लखनऊ : हिंदू हृदय सम्राट के रुप में अपनी पहचान बनाने वाले कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का जन्म 5 जनवरी 1932 को अलीगढ़ जिले के अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में हुआ था. दो बार मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर विराजमान रहने वाले कल्याण सिंह का राजनीतिक सफर (Kalyan Singh Political Carrier) उथल-पुथल से भरा रहा है. साल 1962 में कल्याण सिंह ने अतरौली विधानसभा सीट (Atrauli Vidhansabha Seat) से चुनाव लड़ा. जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ रहे कल्याण सिंह को सोशलिस्ट पार्टी के बाबू सिंह यादव से हार मिली. पांच साल बाद फिर कल्याण सिंह (Kalyan Singh) ने इसी सीट से चुनाव लड़ा और तब कांग्रेस उम्मीदवार अमर सिंह को हराकर पहली बार विधानसभा के सदस्य बने. 1975-76 में देश में जब आपातकाल का दौर आया तब कल्याण सिंह 21 महीने जेल में रहे. आगे चलकर कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने.
आरएसएस और भाजपा ने जब राम मंदिर आंदोलन चलाया तब इसमें कल्याण सिंह ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. और, जब साल 1991 में उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव हुआ तब भाजपा को राज्य में पूर्ण बहुमत हासिल हुआ. अहम भूमिका निभाने वाले कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद मिला और फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति में वह अध्याय लिखा गया जो पहले कभी नहीं हुआ था.
तारीख थी 6 दिसंबर 1992 की. दोपहर का वक्त था. कल्याण सिंह अपने निवास स्थान 5 कालिदास मार्ग पर थे. उधर कारसेवक अपने मिशन में जुटे हुए थे. बाबरी मस्जिद के गुंबद पर लोग चढ़ चुके थे. कारसेवकों की भीड़ उसे तोड़ने पर आमादा थी. मौके पर अर्द्धसैनिक बल तैनात थे. इधर तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह अपने आवास पर भोजन कर रहे थे. उस वक्त राज्य के पुलिस महानिदेशक एसएम त्रिपाठी थे. उन्होंने मुख्यमंत्री से कारसेवकों पर गोली चलाने की अनुमति मांगी. लेकिन, कल्याण सिंह ने गोली चलाने के बजाय लाठी चार्ज, आंसू गैस जैसे अन्य तरीकों का इस्तेमाल करने की बात कही. और फिर देखते ही देखते ही बाबरी मस्जिद ढहा दी गयी.
221 सीटों के साथ सदन में पूर्ण बहुमत वाली कल्याण सिंह सरकार ने इसके बाद अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया. कल्याण सिंह हिंदू हृदय सम्राट बन चुके थे. साल 1997 में कल्याण सिंह दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा उत्तर प्रदेश में मजबूत होती रही. लेकिन, साल 1999 में मतभेदों के कारण कल्याण सिंह ने भाजपा से नाता तोड़ लिया. कल्याण सिंह ने अपनी पार्टी का गठन किया और उसका नाम राष्ट्रीय क्रांति पार्टी रखा. साल 2002 के विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह की पार्टी ने 4 सीटें जीतीं. कल्याण सिंह और भाजपा के अलग होने से दोनों को ही नुकसान होता रहा. दोनों ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में कमजोर पड़ते गये. और फिर साल 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर कल्याण सिंह एक बार फिर भाजपा में शामिल हो गये. लेकिन इतने दिनों में काफी कुछ बदल चुका था. पार्टी में कल्याण सिंह की हैसियत अब पहले जैसी नहीं थी. साल 2004 में लोकसभा का चुनाव लड़कर वह लोकसभा पहुंचे. गुजरते वक्त के साथ भाजपा में कल्याण सिंह खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे. उन्होंने एक बार फिर भाजपा से नाता तोड़कर अलग राह चुनी. आगे चलकर उन्होंने एक बार फिर अपनी पार्टी बनायी और नाम दिया जनक्रांति पार्टी. साल 2013 में कल्याण सिंह एक बार फिर भाजपा में वापस आ गये. 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने भाजपा के लिये प्रचार भी किया और जब रिजल्ट तो भाजपा की झोली में 71 लोकसभा सीटें थीं. साल 2014 में कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल बनाये गये.
कल्याण सिंह, वह नाम जो आज भी लोगों की जुबां पर है, दिलोदिमाग में है. 30 साल के लोधी जाति के युवा ने जब 1962 में राजनीति में कदम रखा था, तब किसी को अंदाजा भी नहीं था कि यह लड़का राजनीति के पन्नों में अपना कितना बड़ा मुकाम दर्ज कराने वाला है. संघर्ष से सत्ता तक पहुंचने की भाजपा की जब-जब कहानी सुनायी जाएगी, तब-तब कल्याण सिंह का नाम उसमें शामिल होगा. कल्याण सिंह ने भारतीय राजनीति के सफर में खुद का पड़ाव बनाया और दिल्ली दरबार के बंद दरवाजों को खोलने में भाजपा के मददगार बना.
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