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जानें, किस तरह की जाती है सिंघाड़े की खेती - know all about water chestnut

राजधानी लखनऊ के घैला रोड पर मौसमी सिंघाड़े की खेती की जा रही है, जो किसानों द्वारा कठिन परिश्रम करने के बाद बाजार में उतारा जाता है. सिंघाड़े की खेती के लिए साल भर मेहनत करनी पड़ती है, तब जाकर यह बाजार तक पहुंचता है. सिंघाड़े की खेती के लिए किसानों को कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है.

सिंघाड़े की खेती
सिंघाड़े की खेती
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Published : Dec 19, 2020, 9:08 AM IST

लखनऊ: ठंडी का मौसम शुरू होते ही सड़क की पटरियों के किनारे सिंघाड़े के दुकान लगने लगती हैं. इसका स्वाद हम लोग ठंडी के मौसम में लेना नहीं भूलते, लेकिन इसके बारे में आपने कभी सोचा नहीं होगा कि आखिरकार सिंघाड़ा की खेती किस तरह की जाती है. अक्सर बाजारों में हमें दो तरह के सिंघाड़े देखने को मिलते हैं, एक चीनिया सिंघाड़ा होता है जो बिना उबाले ही बाजारों में बेचा जाता है. वहीं दूसरा साधारण सिघाड़ा होता है, जो बाजार में उबालकर बेचा जाता है.

देखें रिपोर्ट.

किस तरह की जाती है सिंघाड़े की खेती

सिंघाड़े की बुवाई हर वर्ष दिसंबर माह में कम पानी के तालाब या जलाशय में की जाती है. जिसको तैयार होने में 2 से 3 माह लग जाते हैं. बीज तैयार होने के बाद अप्रैल से लेकर जुलाई माह के बीच सिंघाड़े के बीज को बरसात का मौसम आने पर तालाब में लगा दिया जाता है. अक्टूबर से दिसंबर माह तक धीरे-धीरे सिंघाड़ा तैयार होने लगता है. इस फल को तैयार होने में कुल एक वर्ष का समय लग जाता है.

किन समस्याओं का करना पड़ता है सामना

मौसमी फल को उगाने को लिए पानी के कमी की सबसे बड़ी समस्या रहती है. इससे बार-बार पानी का भराव करना पड़ता है. वहीं पानी की कमी होने के कारण फसल बर्बाद हो जाती है. सप्ताह में एक बार कीटनाशक दवाइयों का भी छिड़काव करना पड़ता है, जिनसे किसी तरह के मौसम परिवर्तन होने के कारण सिंघाड़े की खेती में रोग न लग सके.

सिंघाड़े में लगने वाले रोग

सिंघाड़े में अक्सर झुलसा रोग लगने की डर रहता है. वही सिंघाड़े में तुरिया रोग, बैक्टीरियल ब्लाइट जैसी गंभीर बीमारियों के लगने से पूरी तरह से फसल भी बर्बाद होने की संभावना रहती है. किसान इन बीमारियों से फसल को बचाने के लिए सप्ताह में एक बार किटनाशक का छिड़काव करते हैं, जिससे फसलों को रोग से बचाया जा सके.

सिंघाड़ा स्वास्थ्य के लिए होता है हितकारी

अस्थमा के मरीजों के लिए सिंघाड़ा बहुत ही फायदेमंद होता है. सिंघाड़ा बवासीर जैसी मुश्किल समस्याओं को जल्द ही निजात दिलाने में कारगर साबित होता है. वहीं इससे कैल्शियम भी भरपूर मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है. साथ ही प्रेगनेंसी में सिंघाड़ा खाने से मां और बच्चे दोनों स्वस्थ रहते हैं.

सिंघाड़ा की खेती करने वाले रमेश ने बताया कि हम लोग हर वर्ष सिंघाड़े की खेती करते हैं. तालाब में कभी-कभी पानी का भराव भी करना पड़ता है. हम लोग बीजों को पहले तालाब में उगाते हैं, फिर उसे निकालकर ज्यादा पानी का भराव कर सिंघाड़े की खेती करते हैं. फिर फसल तैयार कर मंडी को ले जाते हैं. इसके बदले में मंडी में करीब 1000 रुपये प्रति कुंटल का भाव मिल जाता है. कभी-कभी सिंघाड़े में रोग लग जाने से सही रेट नहीं मिल पाता है.

एक अन्य किसान अशोक ने बताया कि हम लोग करीब 20 वर्षों से सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं. लेकिन जितना हम लोग लागत लगाते हैं, उस हिसाब फायदा नहीं मिल पाता है. वहीं सरला का कहना है कि हम लोग दिसंबर माह में फल पकने के बाद पके हुए फल के बीज की तालाब में बुवाई करते हैं. जिस बीज से पौधे निकल आते हैं. इन्हीं पौधों की बरसात के मौसम में बुवाई कर देते हैं, जिससे अक्टूबर से दिसंबर के बीच सिंघाड़े का उत्पादन होने लगता है. इसके उत्पादन में लगभग 1 वर्ष का समय लग जाता है. बीच-बीच में दवा का भी छिड़काव करना पड़ता है, जिससे फसलों में किसी तरह की बीमारी न लग सके.

