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क्या यूपी में जितिन जुटा पाएंगे ब्राह्मण वोट ?

जितिन प्रसाद ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है. सुगबुगाहट है कि भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है. इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक राज बहादुर सिंह कहते हैं कि भले ही कांग्रेस पार्टी कहे कि जितिन प्रसाद के भाजपा में जाने से कांग्रेस का कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. कांग्रेस को तो इसका नुकसान होना तय है.

जितिन प्रसाद
जितिन प्रसाद
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Published : Jun 9, 2021, 5:22 PM IST

Updated : Jun 9, 2021, 8:30 PM IST

लखनऊ: कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद एक बड़ा चेहरा माने जाते रहे हैं, लेकिन अब वह यूपी में ही भाजपा के बड़े चेहरे के तौर पर जाने जाएंगे. जितिन प्रसाद का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और उन्होंने यूपी में 2022 विधानसभा चुनाव में कमल खिलाने का बीड़ा उठाने का फैसला लिया है.

भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है. वजह है कि तमाम ऐसी घटनाएं हुईं, जिसमें योगी सरकार पर यह आरोप लगने लगा कि इस सरकार में ब्राह्मण प्रताड़ित हैं. इस आरोप से निपटने के लिए भाजपा जितिन प्रसाद को ब्राह्मण चेहरे के रूप में सामने लाई है.

जानकारी देते संवाददाता.

विरासत में मिली थी राजनीति, पिता जितेन्द्र थे कद्दावर नेता
29 नवंबर 1973 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में पैदा हुए जितिन प्रसाद राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता जितेंद्र प्रसाद शाहजहांपुर से लगातार सांसद रहे थे. वह संगठन में भी बड़े पदों पर रहे. जितिन ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकॉम और फिर एमबीए की पढ़ाई की. जितिन प्रसाद ने अपना राजनीतिक करियर साल 2001 में कांग्रेस के युवा संगठन यूथ कांग्रेस के साथ शुरू किया. उन्हें यूथ कांग्रेस में महासचिव बनाया गया.

पहले चुनाव में ही मारी बाजी
साल 2004 में उन्होंने अपने जिला शाहजहांपुर से अपना पहला लोकसभा चुनाव जीत लिया. जितिन प्रसाद को मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री बनाया गया और वह मनमोहन सरकार के सबसे युवा मंत्री थे. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 2009 में लोकसभा चुनाव हुआ और धौरहरा से जितिन प्रसाद को कांग्रेस पार्टी ने प्रत्याशी बनाया. यहां पर भी जितिन ने कांग्रेस का झंडा बुलंद किया और लगभग 2 लाख वोटों से जीत दर्ज की. उनकी इस कामयाबी का कांग्रेस पार्टी ने उन्हें इनाम भी दिया. 2009 से 2011 तक सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे.

2011-12 में उनके मंत्रालय में तब्दीली कर दी गई और वह पेट्रोलियम मंत्रालय में राज्य मंत्री बने. 2012 से 2014 तक जितिन प्रसाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्यमंत्री भी बनाए गए. साल 2008 में जतिन प्रसाद जब केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री थे तो उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र में एक स्टील फैक्ट्री का भी निर्माण कराया था. जिसमें काफी लोगों को रोजगार मिला था. उनका यह काम अभी भी उनके लोकसभा क्षेत्र में चर्चा का विषय रहता है.

लगातार 3 बार चुनाव हार चुके हैं जितिन प्रसाद
जितिन प्रसाद भले ही दो बार लोकसभा चुनाव जीते हों, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद साल 2017 में उन्होंने विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाई, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. उनकी हार का सिलसिला साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा.

क्या कांग्रेस ने करियर खत्म करने के लिए बनाया था पश्चिम बंगाल का प्रभारी
जितिन प्रसाद को कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में पश्चिम बंगाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी. उन्हें पार्टी ने पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया था, लेकिन पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी अपना खाता खोलने में भी सफल नहीं हो सकी थी. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में हुए पंचायत चुनाव में भी वे अपनी पार्टी को उम्मीद के मुताबिक जीत नहीं दिला पाए थे. हालांकि पश्चिम बंगाल में जब वह प्रभारी बनाए गए तो सवाल उठा था कि कांग्रेस पार्टी रणनीति के तौर पर उन्हें खत्म करना चाहती है, इसीलिए पश्चिम बंगाल का प्रभार सौंपा है.

