लखनऊः राजस्व विभाग के अंतर्गत गांवों में आबादी की जमीनों से संबंधित विवादों को समाप्त करने के लिए घरौनी योजना (Gharauni Scheeme) शुरू की गई है. गांव के लोगों को उनके घरों या अन्य जमीनों का मालिकाना हक का दस्तावेज (ग्रामीण आवासीय अभिलेख/घरौनी) देने के उद्देश्य से इस योजना की शुरुआत की गई है. योजना के तहत से गांवों की आबादी की जमीनों की ड्रोन से मैपिंग कराई जा रही है. जिस जमीन पर जिसके पक्के निर्माण हैं, उस जमीन का स्वामित्व यानी घरौनी प्रमाण पत्र देने की व्यवस्था की गई है. प्रदेश भर में यह काम तेजी से किया जा रहा है. इस काम की रफ्तार क्या है और अब तक कितने गांव की ड्रोन मैपिंग कराई जा चुकी है, इसको लेकर ETV BHARAT ने राजस्व परिषद के उप भूमि व्यवस्था आयुक्त भीष्म लाल वर्मा से खास बातचीत की. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश-
सर्वे ऑफ इंडिया के सहयोग से किया जा रहा सर्वे
उप भूमि व्यवस्था आयुक्त भीष्म लाल वर्मा ने कहा कि उत्तर प्रदेश में भूमि से संबंधित जो भी मामले हैं उसको लेकर कृषि भूमि को लेकर गाटा संख्या आदि निर्धारित करने की व्यवस्था है. लेकिन गांव में आबादी की जमीन का एक या दो ही गाटा संख्या रहते हैं जिसमें पूरा गांव बसा रहता है, उनका कहीं पर भी कोई रिकॉर्ड नहीं होता है. उस आबादी क्षेत्र का कितना बड़ा घर है कितना रास्ता चौड़ा है, नाली खड़ंजा मार्ग आदि के बारे में कोई लिखित राजस्व अभिलेख उपलब्ध नहीं थे. पिछले वर्ष जून महीने में स्वामित्व योजना भारत सरकार की तरफ से शुरू की गई है. इस योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश में हम लोगों ने एक नियमावली बनाई जिसके आधार पर आबादी का सर्वेक्षण किया जाता है. वह सर्वे ऑफ इंडिया (Survey of India) के सहयोग से ड्रोन कैमरे के माध्यम से सर्वेक्षण किया जाता है.
गांव के सर्वेक्षण से पहले होती है ग्राम पंचायत की बैठक
भीष्म लाल वर्मा ने कहा कि ड्रोन द्वारा सर्वेक्षण से चार-पांच दिन पहले ग्राम पंचायत की बैठक करके सभी लोगों को बताते हैं. ग्रामीणों को बताते हैं कि इस गांव में आबादी का सर्वेक्षण करके आपत्ति आदि लेकर ग्रामीण अभिलेख यानी घरौनी तैयार करने का काम किया जाएगा. जानकारी देने के बाद फिर हम जहां पर सम्मिलित संपत्ति होती है वहां चूने के माध्यम से मार्किंग करके उसे अलग करते हैं. इसके बाद अगले दिन ड्रोन कैमरे के माध्यम से सर्वेक्षण किया जाता है और जिससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि किस व्यक्ति का घर कितना बड़ा है. उसके आगे का सहन कितना बड़ा है, नाली और खड़ंजे की चौड़ाई कितनी है.
मानचित्र में डाले जाते हैं प्रत्येक घरों के नंबर
सर्वेक्षण के माध्यम से फोटो के लिए जाते हैं, जिससे कि लेखपाल आदि के ऊपर किसी प्रकार के आरोप ना लगाएं कि हमारा क्षेत्र कम कर दिया. इसलिए मशीन द्वारा नापा जाता है, जिससे कि किसी को आपत्ति नहीं हो. भीष्म लाल वर्मा ने बताया कि जहां पर संयुक्त परिवार रहते हैं वहां पर घर में या जगह पर उन सभी का नाम पंचायत के सहयोग से जानकारी करके हमारे राजस्व कर्मी दर्ज करते हैं. इसके बाद सर्वेक्षण मानचित्र सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा तैयार किया जाता है और जब मानचित्र आ जाता है तो प्रत्येक घरों के नंबर डालते हैं और पूरे मानचित्र में उसकी नंबरिंग कर दी जाती है.
