्रेस नेता व जितिन प्रसाद के पिता स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद ने भी एक बार कांग्रेस से बगावत की थी. जब नवंबर 2000 में सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रही थी. उस समय जितेंद्र प्रसाद ने बगावत करते हुए सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. हालांकि जितेंद्र प्रसाद चुनाव हार गए थे. उस वक्त जितेंद्र प्रसाद पार्टी में पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गए थे.

सीताराम केसरी को हटाने के विरोध में थे जितेंद्र प्रसाद
सोनिया गांधी ने 1997 में जब कांग्रेस पार्टी प्राथमिक सदस्यता ली, तब सीताराम केसरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. उनका 5 साल का कार्यकाल पूरा भी नहीं हुआ था कि 1998 में सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. लेकिन सीताराम केसरी सोनिया के इस घोषणा का विरोध नहीं कर सके. सोनिया के समर्थन में पार्टी नेता इस कदर एकजुट हो गए थे कि सीताराम केसरी को पार्टी मुख्यालय के अंदर तक नहीं आने दिया था. जितेंद्र प्रसाद भी सोनिया गांधी को इतनी जल्दी पार्टी अध्यक्ष बनाने के पक्षधर नहीं थे.

यहीं से शुरू हुई थी पार्टी में बगावत
जितेंद्र प्रसाद के अलावा तत्कालीन कांग्रेस पार्टी नेता शरद पवार, पीए संगमा, तारिक अनवर भी सोनिया को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के खिलाफ थे. उनका साफ तौर पर कहना था कि विदेशी मूल की महिला पार्टी में शीर्ष पद पर नहीं रह सकती. जबकि पार्टी के अंदर एक गुट सोनिया गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी में जुटा था. इन तीनों नेताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा और उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. बाद में इन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी )बना ली.

राजेश पायलट और जितेंद्र प्रसाद भी हो गए थे बागी
जब पार्टी ने शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर को निकाल दिया. तब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेहद करीबी मित्र माने जाने वाले राजेश पायलट ने सोनिया गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उनका कहना था कि पार्टी में सोनिया गांधी से भी काबिल और अनुभवी नेता मौजूद हैं तो अचानक से एक नए चेहरे को पार्टी की कमान देना उचित नहीं. कहा तो यहां तक जाता है कि राजेश पायलट खुद 1998 सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतरने को तैयार थे. लेकिन काफी मनाने के बाद उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए बाद में एक प्लेन क्रैश में राजेश पायलट की मौत हो गई.

जितेंद्र प्रसाद सोनिया के खिलाफ उतर गए मैदान में
साल 1998 में सोनिया के खिलाफ शुरू हुई बगावत साल 2000 और तेज हो गई. जितेंद्र प्रसाद ने बगावती सुर अपनाते हुए पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में सोनिया का विरोध करने का निश्चय कर लिया और उन्होंने चुनाव लड़ भी लिया, लेकिन गांधी परिवार की स्वीकृति पार्टी के अंदर इस हद तक थी कि जितेंद्र प्रसाद को महज 94 वोट मिले. वहीं, 7448 वोट सोनिया गांधी को मिले. इसमें कुल 7,542 वोट पड़े थे. जितेंद्र प्रसाद के तत्कालीन करीबियों का कहना है कि वह सोनिया के खिलाफ मिली करारी हार को बर्दाश्त नहीं कर पाए और 16 जनवरी 2001 को ब्रेन हैमरेज से दिल्ली में उनका निधन हो गया.

जितेंद्र प्रसाद का सियासी सफर
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के रहने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत 70 के दशक में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य के रूप में शुरू की थी. इसके बाद वर्ष 1971 में वह शाहजहांपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने थे. इसके बाद वे कई बार लोकसभा सांसद के रूप में निर्वाचित हुए. जितेंद्र प्रसाद 1994 से 1999 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं. इसके बाद साल 1999 वह एक बार फिर तेरहवीं लोकसभा के लिए सांसद के रूप में निर्वाचित हुए. जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे हैं और उनके पिता कुंवर ज्योति प्रसाद भी कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में रहे हैं और वह कांग्रेस के विधायक भी रहे हैं.

पूर्व पीएम राजीव गांधी के थे राजनीतिक सलाहकार
उत्तर प्रदेश की राजनीति के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में भी जितेंद्र प्रसाद का दबदबा रहा है. कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी व नरसिम्हा राव के राजनीतिक सलाहकार के रूप में भी काम किया. साल 2000 में जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर पार्टी के वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी चुनाव लड़ रही थी तो वह लोकतंत्र को खतरे में बताते हुए सोनिया गांधी के खिलाफ ही अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ा था. हालांकि वह चुनाव जीत नहीं सके और उन्होंने पार्टी छोड़ दी. हालांकि कुछ दिनों बाद ही दोबारा कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए.

अपने राजनीतिक सफर के दौरान स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष व ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य सहित तमाम अन्य समितियों में भी सदस्य रहे हैं. इसके अलावा लोकसभा व केंद्र सरकार की कई संसदीय समितियों के भी सदस्य वह बनते रहे हैं. इसके अलावा वह कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे हैं. केंद्र सरकार के कई मंत्रालयों में वह सलाहकार के रूप में भी काम कर चुके हैं. साल 2001 में उनका निधन हो गया. उसके बाद उनके बेटे जितिन प्रसाद उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेताओं में स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद का नाम शामिल है. शाहजहांपुर लोकसभा क्षेत्र से कई बार संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए और 1970 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य भी निर्वाचित हुए थे. इसके बाद वह कई बार शाहजहांपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी व नरसिम्हा राव के राजनीतिक सलाहकार भी रहे हैं केंद्र सरकार की कई समितियों और अन्य मंत्रालयों समितियों में भी रहे हैं वह कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- जितिन प्रसाद ने थामा भाजपा का दामन, कहा कांग्रेस व्यक्ति विशेष दल

Last Updated : Jun 9, 2021, 6:41 PM IST
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