वाराणसी : हर साल अक्टूबर से मार्च तक काशी विदेशी मेहमानों से गुलजार रहती है. इन विदेशी मेहमानों में साइबेरिया से आने वाले कुछ खास प्रवासी मेहमान बेहद खास होते हैं. ये खास प्रवासी मेहमान साइबेरियन पक्षी होते हैं, जो 44 हजार किलोमीटर का सफर तय करके सात समंदर पार से काशी आते हैं. गंगा नदी में इनकी अठखेलियां हर किसी का मन मोह लेती है. यही वजह है कि बड़ी संख्या में लोग इन्हें देखने के लिए भी आते हैं. बहरहाल इस बार इन विदेशी मेहमानों की संख्या कम हुई है. यही वजह है कि बनारस के घाटों पर विदेशी पक्षियों का कलरव भी कम सुनाई दे रहा है.
बता दें, हर साल साइबेरियन पक्षी अक्टूबर के महीने से बनारस आने लगते हैं. साइबेरिया में पड़ने वाली ठंड, बर्फबारी इन्हें भारत की ओर पलायन के लिए मजबूर करती है. भारत में यह चिल्का झील, उत्तर प्रदेश में बनारस व राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचते हैं और यहां विचरण करते हैं. इस बार में विदेशी मेहमानों की संख्या बेहद कम है. घाटों पर देखने से लगता है कि इस बार इनकी संख्या हजारों में सिमट कर रह गई है.
इजराइल युद्ध से कम हुई विदेशी मेहमानों की संख्या: प्रवासी पक्षियों की संख्या के बाबत बीएचयू की पक्षी वैज्ञानिक चांदना हलदार बताती हैं कि विदेशी पक्षियों की 300 से ज्यादा प्रजातियां बनारस में आती हैं. इस बार हो कम होने के पीछे दो-तीन मुख्य वजह हैं. चांदना हलदार के मुताबिक इजराइल में हो रहा युद्ध, धमाके की आवाज और वहां का प्रदूषण इन पक्षियों को आगे बढ़ने नहीं दे रहा है. जिस वजह से इस बार पक्षी बनारस की तरफ उड़ान नहीं भर सके हैं. दूसरी वजह जलवायु परिवर्तन है. इस बार साइबेरिया में पहले जैसी ठंड नहीं पड़ी. तीसरा हमारी तरफ होने वाला पर्यावरण परिवर्तन भी जिम्मेदार है.
चांदना हलदार बताती हैं कि हर साल ये पक्षी अक्टूबर के महीने में लाखों की संख्या में बनारस आते हैं, लेकिन इस बार इन पक्षियों ने अपना रास्ता भी बदल लिया है. कुछ पक्षी ऊपर चिलका लेक पर उतरे हैं. भरतपुर राजस्थान में भी कुछ ही संख्या में विदेशी पक्षियों ने दस्तक दी है. साथ ही बनारस, चंदौली और संगम में संख्या कम देखी जा रही है. बहरहला उम्मीद है कि अगले साल फिर से विदेशी मेहमानों का कलरव बनारस के घाटों पर सुनाई देगा.
बाहरी खाना विदेशी पक्षियों के लिए जहर: चांदना हलदार बताती हैं कि यह पक्षी बनारस आने के साथ ही अपनी नई पीढ़ी को यहां से लेकर के जाते हैं. गंगा की रेत में यह प्रजनन करते हैं और उनके साथ उनके बच्चे भी यहां से जाते हैं, लेकिन इस बार इनके प्रजनन की उम्मीद भी बेहद कम है, क्योंकि उनकी संख्या बेहद कम है. पक्षियों के कम होने के पीछे की एक वजह यह भी है कि, यहां पर पक्षियों को जिस तरीके से बेसन, ब्रेड से बने सामान दिए जाते हैं, वह उनके सेहत को बेहद नुकसान पहुंचाते हैं.
यही वजह है कि बीते कुछ साल में बड़ी संख्या में यह प्रवासी पक्षी मृत भी पाए गए हैं. क्योंकि यहां दिए जाने वाले खाना उनके शरीर को बेहद नुकसान पहुंचाता है. पक्षियों को अमूमन डायरिया हो जाता है. इसलिए मेरी अपील है कि काशी में आने वाले इन पक्षियों को किसी भी तरीके का बाहरी खाना ना दें, वह गंगा में रहने वाली मछलियों को खाकर भी अपना गुजारा कर सकते हैं.