ब्राह्मण पर फोकस रही है जितिन की राजनीति
जितिन प्रसाद पारंपरिक तौर से कांग्रेस के ब्राह्मण चेहरे के तौर पर जाने जाते रहे हैं. उन्होंने इस वोट बैंक को ध्यान में रखकर सियासत की है. जितिन ने हाल ही में ब्राह्मण चेतना परिषद गठित की है. उत्तर प्रदेश के योगी राज में जब ब्राह्मणों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई हुई थी, उसे लेकर जितिन प्रसाद काफी मुखर हुए थे. जितिन प्रसाद ब्राह्मण कल्याण बोर्ड के गठन की भी मांग लगातार उठा रहे हैं.

जब जितिन के खिलाफ मुखर हुए थे स्वर
कांग्रेस में रहते हुए ही जितिन प्रसाद के स्वर भी जी-23 को लेकर मुखर होने लगे थे. बीते साल कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने जब पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर बदलाव की मांग की थी. इन नेताओं में एक नाम जितिन प्रसाद का भी था. कांग्रेस प्रदेश इकाई ने जितिन प्रसाद समेत चिट्ठी लिखने वाले सभी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी. हालांकि उन पर कार्रवाई नहीं हुई.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक राज बहादुर सिंह कहते हैं कि भले ही कांग्रेस पार्टी कहे कि जितिन प्रसाद के भाजपा में जाने से कांग्रेस का कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. कांग्रेस को तो इसका नुकसान होना तय है. हालांकि भारतीय जनता पार्टी को कितना फायदा होगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी. वजह है कि पिछले काफी समय से जितिन प्रसाद ही अपना चुनाव नहीं जीत पा रहे थे. हालांकि भाजपा को एक अच्छा ब्राह्मण चेहरा उत्तर प्रदेश में जरूर मिल गया है.

राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि गौर करने वाली बात यह भी है कि लोग सरनेम के जरिए जाति ढूंढते हैं, लेकिन जितिन प्रसाद ने अपने नाम के आगे कभी ब्राह्मण नहीं जोड़ा. उनके पिता जितेंद्र प्रसाद ने भी सरनेम नहीं लिखा, इसलिए बहुत लोग यह भी नहीं जानते हैं कि जितिन ब्राह्मण भी हैं. कांग्रेस के पास वैसे ही खोने के लिए बचा ही क्या है. उम्मीद है कि भाजपा और जितिन एक-दूसरे के लिए फायदेमंद साबित होंगे. कांग्रेस को तो दोनों तरफ से ही नुकसान हुआ है.

लखनऊ: कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद एक बड़ा चेहरा माने जाते रहे हैं, लेकिन अब वह यूपी में ही भाजपा के बड़े चेहरे के तौर पर जाने जाएंगे. जितिन प्रसाद का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और उन्होंने यूपी में 2022 विधानसभा चुनाव में कमल खिलाने का बीड़ा उठाने का फैसला लिया है.

भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है. वजह है कि तमाम ऐसी घटनाएं हुईं, जिसमें योगी सरकार पर यह आरोप लगने लगा कि इस सरकार में ब्राह्मण प्रताड़ित हैं. इस आरोप से निपटने के लिए भाजपा जितिन प्रसाद को ब्राह्मण चेहरे के रूप में सामने लाई है.

जानकारी देते संवाददाता.

विरासत में मिली थी राजनीति, पिता जितेन्द्र थे कद्दावर नेता
29 नवंबर 1973 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में पैदा हुए जितिन प्रसाद राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता जितेंद्र प्रसाद शाहजहांपुर से लगातार सांसद रहे थे. वह संगठन में भी बड़े पदों पर रहे. जितिन ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकॉम और फिर एमबीए की पढ़ाई की. जितिन प्रसाद ने अपना राजनीतिक करियर साल 2001 में कांग्रेस के युवा संगठन यूथ कांग्रेस के साथ शुरू किया. उन्हें यूथ कांग्रेस में महासचिव बनाया गया.

पहले चुनाव में ही मारी बाजी
साल 2004 में उन्होंने अपने जिला शाहजहांपुर से अपना पहला लोकसभा चुनाव जीत लिया. जितिन प्रसाद को मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री बनाया गया और वह मनमोहन सरकार के सबसे युवा मंत्री थे. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 2009 में लोकसभा चुनाव हुआ और धौरहरा से जितिन प्रसाद को कांग्रेस पार्टी ने प्रत्याशी बनाया. यहां पर भी जितिन ने कांग्रेस का झंडा बुलंद किया और लगभग 2 लाख वोटों से जीत दर्ज की. उनकी इस कामयाबी का कांग्रेस पार्टी ने उन्हें इनाम भी दिया. 2009 से 2011 तक सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे.

