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जानिए अवध के छठे नबाब सआदत अली खां के मकबरे की खासियत - सआदत अली खान का मकबरा

राजधानी लखनऊ के कैसरबाग स्थित सआदत अली खां का मकबरा एक ऐसी जगह है, जहां बेजुबां पत्थर भी कलात्मकता की कहानी कहते हैं. अवध के छठे नवाब रहे सआदत अली खां ने अपने कार्यकाल के दौरान बहुत ही इमारतों का निर्माण करवाया था. उन्होंने लखनऊ में कैसरबाग इलाके से लेकर कोठी दिल आराम, मुनावर बख्श कोठी, खुर्शीद मंजिल और चौपड़ घुड़साल से लेकर दिलकुशा कोठी तक की सभी इमारतों का निर्माण उन्हीं के शासन काल में हुआ था. नवाब साहब स्थापत्य कला के बहुत बड़े प्रेमी थे.

जानिए अवध के छठे नबाब सआदत अली खां के मकबरे की खासियत
जानिए अवध के छठे नबाब सआदत अली खां के मकबरे की खासियत
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Published : Apr 11, 2021, 10:32 PM IST

लखनऊ: राजधानी में एक से बढ़कर एक खूबसूरत इमारतों का निर्माण अवध के छठे नवाब सआदत अली खान ने करवाया है . उनका पूरा नाम यामिन उद दौला नवाब सआदत अली खान था. 1798 में उनकी ताज पोशी लखनऊ के बिबियापुर पैलेस में शानदार तरीके से हुई थी. अपनी नवाबी के 16 साल के दौर में उन्होंने जहां राज-काज में बड़ी नफासत दिखाई तो दूसरी ओर लखनऊ की शानों शौक़त को बढ़ाने के लिये तमाम इमारते भी बुलंद की थी, जिनसे शहर को आर्किटेक्चर का नया स्टाइल मिला था. कोठी हयात बख्श बनाने का काम उन्होंने फ्रेंच साहसी क्लाउड मार्टिन को दिया था, जिन्होंने यूरोपियन और हिन्दुस्तानी वास्तु शिल्प को मिला कर एक नया प्रयोग करके दिखाया था. गाज़ी उद दीन हैदर की ताज पोशी सआदत अली खान की मौत के बाद लाल बारादरी में ही हुई थी.

जानिए अवध के छठे नबाब सआदत अली खां के मकबरे की खासियत

लखनऊ के आखरी नवाब वाजिद अली शाह ने लगभग चालीस साल बाद जब कैसरबाग का निर्माण करवाया तब नवाब की रिहाइश छत्तर मंजिल से निकल कर वहां पहुंची थी. सआदत अली खान ने नदी किनारे कोठी दिल आराम, मुनावर बख्श कोठी, खुर्शीद मंजिल और चौपड़ घुड़साल भी बनवाया था. 1814 में नवाब साहब इस दुनिया से अलविदा हो गए. उनसे पहले उनकी बेगम खुर्शीद ज़दी का इंतकाल हो चुका था

यहां अपनी तीन बेगमों के साथ दफन सआदत अली खां

लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा अपनी कारीगरी के लिये बहुत मशहूर है, लेकिन अगर असल काम सआदत अली खान के मकबरे में ही देखने को मिलता है. यह मकबरा तीन मंजिला है और मुग़ल शैली के आखरी दौर का बेहतरीन नमूना है. यह इमारत लखौरी ईंटों से बनी है, जिसको जोड़ने के लिये चूने का इस्तमाल हुआ है. मकबरे की फर्श बलुआ पत्थरों की बनी हुई है. इसके चारों तरफ मेहराबे हैं, जिनसे अंदर दाखिल होते हैं और उनके साथ छत्तरियां हैं. इसके कोनों में घुमावदार सीढ़ियां हैं, जिन से छत तक या तहखाने में पहुंचा जा सकता है. ऊंची शानदार गुंबद पर उलटे कमल को उखेरा गया है और उसके ऊपर एक कंगूरा है. अगर हम गुंबद को देखें तो उसके ऊपर का हिस्सा फूलों के गुलदस्ते जैसा है. मकबरे की फर्श काले और सफ़ेद मार्बल की है, जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे शतरंज की बिसात बिछी हो. इस मकबरे में पीछे की तरफ सआदत अली खान की तीन बीवियों की कब्रे हैं और पूरब की तरफ उसकी तीन बेटिया दफ़न हैं. गुंबद के ठीक नीचे वो जगह रेखांकित है जहां पर नवाब साहब दफ़न हैं,लेकिन उनकी मज़ार तहख़ाने में है. उसके साथ दो और कब्रें हैं जो शायद उनके भाइयों की है. सआदत अली के मकबरे के साथ पूर्व दिशा में उनकी बेगम खुर्शीद ज़दी का मकबरा भी है. ये दोनों मकबरे बड़े बेटे ग़ाज़ीउद्दीन हैदर ने बनवाये थे.

