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बेहतरीन व्यवस्थाः कचरे से लाखों कमा रहा यह अस्पताल - विश्व पर्यावरण दिवस

उत्तर प्रदेश के तमाम अस्पतालों में बायोमेडिकल वेस्ट जहां समस्या बनी हुई है वहीं एक अस्पताल ने इसके निस्तारण में मिसाल पेश की है.

बायोमेडिकल वेस्ट
बायोमेडिकल वेस्ट
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Published : Jun 5, 2021, 2:26 PM IST

लखनऊ: प्रदेश में तमाम अस्पताल बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए परेशान रहते हैं. अक्सर अस्पतालों में बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण पर सवाल भी उठते हैं, लेकिन प्रदेश के एक अस्पताल ने बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण का ऐसा उपाय निकाला है जो सबके लिए अनुकरणीय है.

बायोमेडिकल वेस्ट

ये है स्थिति
दरअसल, प्रदेश में छोटे-बड़े हजारों की तादाद में अस्पताल हैं. इनमें लाखों बेड-ऑपरेशन थियेटर हैं. यहां से हर रोज भारी तादाद में दवा, आपरेशन, मेडिकल उपकरण संबंधी कचरा निकलता है, जिसे बायोमेडिकल वेस्ट कहते हैं. तमाम अस्पताओं के लिए इसका निस्तारण चुनौती बना हुआ है. वह इधर-उधर कचरा फेंक कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं. ऐसे में राजधानी लखनऊ स्थित केजीएमयू ने कचरे से ही आय की तरकीब निकाल ली है. इससे न सिर्फ संस्थान का राजस्व बढ़ रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिल रहा है.

अस्पताल में बना दिया पर्यावरण विभाग
डॉ. कीर्ति श्रीवास्तव के मुताबिक यूं तो केजीएमयू चिकित्सा संस्थान है, लेकिन यहां 10-12 साल पहले एनवायरमेंटल सेल बनी. छह साल पहले तत्कालीन कुलपति प्रो. रविकांत ने इसकी उपयोगिता समझी और पर्यावरण विभाग बना दिया. इसमें डॉ. परवेज, डॉ. डी हिमांशु समेत सात-आठ चिकित्सकों की कोर कमेटी बना दी गई.

बायोमेडिकल वेस्ट
बायोमेडिकल वेस्ट
वार्ड से ही मैनेजमेंट, तय रूट से पहुंचता कूड़ाकेजीएमयू में वार्ड से ही कचरे का मैनेजमेंट तय किया गया. इसके लिए डॉक्टर, नर्स अन्य स्टाफ को ट्रेनिंग दी गई. ऐसे में वार्ड से अलग-अलग रंग के तय डिब्बों में प्लास्टिक, मेटल, कांच, नुकीला, कागज, रुई-पट्टी व कटे-फ़टे अंग अलग-अलग कर दिए जाते हैं. इसके बाद कैंपस में करीब छह रुट तय हैं. इससे ट्रॉली लेकर स्टाफ सभी वार्डों से समयगत कूड़ा उठाकर सेंट्रल स्टेशन पर पहुंचा देता है. ऑटोक्लेव से करते हैं विसंक्रमितडॉ. कीर्ति श्रीवास्तव के मुताबिक सेंट्रल स्टेशन पर बड़ी ऑटोक्लेव मशीन लगी हैं. इसमें कचरे को विसंक्रमित कर लिया जाता है. इसके बाद पेपर श्रेडर, नॉर्मल श्रेडर मशीनों का उपयोग होता है. इसके बाद प्लास्टिक कचरे व मेटल के कचरे को बेच दिया जाता है. इसका टेंडर जारी कर रेट तय किया गया है. हर माह डेढ़ से दो लाख रुपये आयडॉ. कीर्ति के मुताबिक हर रोज संस्थान में करीब 800 किलो बायोमेडिकल वेस्ट निकलता है. इससे करीब माह में डेढ़ से दो लाख की आय होती है. वहीं कचरे को मौके पर ही विसंक्रमित कर दिया जाता है. इससे पर्यावरण दूषित होने का खतरा नहीं रहता है. उधर, हर माह 546 किलो येलो कचरा होता है. इसमें कटे-फटे अंग होते हैं. इसको कंपनी ले जाकर मशीन में बर्न कर देती है. इसे भी पढ़ेंः सुबह मिले 422 नए मरीज, चार की मौत

बेकार फूड से बनाई जा रही खाद
केजीएमयू में मरीजों के बचे खाने को फेंका नहीं जाता है. इसके अलावा सब्जी के छिलके, कैम्पस में लगे पौधों की पत्तियां झड़ने पर सफाई करते वक्त जलाई नहीं जाती हैं. यहां एनबीआरआई से ट्रेनिंग लेकर वर्मी कम्पोस्ट बनाई जा रही है. अभी तक एक मशीन व पांच गड्ढे थे, वहीं पर्यावरण दिवस पर दूसरी मशीन लगा दी गई है. ऐसे में अब खाद के गड्ढे भी बढ़ाए जाएंगे. इस खाद को कैम्पस में लगे पौधों में डाला जाता है.

