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आम की 'बूढ़ी' बागों का 'जीर्णोद्धार' कर ऐसे दें नया जीवन

40 से 50 साल पुराने हो आम के बागों में 'जीर्णोद्धार' या प्रूनिंग विधि से पैदावार बढ़ाई जा सकती है. स्पेशल रिपोर्ट में जानिए प्रूनिंग करने की संपूर्ण विधि और फायदे.

प्रूनिंग विधि
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Published : Jun 7, 2022, 10:41 PM IST

लखनऊ : राजधानी के चार ब्लॉक संरक्षित फल पट्टी क्षेत्र घोषित हैं. इन चारों ब्लॉकों का सत्तर प्रतिशत कृषि योग्य भूभाग पर आम के बाग हैं. इन बागों में तमाम 40 से 50 साल पुरानी हो चुकी हैं. इन 'बूढ़ी' बागों में आम की पैदावार बहुत कम हो गई है. ज्यादा पुराने हो जाने पर आम के पेड़ फल देना बंद कर देते हैं. वहीं पुरानी बागें घनी हो जाती हैं और उन्हें धूप और हवा भी कम ही मिल पाती है. इसी कारण उपज भी अच्छी नहीं हो पाती. ऐसे पुरानी पड़ चुकी बागों को पुनः फलदार बनाने के लिए उनका 'जीर्णोद्धार' या प्रूनिंग की जाती है. इस विधि से पेड़ दो साल बाद ही फल देने लगते हैं और उन्हें नया जीवन भी मिल जाता है. इस कार्य में पेड़ों को जड़ से नहीं काटना पड़ता, जिससे पर्यावरण संरक्षण भी हो रहा है. इसके लिए राज्य सरकार अनुदान भी देती है.

जानकारी देते प्रगतिशील बागबान सुचित शुक्ला.
पुराने आम के बागों का 'जीर्णोद्धार' या प्रूनिंग करने के लिए वृक्ष की एक या दो शाखाओं को छोड़कर शेष को तने के निकट से पैनी धार वाली आरी या 'प्रूनिंग सॉ' से काट दिया जाता है. शाखाओं की कटाई के समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि तना फटने न पाए. वृक्षों की शाखाओं की कटाई के तत्काल बाद कटे हुए तने पर फफूंद नाशक दवा का लेप लगाना होता है. बाद में कटे हुए भाग पर गाय का ताजा गोबर चिकनी मिट्टी के साथ मिलाकर लेप लगाना होता है. इससे कटे हुए भाग को किसी संक्रमण से बचाया जा सकता है. बागों के 'जीर्णोद्धार' का काम सितंबर-अक्टूबर माह में किया जाना उचित रहता है. कटाई के बाद पौधों के तने को चूने से पोत दिया जाता है, ताकि गोंद निकलने आदि की समस्या से बचा जा सके.इस संबंध में काकोरी ब्लॉक के एक प्रगतिशील बागबान सुचित शुक्ला बताते हैं 'हम पेड़ों का जीर्णोद्धार कर रहे हैं. इसमें कोशिश की जाती है कि एक ब्रांच हम छोड़ दें. बाकी कटी हुई शाखाओं पर गोबर व अन्य दवाओं का लेप कर दिया जाता है. जब इन कटे हुए तनों में नई शाखाएं निकलेंगी तो उनमें कलम बांधकर हम नई प्रजातियों के आमों का उत्पादन कर सकते हैं. इस प्रक्रिया से पेड़ का झुरमुट अच्छा और हरा-भरा हो जाता है. ज्यादा पुराने पेड़ 'लकड़िया' जाते हैं, यानी ऐसे पेड़ सिर्फ लकड़ी जलाने के काबिल ही रह जाते हैं. आमदनी और आम बहुत कम रह जाते हैं. इसलिए जरूरी है कि हम पुराने पेड़ों को भी पुनर्जीवित करें. इन बागों में दूसरे साल से फल आना शुरू हो जाता है. इस प्रक्रिया के बाद फल की क्वालिटी बहुत अच्छी हो जाती है. आगे की शाखाएं भी बहुत अच्छी होंगी.'