लखनऊ: ठंडी का मौसम शुरू होते ही सड़क की पटरियों के किनारे सिंघाड़े के दुकान लगने लगती हैं. इसका स्वाद हम लोग ठंडी के मौसम में लेना नहीं भूलते, लेकिन इसके बारे में आपने कभी सोचा नहीं होगा कि आखिरकार सिंघाड़ा की खेती किस तरह की जाती है. अक्सर बाजारों में हमें दो तरह के सिंघाड़े देखने को मिलते हैं, एक चीनिया सिंघाड़ा होता है जो बिना उबाले ही बाजारों में बेचा जाता है. वहीं दूसरा साधारण सिघाड़ा होता है, जो बाजार में उबालकर बेचा जाता है.

देखें रिपोर्ट.

किस तरह की जाती है सिंघाड़े की खेती

सिंघाड़े की बुवाई हर वर्ष दिसंबर माह में कम पानी के तालाब या जलाशय में की जाती है. जिसको तैयार होने में 2 से 3 माह लग जाते हैं. बीज तैयार होने के बाद अप्रैल से लेकर जुलाई माह के बीच सिंघाड़े के बीज को बरसात का मौसम आने पर तालाब में लगा दिया जाता है. अक्टूबर से दिसंबर माह तक धीरे-धीरे सिंघाड़ा तैयार होने लगता है. इस फल को तैयार होने में कुल एक वर्ष का समय लग जाता है.

किन समस्याओं का करना पड़ता है सामना

मौसमी फल को उगाने को लिए पानी के कमी की सबसे बड़ी समस्या रहती है. इससे बार-बार पानी का भराव करना पड़ता है. वहीं पानी की कमी होने के कारण फसल बर्बाद हो जाती है. सप्ताह में एक बार कीटनाशक दवाइयों का भी छिड़काव करना पड़ता है, जिनसे किसी तरह के मौसम परिवर्तन होने के कारण सिंघाड़े की खेती में रोग न लग सके.

सिंघाड़े में लगने वाले रोग

सिंघाड़े में अक्सर झुलसा रोग लगने की डर रहता है. वही सिंघाड़े में तुरिया रोग, बैक्टीरियल ब्लाइट जैसी गंभीर बीमारियों के लगने से पूरी तरह से फसल भी बर्बाद होने की संभावना रहती है. किसान इन बीमारियों से फसल को बचाने के लिए सप्ताह में एक बार किटनाशक का छिड़काव करते हैं, जिससे फसलों को रोग से बचाया जा सके.

सिंघाड़ा स्वास्थ्य के लिए होता है हितकारी

अस्थमा के मरीजों के लिए सिंघाड़ा बहुत ही फायदेमंद होता है. सिंघाड़ा बवासीर जैसी मुश्किल समस्याओं को जल्द ही निजात दिलाने में कारगर साबित होता है. वहीं इससे कैल्शियम भी भरपूर मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है. साथ ही प्रेगनेंसी में सिंघाड़ा खाने से मां और बच्चे दोनों स्वस्थ रहते हैं.

सिंघाड़ा की खेती करने वाले रमेश ने बताया कि हम लोग हर वर्ष सिंघाड़े की खेती करते हैं. तालाब में कभी-कभी पानी का भराव भी करना पड़ता है. हम लोग बीजों को पहले तालाब में उगाते हैं, फिर उसे निकालकर ज्यादा पानी का भराव कर सिंघाड़े की खेती करते हैं. फिर फसल तैयार कर मंडी को ले जाते हैं. इसके बदले में मंडी में करीब 1000 रुपये प्रति कुंटल का भाव मिल जाता है. कभी-कभी सिंघाड़े में रोग लग जाने से सही रेट नहीं मिल पाता है.

एक अन्य किसान अशोक ने बताया कि हम लोग करीब 20 वर्षों से सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं. लेकिन जितना हम लोग लागत लगाते हैं, उस हिसाब फायदा नहीं मिल पाता है. वहीं सरला का कहना है कि हम लोग दिसंबर माह में फल पकने के बाद पके हुए फल के बीज की तालाब में बुवाई करते हैं. जिस बीज से पौधे निकल आते हैं. इन्हीं पौधों की बरसात के मौसम में बुवाई कर देते हैं, जिससे अक्टूबर से दिसंबर के बीच सिंघाड़े का उत्पादन होने लगता है. इसके उत्पादन में लगभग 1 वर्ष का समय लग जाता है. बीच-बीच में दवा का भी छिड़काव करना पड़ता है, जिससे फसलों में किसी तरह की बीमारी न लग सके.

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