2011-12 में उनके मंत्रालय में तब्दीली कर दी गई और वह पेट्रोलियम मंत्रालय में राज्य मंत्री बने. 2012 से 2014 तक जितिन प्रसाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्यमंत्री भी बनाए गए. साल 2008 में जतिन प्रसाद जब केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री थे तो उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र में एक स्टील फैक्ट्री का भी निर्माण कराया था. जिसमें काफी लोगों को रोजगार मिला था. उनका यह काम अभी भी उनके लोकसभा क्षेत्र में चर्चा का विषय रहता है.

लगातार 3 बार चुनाव हार चुके हैं जितिन प्रसाद
जितिन प्रसाद भले ही दो बार लोकसभा चुनाव जीते हों, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद साल 2017 में उन्होंने विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाई, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. उनकी हार का सिलसिला साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा.

क्या कांग्रेस ने करियर खत्म करने के लिए बनाया था पश्चिम बंगाल का प्रभारी
जितिन प्रसाद को कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में पश्चिम बंगाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी. उन्हें पार्टी ने पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया था, लेकिन पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी अपना खाता खोलने में भी सफल नहीं हो सकी थी. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में हुए पंचायत चुनाव में भी वे अपनी पार्टी को उम्मीद के मुताबिक जीत नहीं दिला पाए थे. हालांकि पश्चिम बंगाल में जब वह प्रभारी बनाए गए तो सवाल उठा था कि कांग्रेस पार्टी रणनीति के तौर पर उन्हें खत्म करना चाहती है, इसीलिए पश्चिम बंगाल का प्रभार सौंपा है.

ब्राह्मण पर फोकस रही है जितिन की राजनीति
जितिन प्रसाद पारंपरिक तौर से कांग्रेस के ब्राह्मण चेहरे के तौर पर जाने जाते रहे हैं. उन्होंने इस वोट बैंक को ध्यान में रखकर सियासत की है. जितिन ने हाल ही में ब्राह्मण चेतना परिषद गठित की है. उत्तर प्रदेश के योगी राज में जब ब्राह्मणों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई हुई थी, उसे लेकर जितिन प्रसाद काफी मुखर हुए थे. जितिन प्रसाद ब्राह्मण कल्याण बोर्ड के गठन की भी मांग लगातार उठा रहे हैं.

जब जितिन के खिलाफ मुखर हुए थे स्वर
कांग्रेस में रहते हुए ही जितिन प्रसाद के स्वर भी जी-23 को लेकर मुखर होने लगे थे. बीते साल कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने जब पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर बदलाव की मांग की थी. इन नेताओं में एक नाम जितिन प्रसाद का भी था. कांग्रेस प्रदेश इकाई ने जितिन प्रसाद समेत चिट्ठी लिखने वाले सभी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी. हालांकि उन पर कार्रवाई नहीं हुई.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक राज बहादुर सिंह कहते हैं कि भले ही कांग्रेस पार्टी कहे कि जितिन प्रसाद के भाजपा में जाने से कांग्रेस का कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. कांग्रेस को तो इसका नुकसान होना तय है. हालांकि भारतीय जनता पार्टी को कितना फायदा होगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी. वजह है कि पिछले काफी समय से जितिन प्रसाद ही अपना चुनाव नहीं जीत पा रहे थे. हालांकि भाजपा को एक अच्छा ब्राह्मण चेहरा उत्तर प्रदेश में जरूर मिल गया है.

राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि गौर करने वाली बात यह भी है कि लोग सरनेम के जरिए जाति ढूंढते हैं, लेकिन जितिन प्रसाद ने अपने नाम के आगे कभी ब्राह्मण नहीं जोड़ा. उनके पिता जितेंद्र प्रसाद ने भी सरनेम नहीं लिखा, इसलिए बहुत लोग यह भी नहीं जानते हैं कि जितिन ब्राह्मण भी हैं. कांग्रेस के पास वैसे ही खोने के लिए बचा ही क्या है. उम्मीद है कि भाजपा और जितिन एक-दूसरे के लिए फायदेमंद साबित होंगे. कांग्रेस को तो दोनों तरफ से ही नुकसान हुआ है.

Last Updated : Jun 9, 2021, 8:30 PM IST
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