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KGMU Lucknow : प्रतिभागियों ने सीखी ब्रेस्‍ट कैंसर और डाउन सिंड्रोम की डायग्‍नोसिस, विशेषज्ञों ने कही यह बात

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ (KGMU Lucknow) में आयोजित की पांच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस एवं वर्कशॉप में प्रतिभागियों को ब्रेस्‍ट कैंसर और डाउन सिंड्रोम के डायग्‍नोसिस की बारीकियां सिखाई गईं. आयोजन के अंतिम दिन प्रतिभागियों के लिए प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता हुई.

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Published : Feb 12, 2023, 3:50 PM IST

लखनऊ : किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के साइटोजेनेटिक्स लैब सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च द्वारा आयोजित की जा रही पांच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस एवं वर्कशॉप का समापन शनिवार को हो गया. इस कॉन्‍फ्रेंस में ब्रेस्‍ट कैंसर और डाउन सिंड्रोम की डायग्‍नोसिस करने के लिए अत्‍याधुनिक तकनीकी के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी गई. कार्यशाला में प्रतिभागियों ने क्‍या सीखा, इसके बारे में अंतिम दिन प्रश्‍नोत्‍तरी का आयोजन किया गया.

कॉन्‍फ्रेंस की आयोजक साइटोजेनेटिक्स लैब सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नीतू निगम ने बताया कि कार्यशाला में 40 प्रतिभागियों को कैंसर, डाउन सिंड्रोम की डायग्‍नोसिस के लिए की जाने वाली प्रक्रिया की विस्‍तार से जानकारी दी गई. दो दिन हम लोगों ने कल्‍चर किया, स्‍लाइड तैयार करने की प्रक्रिया में तीन से चार दिन का समय लगा. अंतिम दिन स्‍लाइड तैयार हो गईं तो फ्लोरोसेंस इन सीटू हाइब्रि‍डाइजेशन (फि‍श), माइक्रोएरे और कैयरोटाइपिंग तकनीक के माध्‍यम से ब्रेस्‍ट कैंसर के जीन्‍स और मेंटली रिटार्डेड बच्‍चों में डाउन सिंड्रोम के जीन्‍स की पहचान करना बताया गया. कार्यशाला में फार्माकोलॉजी, एनाटॉमी, पैथोलॉजी आदि के छात्रों ने भाग लिया. अंतिम दिन प्रतिभागियों के लिए एक क्विज का आयोजन किया गया. इसमें सर्वाधिक अंक प्राप्‍त करने वाले 10 प्रतिभागियों को गोल्‍डेन मेडल प्रदान किया गया.

कार्यक्रम के अंत में डॉ. नीतू निगम ने धन्‍यवाद ज्ञापित किया. उन्‍होंने कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. बिपिन पुरी के प्रति आभार जताते हुए कहा कि उनकी प्रेरणा से ही यह कार्यक्रम आयोजित हो सका. डॉ. नीतू ने कुलसचिव रेखा एस चौहान को कार्यक्रम में शामिल होने के लिए धन्‍यवाद देते हुए कॉन्‍फ्रेंस में विभागाध्‍यक्ष प्रो. अमिता जैन के मार्गदर्शन के लिए आभार जताया. इसके अतिरिक्‍त उन्‍होंने कार्यक्रम के आयोजन में सहयोग के लिए डीन पैरोमेडिकल डॉ अनिल निश्‍चल, पैथोलॉजी विभाग के विभागाध्‍यक्ष प्रो यूएस सिंह, प्रो. रजनी गुप्‍ता, प्रो. गीतिका नंदा, प्रो. अनुराधा निश्‍चल, प्रो रीमा कुमार, प्रो प्रीती अग्रवाल, सीनियर टेक्निकल ऑफीसर राम शरण, पीएचडी स्‍कॉलर सुरभि, प्रवीन, नेहा, कीर्ति, शालिनी सहित पूरी आयो‍जन समिति का भी धन्‍यवाद अदा किया.

जबड़े के इन प्लांट प्रत्यारोपित का इलाज संभव : जबड़े के कैंसर व ट्यूमर के ऑपरेशन के दौरान इप्लांट प्रत्यारोपित किया जाता है. कई बार इप्लांट लगाने के बाद मरीज को साइनस का संक्रमण हो जाता है, जो डॉक्टरों के लिए चुनौती बन जाता है. अब ऐसे मरीजों का इलाज आसान हो गया है. यह जानकारी जयपुर के डॉ. मोहित अग्रवाल ने दी. शनिवार को केजीएमयू में दंत संकाय की तरफ से कान्फ्रेंस हुई. डॉ. मोहित अग्रवाल ने बताया कि जबड़े के कैंसर, ट्रॉमा व ट्यूमर के मरीजों का ऑपरेशन करने की जरूरत पड़ती है. ऑपरेशन कर जबड़े का ऊपरी हिस्सा निकाला जाता है. दोबारा जबड़ा बनाने के लिए जायकोमेटिक इम्प्लांट प्रत्यारोपित किया जाता है. यह इंप्लांट गाल की ऊपर की हड्डी में लगाया जाता है. इसके बाद इम्प्लांट में नया जबड़ा लगाया जाता है. बिना इस इम्प्लांट के जबड़ा लगाना मुमकिन नहीं होता. नई तकनीक से इम्प्लांट प्रत्यारोपित करने से मरीज में संक्रमण की आशंका कम हो जाती है. दंत संकाय के डॉ. लक्ष्य यादव ने बताया कि 10 मरीजों इम्प्लांट प्रत्यारोपित किया गया.