जानिए सआदत अली खान का इतिहास

अवध के छठे नवाब सआदत अली खान थे .उन्होंने अवध पर 1798 से 1814 तक शासन किया. उनकी बेगम खुर्शीद जादी, नवाब सादत अली खान की पसंदीदा बेगम थीं. खुर्शीद जादी की मृत्यु नवाब साहब के जीवनकाल के दौरान ही हो गई थी. उनको यहीं दफनाया गया. मकबरे की जगह पर उनके बड़े बेटे ग़ाज़ीउद्दीन हैदर का निवास हुआ करता था. बाद में नवाब सआदत अली खान की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने पिता का मकबरा और खुर्शीद जादी के मकबरे का निर्माण करवाया था.

इसे भी पढ़ें: लड़ाइयों के लिए मशहूर है राजधानी की ये कोठी, जानिए पूरी कहानी

सआदत अली खान ने खूबसूरत इमारतों का निर्माण करवाया था

अवध की राजधानी लखनऊ में कैसरबाग इलाके से लेकर कोठी दिल आराम, मुनावर बख्श कोठी, खुर्शीद मंजिल और चौपड़ घुड़साल से लेकर दिलकुशा कोठी तक की सभी इमारतों का निर्माण सआदत अली के शासन काल में हुआ था. नवाब साहब स्थापत्य कला के बहुत बड़े प्रेमी थे.

कौन थी खुर्शीद जादी

सआदत अली खान के मकबरे के मुख्य प्रवेश द्वार के मकबरे के पूर्व की ओर एक और आकृष्ट इमारत है, जो उनकी एक बेगम की है. नवाब की सबसे पसंदीदा बेगम खुर्शीद ज़ादी का मकबरा भी नवाब साहब के मक़बरे जितना ही खूबसूरत है, लेकिन आकार और ऊंचाई में थोड़ा छोटा है. प्रत्येक तरफ से बगीचे और फूलों के बागानों द्वारा घिरे हुए इस इमारत की सुंदरता देखते ही बनती है. इसके अंदर बेगम के साथ साथ उनकी बेटी की भी कब्र है. इसका निर्माण स्वयं सआदत अली खान द्वारा शुरू करवाया गया था,लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने के बाद नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर ने इसके निर्माण को पूरा करवाया.

अंग्रेज इस मकबरे में मनाते थे क्रिसमस का त्योहार


कैसर बाग स्थित सआदत खान के मकबरे को अंग्रेज अपनी इबादत के लिए प्रयोग करते थे . एक रोचक बात यह 1857 के गद्दर के दौरान अंग्रेजों का एकलौता गिरजाघर सेंट मैरी चर्च ध्वस्त हो गया था. 1860 में क्राइस्ट चर्च बनने तक सआदत अली खान के मक़बरे में ही अंग्रेज़ अपनी इतवार की प्राथना सभा करते थे. यहां तक कि बड़ा दिन यानी क्रिसमस भी इसी मक़बरे में धूमधाम से मनाया जाता था.

लखनऊ: राजधानी में एक से बढ़कर एक खूबसूरत इमारतों का निर्माण अवध के छठे नवाब सआदत अली खान ने करवाया है . उनका पूरा नाम यामिन उद दौला नवाब सआदत अली खान था. 1798 में उनकी ताज पोशी लखनऊ के बिबियापुर पैलेस में शानदार तरीके से हुई थी. अपनी नवाबी के 16 साल के दौर में उन्होंने जहां राज-काज में बड़ी नफासत दिखाई तो दूसरी ओर लखनऊ की शानों शौक़त को बढ़ाने के लिये तमाम इमारते भी बुलंद की थी, जिनसे शहर को आर्किटेक्चर का नया स्टाइल मिला था. कोठी हयात बख्श बनाने का काम उन्होंने फ्रेंच साहसी क्लाउड मार्टिन को दिया था, जिन्होंने यूरोपियन और हिन्दुस्तानी वास्तु शिल्प को मिला कर एक नया प्रयोग करके दिखाया था. गाज़ी उद दीन हैदर की ताज पोशी सआदत अली खान की मौत के बाद लाल बारादरी में ही हुई थी.