लखनऊ: प्रदेश में तमाम अस्पताल बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए परेशान रहते हैं. अक्सर अस्पतालों में बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण पर सवाल भी उठते हैं, लेकिन प्रदेश के एक अस्पताल ने बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण का ऐसा उपाय निकाला है जो सबके लिए अनुकरणीय है.

बायोमेडिकल वेस्ट

ये है स्थिति
दरअसल, प्रदेश में छोटे-बड़े हजारों की तादाद में अस्पताल हैं. इनमें लाखों बेड-ऑपरेशन थियेटर हैं. यहां से हर रोज भारी तादाद में दवा, आपरेशन, मेडिकल उपकरण संबंधी कचरा निकलता है, जिसे बायोमेडिकल वेस्ट कहते हैं. तमाम अस्पताओं के लिए इसका निस्तारण चुनौती बना हुआ है. वह इधर-उधर कचरा फेंक कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं. ऐसे में राजधानी लखनऊ स्थित केजीएमयू ने कचरे से ही आय की तरकीब निकाल ली है. इससे न सिर्फ संस्थान का राजस्व बढ़ रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिल रहा है.

अस्पताल में बना दिया पर्यावरण विभाग
डॉ. कीर्ति श्रीवास्तव के मुताबिक यूं तो केजीएमयू चिकित्सा संस्थान है, लेकिन यहां 10-12 साल पहले एनवायरमेंटल सेल बनी. छह साल पहले तत्कालीन कुलपति प्रो. रविकांत ने इसकी उपयोगिता समझी और पर्यावरण विभाग बना दिया. इसमें डॉ. परवेज, डॉ. डी हिमांशु समेत सात-आठ चिकित्सकों की कोर कमेटी बना दी गई.

बायोमेडिकल वेस्ट
बायोमेडिकल वेस्ट
वार्ड से ही मैनेजमेंट, तय रूट से पहुंचता कूड़ाकेजीएमयू में वार्ड से ही कचरे का मैनेजमेंट तय किया गया. इसके लिए डॉक्टर, नर्स अन्य स्टाफ को ट्रेनिंग दी गई. ऐसे में वार्ड से अलग-अलग रंग के तय डिब्बों में प्लास्टिक, मेटल, कांच, नुकीला, कागज, रुई-पट्टी व कटे-फ़टे अंग अलग-अलग कर दिए जाते हैं. इसके बाद कैंपस में करीब छह रुट तय हैं. इससे ट्रॉली लेकर स्टाफ सभी वार्डों से समयगत कूड़ा उठाकर सेंट्रल स्टेशन पर पहुंचा देता है. ऑटोक्लेव से करते हैं विसंक्रमितडॉ. कीर्ति श्रीवास्तव के मुताबिक सेंट्रल स्टेशन पर बड़ी ऑटोक्लेव मशीन लगी हैं. इसमें कचरे को विसंक्रमित कर लिया जाता है. इसके बाद पेपर श्रेडर, नॉर्मल श्रेडर मशीनों का उपयोग होता है. इसके बाद प्लास्टिक कचरे व मेटल के कचरे को बेच दिया जाता है. इसका टेंडर जारी कर रेट तय किया गया है. हर माह डेढ़ से दो लाख रुपये आयडॉ. कीर्ति के मुताबिक हर रोज संस्थान में करीब 800 किलो बायोमेडिकल वेस्ट निकलता है. इससे करीब माह में डेढ़ से दो लाख की आय होती है. वहीं कचरे को मौके पर ही विसंक्रमित कर दिया जाता है. इससे पर्यावरण दूषित होने का खतरा नहीं रहता है. उधर, हर माह 546 किलो येलो कचरा होता है. इसमें कटे-फटे अंग होते हैं. इसको कंपनी ले जाकर मशीन में बर्न कर देती है. इसे भी पढ़ेंः सुबह मिले 422 नए मरीज, चार की मौत

बेकार फूड से बनाई जा रही खाद
केजीएमयू में मरीजों के बचे खाने को फेंका नहीं जाता है. इसके अलावा सब्जी के छिलके, कैम्पस में लगे पौधों की पत्तियां झड़ने पर सफाई करते वक्त जलाई नहीं जाती हैं. यहां एनबीआरआई से ट्रेनिंग लेकर वर्मी कम्पोस्ट बनाई जा रही है. अभी तक एक मशीन व पांच गड्ढे थे, वहीं पर्यावरण दिवस पर दूसरी मशीन लगा दी गई है. ऐसे में अब खाद के गड्ढे भी बढ़ाए जाएंगे. इस खाद को कैम्पस में लगे पौधों में डाला जाता है.

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