यह भी पढ़ें : UP Global Investors Summit 2023 : केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल बाेले- सीएम याेगी के नेतृत्व में तेजी से बढ़ रहा उत्तर प्रदेश

लखनऊ : किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के साइटोजेनेटिक्स लैब सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च द्वारा आयोजित की जा रही पांच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस एवं वर्कशॉप का समापन शनिवार को हो गया. इस कॉन्‍फ्रेंस में ब्रेस्‍ट कैंसर और डाउन सिंड्रोम की डायग्‍नोसिस करने के लिए अत्‍याधुनिक तकनीकी के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी गई. कार्यशाला में प्रतिभागियों ने क्‍या सीखा, इसके बारे में अंतिम दिन प्रश्‍नोत्‍तरी का आयोजन किया गया.

कॉन्‍फ्रेंस की आयोजक साइटोजेनेटिक्स लैब सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नीतू निगम ने बताया कि कार्यशाला में 40 प्रतिभागियों को कैंसर, डाउन सिंड्रोम की डायग्‍नोसिस के लिए की जाने वाली प्रक्रिया की विस्‍तार से जानकारी दी गई. दो दिन हम लोगों ने कल्‍चर किया, स्‍लाइड तैयार करने की प्रक्रिया में तीन से चार दिन का समय लगा. अंतिम दिन स्‍लाइड तैयार हो गईं तो फ्लोरोसेंस इन सीटू हाइब्रि‍डाइजेशन (फि‍श), माइक्रोएरे और कैयरोटाइपिंग तकनीक के माध्‍यम से ब्रेस्‍ट कैंसर के जीन्‍स और मेंटली रिटार्डेड बच्‍चों में डाउन सिंड्रोम के जीन्‍स की पहचान करना बताया गया. कार्यशाला में फार्माकोलॉजी, एनाटॉमी, पैथोलॉजी आदि के छात्रों ने भाग लिया. अंतिम दिन प्रतिभागियों के लिए एक क्विज का आयोजन किया गया. इसमें सर्वाधिक अंक प्राप्‍त करने वाले 10 प्रतिभागियों को गोल्‍डेन मेडल प्रदान किया गया.

कार्यक्रम के अंत में डॉ. नीतू निगम ने धन्‍यवाद ज्ञापित किया. उन्‍होंने कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. बिपिन पुरी के प्रति आभार जताते हुए कहा कि उनकी प्रेरणा से ही यह कार्यक्रम आयोजित हो सका. डॉ. नीतू ने कुलसचिव रेखा एस चौहान को कार्यक्रम में शामिल होने के लिए धन्‍यवाद देते हुए कॉन्‍फ्रेंस में विभागाध्‍यक्ष प्रो. अमिता जैन के मार्गदर्शन के लिए आभार जताया. इसके अतिरिक्‍त उन्‍होंने कार्यक्रम के आयोजन में सहयोग के लिए डीन पैरोमेडिकल डॉ अनिल निश्‍चल, पैथोलॉजी विभाग के विभागाध्‍यक्ष प्रो यूएस सिंह, प्रो. रजनी गुप्‍ता, प्रो. गीतिका नंदा, प्रो. अनुराधा निश्‍चल, प्रो रीमा कुमार, प्रो प्रीती अग्रवाल, सीनियर टेक्निकल ऑफीसर राम शरण, पीएचडी स्‍कॉलर सुरभि, प्रवीन, नेहा, कीर्ति, शालिनी सहित पूरी आयो‍जन समिति का भी धन्‍यवाद अदा किया.

जबड़े के इन प्लांट प्रत्यारोपित का इलाज संभव : जबड़े के कैंसर व ट्यूमर के ऑपरेशन के दौरान इप्लांट प्रत्यारोपित किया जाता है. कई बार इप्लांट लगाने के बाद मरीज को साइनस का संक्रमण हो जाता है, जो डॉक्टरों के लिए चुनौती बन जाता है. अब ऐसे मरीजों का इलाज आसान हो गया है. यह जानकारी जयपुर के डॉ. मोहित अग्रवाल ने दी. शनिवार को केजीएमयू में दंत संकाय की तरफ से कान्फ्रेंस हुई. डॉ. मोहित अग्रवाल ने बताया कि जबड़े के कैंसर, ट्रॉमा व ट्यूमर के मरीजों का ऑपरेशन करने की जरूरत पड़ती है. ऑपरेशन कर जबड़े का ऊपरी हिस्सा निकाला जाता है. दोबारा जबड़ा बनाने के लिए जायकोमेटिक इम्प्लांट प्रत्यारोपित किया जाता है. यह इंप्लांट गाल की ऊपर की हड्डी में लगाया जाता है. इसके बाद इम्प्लांट में नया जबड़ा लगाया जाता है. बिना इस इम्प्लांट के जबड़ा लगाना मुमकिन नहीं होता. नई तकनीक से इम्प्लांट प्रत्यारोपित करने से मरीज में संक्रमण की आशंका कम हो जाती है. दंत संकाय के डॉ. लक्ष्य यादव ने बताया कि 10 मरीजों इम्प्लांट प्रत्यारोपित किया गया.

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