इसे भी पढ़ें-जानिए उस 'महावृक्ष' के बारे में जिसने दिया 'दशहरी' को जन्म


लखनऊ के जिला उद्यान अधिकारी बीएन सिंह कहते हैं कि 'प्रूनिंग या जीर्णोद्धार दो प्रकार का होता है. एक तो 'लाइट प्रूनिंग' होती है. जिन बागों में धूप और हवा जड़ों तक नहीं पहुंचती, उनकी शाखाओं की हल्की छटाई की जाती है. इसे लाइट प्रूनिंग कहते हैं. दूसरा होता है 'जीर्णोद्धार', जिसमें मुख्य शाखा छोड़कर शेष को काट दिया जाना है. नई शाखाएं आने पर इनमें कलम की जाती है.' वह बताते हैं कि 'प्रूनिंग पेड़ के मुख्य तने से सात मीटर ऊंचाई पर, जहां शाखाएं फूटती हैं, वहां से की जानी चाहिए. एक हेक्टेयर में सौ वृक्ष होते हैं. इस तरह सरकार एक हेक्टेयर या सौ पेड़ों के जीर्णोद्धार पर बीस हजार रुपये का अनुदान देती है.' जिला उद्यान अधिकारी बताते हैं कि 'इस प्रक्रिया के लिए पहले उद्यान अधिकारी के यहां आवेदन करना होता है. इसके बाद उद्यान विभाग डीएफओ की अनुमति दिलाता है.'

अवध आम उत्पादक बागवानी समिति के महासचिव उपेंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि 'जीर्णोद्धार अच्छी चीज है, लेकिन इसे एक साथ नहीं करना चाहिए. इसे एक पेड़ छोड़कर करना चाहिए. पेड़ की एक दो शाखाएं छोड़कर ही प्रूनिंग करनी चाहिए. यह प्रक्रिया सितंबर-अक्टूबर माह में करना ही बेहतर होता है. दो साल बाद ही फसल मिलनी शुरू हो जाती है.' वह कहते हैं कि 'हालांकि तमाम किसान नेक नीयत के साथ यह काम नहीं करते. प्रूनिंग के नाम पर लोग हरे पेड़ सुखाने का काम करते हैं, क्योंकि हरे पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं मिल पाती.' जिला उद्यान अधिकारी बीएम सिंह भी इस बात से सहमति जताते हैं. वह कहते हैं कि लोग इस योजना का लाभ कम और दुरुपयोग ज्यादा करते हैं, जबकि यह किसानों के लिए बहुत ही लाभकारी विधि है.

लखनऊ : राजधानी के चार ब्लॉक संरक्षित फल पट्टी क्षेत्र घोषित हैं. इन चारों ब्लॉकों का सत्तर प्रतिशत कृषि योग्य भूभाग पर आम के बाग हैं. इन बागों में तमाम 40 से 50 साल पुरानी हो चुकी हैं. इन 'बूढ़ी' बागों में आम की पैदावार बहुत कम हो गई है. ज्यादा पुराने हो जाने पर आम के पेड़ फल देना बंद कर देते हैं. वहीं पुरानी बागें घनी हो जाती हैं और उन्हें धूप और हवा भी कम ही मिल पाती है. इसी कारण उपज भी अच्छी नहीं हो पाती. ऐसे पुरानी पड़ चुकी बागों को पुनः फलदार बनाने के लिए उनका 'जीर्णोद्धार' या प्रूनिंग की जाती है. इस विधि से पेड़ दो साल बाद ही फल देने लगते हैं और उन्हें नया जीवन भी मिल जाता है. इस कार्य में पेड़ों को जड़ से नहीं काटना पड़ता, जिससे पर्यावरण संरक्षण भी हो रहा है. इसके लिए राज्य सरकार अनुदान भी देती है.

