लखनऊ: समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के ना रहने के बाद अब अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav politics) कैसे समाजवादी विचारधारा के रथ को आगे बढ़ाएं? समाजवादी पार्टी संगठन को कैसे रफ्तार देंगे? अभी तक मुलायम सिंह यादव की वजह से समाजवादी पार्टी के तमाम प्रमुख लोग जुड़े रहे हैं. उन सब लोगों को लेकर आगे बढ़ने और जाति समीकरण दुरुस्त रखते हुए अखिलेश यादव के सामने कई तरह की चुनौती होगी.
नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव हर किसी को खुश रखते थे. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह भी होगी कि वह मुलायम कुनबे को कैसे एक साथ लेकर आगे बढ़े? मुलायम सिंह यादव हमेशा यह कोशिश रही है कि पूरा मुलायम परिवार एक रहें. उन्होंने शिवपाल सिंह यादव के साथ अखिलेश की बड़ी नाराजगी के बीच कई बार दोनों को एक करने की कोशिश भी की थी. लेकिन, अखिलेश यादव कभी अपने चाचा को साथ लेकर आगे नहीं बढ़ पाए. चाचा का साथ नहीं मिला तो तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा और सरकार बनाने में भी 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव सफल नहीं हो पाए.
इसके अलावा अखिलेश यादव के सामने मुलायम सिंह यादव से जुड़े संगठन के लोग हो या अन्य राजनीतिक दलों के लोगों को उनका सम्मान करते हुए उनके अनुभवों के आधार पर संगठन को मजबूत करने का काम भी करना होगा. जिस प्रकार मुलायम सिंह यादव की सभी राजनीतिक दलों में स्वीकार्यता रही, लोग नेता जी का सम्मान करते थे, ठीक उसी प्रकार अखिलेश यादव को भी इस काम को आगे बढ़ाना होगा. इसके लिए उन्हें सबसे संपर्क और संवाद भी करते रहना होगा.
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सबसे खास बात है कि उत्तर प्रदेश का पहला यह निकाय चुनाव होगा. 2024 के पहला लोकसभा चुनाव होगा जब अखिलेश यादव बिना पिता के साए के चुनाव मैदान में होंगे. मुलायम सिंह यादव के ना होने से तमाम तरह का संकट भी उनको परेशान करेगा. मुलायम सिंह यादव की होने की वजह से भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व में समाजवादी पार्टी को लेकर कई बार सॉफ्ट कार्नर भी रखता रहा है. अब देखने वाली बात होगी कि मुलायम सिंह यादव के ना रहने के बाद भारतीय जनता पार्टी और किस ढंग से समाजवादी पार्टी पर आक्रामक होगी.
ईटीवी भारत ने उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार राजनीतिक विश्लेषक प्रदुमन तिवारी से इस बारे में बात की. तो उन्होंने कहा कि मुलायम वह वट वृक्ष हैं, उनकी भौतिक उपस्थिति ही इस पार्टी को आगे बढ़ाते रही है. मुलायम सिंह यादव आखरी समय तक अपने मुलायम कुनबे को एक करने का प्रयास करते रहे हैं. मेरा जो मानना है कि वह मुलायम सिंह यादव आखिरी कड़ी थी, जो परिवार को एक करने की कोशिश थी. अखिलेश यादव के लिए अपने कार्यकर्ताओं को सहेजना बड़ी चुनौती तो है ही. यही सबसे बड़ी बात यह है कि अगर वह अपने परिवार के विघटन को नहीं रोक पाते हैं तो आने वाले दिनों में समाजवादी पार्टी का उनका सफर काफी चुनौतियों भरा रहने वाला है.
उन्होंने कहा कि शिवपाल सिंह यादव भी एक संगठनकर्ता रहे हैं, मुलायम सिंह यादव की छत्रछाया में शिवपाल सिंह यादव ने संगठन को मजबूत करने का काम किया है. शिवपाल सिंह यादव भी अभी तक मुलायम सिंह यादव का लिहाज करते रहे हैं. पूरा परिवार मुलायम छतरी के नीचे एकत्रित हो जाता था, लेकिन अब वह सारी चीजें एकदम से बिखर गई है. अब अखिलेश यादव को सबसे पहले अपने पूरे कुनबे को जोड़ना होगा. बुजुर्ग नेताओं कार्यकर्ताओं का सम्मान करना होगा और सबको साथ लेकर समाजवादी पार्टी संगठन को आगे लेकर काम करना होगा. तभी उनकी राजनीति की राह आसान होगी.
मुलायम ने 2012 में ही अखिलेश को पूरी तरह से कर दिया था तैयार
वरिष्ठ पत्रकार राजनीतिक विश्लेषक राजकुमार सिंह कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव ने 2012 की विधानसभा चुनाव के बाद अखिलेश यादव को पूरी तरह से तैयार कर दिया था. उन्होंने मुख्यमंत्री की गद्दी भी अखिलेश यादव को सौंप दी थी. उसके बाद शिवपाल सिंह यादव को लेकर कुछ विवाद मतभेद रहे हैं. लेकिन मुलायम सिंह यादव धीरे-धीरे सब को समझाते रहे हैं. उनके रहते हुए कोई विवाद बहुत बड़ा आकार नहीं ले पाया. समाजवादी पार्टी की कमान भी अखिलेश यादव के पास आ चुकी थी. ऐसा नहीं है कि अखिलेश यादव की राह में रोड़े नहीं हैं, उनके सामने अब कई तरह की चुनौतियां सामने होंगी. जिनका उन्हें सामना करना होगा. फिलहाल अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी को अपने हिसाब से ढाल लिया है. अपनी पूरी टीम भी उन्होंने अपने हिसाब से बना ली है. पुराने नेताओं का उनके फैसलों में हस्तक्षेप नहीं है और वह पुराने नेताओं के हस्तक्षेप को स्वीकार भी नहीं करते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि 2012 में मुलायम सिंह यादव के रहते उन्होंने सफलता पाई थी और मुलायम सिंह यादव ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का तोहफा दिया था. इसके बाद 2014 का लोकसभा चुनाव, 2017 का विधानसभा चुनाव, 2019 का लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिल पाई. पिछले चार चुनाव वह हार चुके हैं. अब उनके सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि कैसे चुनावी लड़ाई को लड़ना है. वह भी तब जब पिता का साया उठ चुका है. पार्टी परिवार और खुद को उन्हें संभालना है. परिवार को पूरी तरह से एक करने की उन्हें कोशिश करनी होगी. इसके अलावा पिता का साया उठने के बाद अखिलेश यादव को भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करने के लिए और अधिक मेहनत और एक बेहतरीन टीम के साथ करना होगा.
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