जानिए अवध के छठे नबाब सआदत अली खां के मकबरे की खासियत

लखनऊ के आखरी नवाब वाजिद अली शाह ने लगभग चालीस साल बाद जब कैसरबाग का निर्माण करवाया तब नवाब की रिहाइश छत्तर मंजिल से निकल कर वहां पहुंची थी. सआदत अली खान ने नदी किनारे कोठी दिल आराम, मुनावर बख्श कोठी, खुर्शीद मंजिल और चौपड़ घुड़साल भी बनवाया था. 1814 में नवाब साहब इस दुनिया से अलविदा हो गए. उनसे पहले उनकी बेगम खुर्शीद ज़दी का इंतकाल हो चुका था

यहां अपनी तीन बेगमों के साथ दफन सआदत अली खां

लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा अपनी कारीगरी के लिये बहुत मशहूर है, लेकिन अगर असल काम सआदत अली खान के मकबरे में ही देखने को मिलता है. यह मकबरा तीन मंजिला है और मुग़ल शैली के आखरी दौर का बेहतरीन नमूना है. यह इमारत लखौरी ईंटों से बनी है, जिसको जोड़ने के लिये चूने का इस्तमाल हुआ है. मकबरे की फर्श बलुआ पत्थरों की बनी हुई है. इसके चारों तरफ मेहराबे हैं, जिनसे अंदर दाखिल होते हैं और उनके साथ छत्तरियां हैं. इसके कोनों में घुमावदार सीढ़ियां हैं, जिन से छत तक या तहखाने में पहुंचा जा सकता है. ऊंची शानदार गुंबद पर उलटे कमल को उखेरा गया है और उसके ऊपर एक कंगूरा है. अगर हम गुंबद को देखें तो उसके ऊपर का हिस्सा फूलों के गुलदस्ते जैसा है. मकबरे की फर्श काले और सफ़ेद मार्बल की है, जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे शतरंज की बिसात बिछी हो. इस मकबरे में पीछे की तरफ सआदत अली खान की तीन बीवियों की कब्रे हैं और पूरब की तरफ उसकी तीन बेटिया दफ़न हैं. गुंबद के ठीक नीचे वो जगह रेखांकित है जहां पर नवाब साहब दफ़न हैं,लेकिन उनकी मज़ार तहख़ाने में है. उसके साथ दो और कब्रें हैं जो शायद उनके भाइयों की है. सआदत अली के मकबरे के साथ पूर्व दिशा में उनकी बेगम खुर्शीद ज़दी का मकबरा भी है. ये दोनों मकबरे बड़े बेटे ग़ाज़ीउद्दीन हैदर ने बनवाये थे.

जानिए सआदत अली खान का इतिहास

अवध के छठे नवाब सआदत अली खान थे .उन्होंने अवध पर 1798 से 1814 तक शासन किया. उनकी बेगम खुर्शीद जादी, नवाब सादत अली खान की पसंदीदा बेगम थीं. खुर्शीद जादी की मृत्यु नवाब साहब के जीवनकाल के दौरान ही हो गई थी. उनको यहीं दफनाया गया. मकबरे की जगह पर उनके बड़े बेटे ग़ाज़ीउद्दीन हैदर का निवास हुआ करता था. बाद में नवाब सआदत अली खान की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने पिता का मकबरा और खुर्शीद जादी के मकबरे का निर्माण करवाया था.

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सआदत अली खान ने खूबसूरत इमारतों का निर्माण करवाया था

अवध की राजधानी लखनऊ में कैसरबाग इलाके से लेकर कोठी दिल आराम, मुनावर बख्श कोठी, खुर्शीद मंजिल और चौपड़ घुड़साल से लेकर दिलकुशा कोठी तक की सभी इमारतों का निर्माण सआदत अली के शासन काल में हुआ था. नवाब साहब स्थापत्य कला के बहुत बड़े प्रेमी थे.

कौन थी खुर्शीद जादी

सआदत अली खान के मकबरे के मुख्य प्रवेश द्वार के मकबरे के पूर्व की ओर एक और आकृष्ट इमारत है, जो उनकी एक बेगम की है. नवाब की सबसे पसंदीदा बेगम खुर्शीद ज़ादी का मकबरा भी नवाब साहब के मक़बरे जितना ही खूबसूरत है, लेकिन आकार और ऊंचाई में थोड़ा छोटा है. प्रत्येक तरफ से बगीचे और फूलों के बागानों द्वारा घिरे हुए इस इमारत की सुंदरता देखते ही बनती है. इसके अंदर बेगम के साथ साथ उनकी बेटी की भी कब्र है. इसका निर्माण स्वयं सआदत अली खान द्वारा शुरू करवाया गया था,लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने के बाद नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर ने इसके निर्माण को पूरा करवाया.

अंग्रेज इस मकबरे में मनाते थे क्रिसमस का त्योहार


कैसर बाग स्थित सआदत खान के मकबरे को अंग्रेज अपनी इबादत के लिए प्रयोग करते थे . एक रोचक बात यह 1857 के गद्दर के दौरान अंग्रेजों का एकलौता गिरजाघर सेंट मैरी चर्च ध्वस्त हो गया था. 1860 में क्राइस्ट चर्च बनने तक सआदत अली खान के मक़बरे में ही अंग्रेज़ अपनी इतवार की प्राथना सभा करते थे. यहां तक कि बड़ा दिन यानी क्रिसमस भी इसी मक़बरे में धूमधाम से मनाया जाता था.

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