सार्वजनिक स्थानों को भी किया जाता है चिह्नित
उप भूमि व्यवस्था आयुक्त कहते हैं इस प्रक्रिया के बाद फिर यह देखने का काम किया जाता है कि कहीं किसी का घर कोई स्थान ऐसा तो नहीं है जो छूट गया हो, जिस पर कोई नंबर नहीं है. यह भी देखा जाता है कि प्रत्येक घर आने-जाने के लिए जिस रास्ते आदि का प्रयोग करते हैं उस रास्ते को भी चिह्नित किया गया है या नहीं. इसके अतिरिक्त गांव में नाली खड़ंजा आदि भी चिह्नित किये जाते हैं. बिजली खंभा, हैंड पंप और सार्वजनिक स्थान भी चिह्नित किया जाता है, जिससे आगे किसी भी प्रकार के संपत्तियों के बारे में कोई विवाद न हो. इसके साथ ही जो सरकारी संपत्ति पंचायत घर, खेल मैदान को चिह्नित काम करते हैं.
ग्रामीणों की सहमति के बाद घरौनी को अंतिम रूप दिया जाता है
उप भूमि व्यवस्था आयुक्त ने बताया कि इसके बाद सर्वे ऑफ इंडिया को मानचित्र भेजते हैं और शुद्ध रूप से इसको जारी करके दूसरा मानचित्र बनाया जाता है. इस प्रक्रिया के बाद पंचायत की बैठक में सभी को व्यक्तिगत रूप से बताया जाता है और बाद में घरौनी तैयार की जाती है. किसी की आपत्ति ना होने पर सहमति पत्र प्राप्त करने के बाद घरौनी को अंतिम रूप दिया जाता है. यहां पर किसी भी प्रकार के सिविल कोर्ट से संबंधित विवाद होते हैं तो उसे घरौनी को हम अंतिम नहीं करते हैं. इसके बाद आगे की प्रक्रिया होती है और डिजिटल फॉर्म में करते हुए उसे सुरक्षित करते हैं. सुरक्षित करने के बाद फिर हम प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार और उसका वितरण किया जाता है. डिजिटल फॉर्म में उसे देने का काम किया जाता है. इसके साथ ही गांव में घरौनी को व्यक्तिगत रूप से मौखिक रूप से लिखित रूप से भी दिया जाता है. जिससे कहीं किसी प्रकार की कोई विवाद की स्थिति उत्पन्न होने पाए.
अब तक 12,674 गांव में घरौनी तैयार
उप भूमि व्यवस्था आयुक्त भीष्म लाल वर्मा कहते हैं कि प्रदेश में अब तक 12,674 गांव में घरौनी तैयार किया जा चुका है. अब पीएम द्वारा निर्देशन के बाद उसको वितरित करेंगे. उन्होंने बताया कि लगभग 17,71,653 घरों की घरौनी ने तैयार की जा चुकी है और डिजिटल फॉर्म में भी तैयार हो चुका है. उच्च स्तर पर फैसला होने के बाद ग्रामीणों को घरौनी पत्र वितरित किया जाएगा. उप भूमि व्यवस्था आयुक्त भीष्म लाल वर्मा ने बताया कि कोई संपत्तियों के बारे में कोई विवाद है और कोई जानकारी देना चाहते हैं तो वह जिला स्तर पर दे सकते हैं. आपत्तियों का निस्तारण किया जाएगा. उन्होंने बताया कि खेतों की खतौनी की तरह अब घरों की घरौनी देने का प्रयास शुरू किया गया है. उत्तर प्रदेश पहला राज्य है जहां इसका नाम घरौनी दिया गया है. इससे हमारा सबसे बड़ा लाभ होगा हमारे घरों की एक डिजिटल पहचान हो जाएगी. इसके साथ एक छोटा सा मानचित्र भी दिया जाता है जिसमें उसकी लंबाई चौड़ाई आदि की जानकारी भी रहेगी.
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