जानकारी देते प्रगतिशील बागबान सुचित शुक्ला.
पुराने आम के बागों का 'जीर्णोद्धार' या प्रूनिंग करने के लिए वृक्ष की एक या दो शाखाओं को छोड़कर शेष को तने के निकट से पैनी धार वाली आरी या 'प्रूनिंग सॉ' से काट दिया जाता है. शाखाओं की कटाई के समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि तना फटने न पाए. वृक्षों की शाखाओं की कटाई के तत्काल बाद कटे हुए तने पर फफूंद नाशक दवा का लेप लगाना होता है. बाद में कटे हुए भाग पर गाय का ताजा गोबर चिकनी मिट्टी के साथ मिलाकर लेप लगाना होता है. इससे कटे हुए भाग को किसी संक्रमण से बचाया जा सकता है. बागों के 'जीर्णोद्धार' का काम सितंबर-अक्टूबर माह में किया जाना उचित रहता है. कटाई के बाद पौधों के तने को चूने से पोत दिया जाता है, ताकि गोंद निकलने आदि की समस्या से बचा जा सके.इस संबंध में काकोरी ब्लॉक के एक प्रगतिशील बागबान सुचित शुक्ला बताते हैं 'हम पेड़ों का जीर्णोद्धार कर रहे हैं. इसमें कोशिश की जाती है कि एक ब्रांच हम छोड़ दें. बाकी कटी हुई शाखाओं पर गोबर व अन्य दवाओं का लेप कर दिया जाता है. जब इन कटे हुए तनों में नई शाखाएं निकलेंगी तो उनमें कलम बांधकर हम नई प्रजातियों के आमों का उत्पादन कर सकते हैं. इस प्रक्रिया से पेड़ का झुरमुट अच्छा और हरा-भरा हो जाता है. ज्यादा पुराने पेड़ 'लकड़िया' जाते हैं, यानी ऐसे पेड़ सिर्फ लकड़ी जलाने के काबिल ही रह जाते हैं. आमदनी और आम बहुत कम रह जाते हैं. इसलिए जरूरी है कि हम पुराने पेड़ों को भी पुनर्जीवित करें. इन बागों में दूसरे साल से फल आना शुरू हो जाता है. इस प्रक्रिया के बाद फल की क्वालिटी बहुत अच्छी हो जाती है. आगे की शाखाएं भी बहुत अच्छी होंगी.'

इसे भी पढ़ें-जानिए उस 'महावृक्ष' के बारे में जिसने दिया 'दशहरी' को जन्म


लखनऊ के जिला उद्यान अधिकारी बीएन सिंह कहते हैं कि 'प्रूनिंग या जीर्णोद्धार दो प्रकार का होता है. एक तो 'लाइट प्रूनिंग' होती है. जिन बागों में धूप और हवा जड़ों तक नहीं पहुंचती, उनकी शाखाओं की हल्की छटाई की जाती है. इसे लाइट प्रूनिंग कहते हैं. दूसरा होता है 'जीर्णोद्धार', जिसमें मुख्य शाखा छोड़कर शेष को काट दिया जाना है. नई शाखाएं आने पर इनमें कलम की जाती है.' वह बताते हैं कि 'प्रूनिंग पेड़ के मुख्य तने से सात मीटर ऊंचाई पर, जहां शाखाएं फूटती हैं, वहां से की जानी चाहिए. एक हेक्टेयर में सौ वृक्ष होते हैं. इस तरह सरकार एक हेक्टेयर या सौ पेड़ों के जीर्णोद्धार पर बीस हजार रुपये का अनुदान देती है.' जिला उद्यान अधिकारी बताते हैं कि 'इस प्रक्रिया के लिए पहले उद्यान अधिकारी के यहां आवेदन करना होता है. इसके बाद उद्यान विभाग डीएफओ की अनुमति दिलाता है.'

अवध आम उत्पादक बागवानी समिति के महासचिव उपेंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि 'जीर्णोद्धार अच्छी चीज है, लेकिन इसे एक साथ नहीं करना चाहिए. इसे एक पेड़ छोड़कर करना चाहिए. पेड़ की एक दो शाखाएं छोड़कर ही प्रूनिंग करनी चाहिए. यह प्रक्रिया सितंबर-अक्टूबर माह में करना ही बेहतर होता है. दो साल बाद ही फसल मिलनी शुरू हो जाती है.' वह कहते हैं कि 'हालांकि तमाम किसान नेक नीयत के साथ यह काम नहीं करते. प्रूनिंग के नाम पर लोग हरे पेड़ सुखाने का काम करते हैं, क्योंकि हरे पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं मिल पाती.' जिला उद्यान अधिकारी बीएम सिंह भी इस बात से सहमति जताते हैं. वह कहते हैं कि लोग इस योजना का लाभ कम और दुरुपयोग ज्यादा करते हैं, जबकि यह किसानों के लिए बहुत ही लाभकारी विधि है.

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