लखनऊ: प्रदेश में तमाम अस्पताल बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए परेशान रहते हैं. अक्सर अस्पतालों में बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण पर सवाल भी उठते हैं, लेकिन प्रदेश के एक अस्पताल ने बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण का ऐसा उपाय निकाला है जो सबके लिए अनुकरणीय है.
ये है स्थिति
दरअसल, प्रदेश में छोटे-बड़े हजारों की तादाद में अस्पताल हैं. इनमें लाखों बेड-ऑपरेशन थियेटर हैं. यहां से हर रोज भारी तादाद में दवा, आपरेशन, मेडिकल उपकरण संबंधी कचरा निकलता है, जिसे बायोमेडिकल वेस्ट कहते हैं. तमाम अस्पताओं के लिए इसका निस्तारण चुनौती बना हुआ है. वह इधर-उधर कचरा फेंक कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं. ऐसे में राजधानी लखनऊ स्थित केजीएमयू ने कचरे से ही आय की तरकीब निकाल ली है. इससे न सिर्फ संस्थान का राजस्व बढ़ रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिल रहा है.
अस्पताल में बना दिया पर्यावरण विभाग
डॉ. कीर्ति श्रीवास्तव के मुताबिक यूं तो केजीएमयू चिकित्सा संस्थान है, लेकिन यहां 10-12 साल पहले एनवायरमेंटल सेल बनी. छह साल पहले तत्कालीन कुलपति प्रो. रविकांत ने इसकी उपयोगिता समझी और पर्यावरण विभाग बना दिया. इसमें डॉ. परवेज, डॉ. डी हिमांशु समेत सात-आठ चिकित्सकों की कोर कमेटी बना दी गई.
![बायोमेडिकल वेस्ट](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/12024491_lko.jpg)
बेकार फूड से बनाई जा रही खाद
केजीएमयू में मरीजों के बचे खाने को फेंका नहीं जाता है. इसके अलावा सब्जी के छिलके, कैम्पस में लगे पौधों की पत्तियां झड़ने पर सफाई करते वक्त जलाई नहीं जाती हैं. यहां एनबीआरआई से ट्रेनिंग लेकर वर्मी कम्पोस्ट बनाई जा रही है. अभी तक एक मशीन व पांच गड्ढे थे, वहीं पर्यावरण दिवस पर दूसरी मशीन लगा दी गई है. ऐसे में अब खाद के गड्ढे भी बढ़ाए जाएंगे. इस खाद को कैम्पस में लगे पौधों में डाला जाता है.