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यूपी की जेलों की कहानी, जानिए कहां कितनी है परेशानी - कोरोना वायरस

उत्तर प्रदेश की तमाम जेलों में लगातार कैदी ठूंस-ठूंस कर भरे जा रहे हैं. आलम ये है कि मुरादाबाद, जौनपुर, वाराणसी समेत कई जेलों में क्षमता से कई गुना कैदी भरे गए हैं. कोरोना संक्रमण के दौर में ये स्थिति भयावह है.

यूपी की जेलों में ठूंस कर भरे हैं कैदी
यूपी की जेलों में ठूंस कर भरे हैं कैदी
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Published : May 17, 2021, 1:00 PM IST

Updated : May 17, 2021, 4:11 PM IST

लखनऊ: कोर्ट और कानून तय करते हैं कि किस अपराध में किसी को कितने दिनों तक कैद में रहना है. न्यायपालिका की कोशिश यह होती है कि अपराधी अपने गुनाहों की सजा अवश्य पाए, लेकिन वह दंड न तो अपराध की गंभीरता से कम हो, न ज्यादा. प्रदेश की जेलों में फिलहाल इस न्याय की मंशा का आदर नहीं हो पा रहा है.

यूपी की जेलों की संपूर्ण कहानी

कोई भी अदालत बंदी को जानवरों जैसी हालत में ठूंस-ठूंस कर भर रखने का आदेश नहीं देती, लेकिन जेलों में हालत बद से बदतर है. बंदी को भोजन, पानी व चिकित्सा की सुविधा मिलनी चाहिए, लेकिन यह बुनियादी जरूरतें जेलों की व्यवस्था देखने वाला तंत्र पूरा नहीं कर पाता. ऐसा तब है, जब देश में कोरोना महामारी फैली है. जेलों में क्षमता से अधिक बंदियों के भरे होने पर सुप्रीम कोर्ट ने भी तल्ख टिप्पणी की है. बावजूद इसके जेलों में कोई सुधार नहीं आ रहा. इन अमानवीय परिस्थितियों में बंदी या तो बीमार होकर दम तोड़ देते हैं या उग्र होकर जेल की सलाखें तोड़ देते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने जाहिर की थी चिंता

वैश्विक महामारी के आने के बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एनबी रमण, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने हाल ही में जेलों में ठूंस ठूंस कर भरे गए कैदियों की हालत पर चिंता जताई थी. जेलों में भीड़ को रोकने के लिए महामारी के दौरान गिरफ्तारियों को सीमित करने का आह्वान किया है. साथ ही कहा कि क्या हम इस हालात को देखते हुए जेलों में कैदियों की भीड़ कम करने और जेलों की क्षमता बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं? कोर्ट ने जेलों में कैदियों की तादाद को कम करने के लिए राज्यों से उन कैदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा करने के लिए विचार करने को कहा है, जो अधिकतम 7 साल की सजा काट रहे हैं. अब राज्य सरकारों को तय करना है कि किस श्रेणी के अपराधियों को मुकदमे के तहत पैरोल या अंतरिम जमानत दी जा सकती है.

यूपी की जेलों में ठूंस कर भरे हैं कैदी
यूपी की जेलों में ठूंस कर भरे हैं कैदी

इसे भी पढ़ें:जेल के अंदर गैंगस्टर मुकीम काला समेत तीन कैदियों की गोली मारकर हत्या

आदेश के बाद शुरू हुई थी रिहाई

इस आदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने कैदियों को पैरोल पर रिहा करने की कवायद शुरू की. कोरोना संक्रमण की पहली वेब में 2200 कैदियों को 60 दिन के पैरोल पर रिहा किया गया था. इनमें से आधे क़ैदी जेल नहीं लौटे. कोरोना के दूसरी लहर में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद शासन में कैदियों को पैरोल पर छोड़ने की रणनीति तैयार की जा रही है. मई के अंत तक कैदियों को रिहा किया जाएगा. वहीं, यूपी की जेलों से अंतरिम जमानत पर 4803 क़ैदी रिहा किये जा चुके हैं.

यूपी की जेलों में क्षमता से कई गुना अधिक बंदी निरुद्ध

प्रदेश की केंद्रीय कारागार, जिला कारागार, उप कारागार, आदर्श कारागार, किशोर सदन व नारी बंदी निकेतन समेत विभिन्न श्रेणी की 72 जेलों में 60 हजार 685 बंदियों को निरुद्ध करने की क्षमता है, जबकि 1, 02, 809 बंदी जेलों में बंद किए गए हैं. जो क्षमता से करीब दो गुना है. इनमें से मात्र 26086 बंदियों को सजा मिली है. जबकि, 73003 विचाराधीन बन्दी जेल में निरुद्ध हैं. जनवरी 2021 तक प्रदेश की कारागारों में 454 विदेशी बन्दी भी निरुद्ध हैं. इनमें 131 को सजा मिली है. जबकि, 323 विचाराधीन बंदी हैं.

अंतरिम जमानत पर 4803 विचाराधीन बंदियों की हुई रिहाई

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुपालन में कोविड काल में जेलों में बंदियों को संक्रमण से बचाने और उनके व्यापक स्वास्थ्य में प्रदेश के विभिन्न जिलों से 90 दिन की अंतरिम जमानत पर अब तक 4803 विचाराधीन बंदी रिहा किए जा चुके हैं.

यूपी की जेलों में 1266 संक्रमित बंदी
डीजी जेल के मुताबिक जेलों में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में 1869 कैदी संक्रमित थे, अब एक्टिव केसेस की संख्या घटकर 1266 रह गई है. इनमें से 149 जेलकर्मी भी शामिल हैं. अब तक करोना संक्रमण से कुल 7 बंदियों और चार जेल कर्मियों की मौत हो चुकी है. जेलों में कोरोना संक्रमित बंदियों के इलाज के लिए व्यवस्था की गई है. उन्हें जरूरी दवाएं, जड़ी-बूटियों से युक्त काढ़ा और भांप दिया जा रहा है. बंदियों का रूटीन चेकअप और ऑक्सीजन लेवल भी रोज जांच कराई जाती है.

पर्याप्त सुरक्षा बल भी नहीं
उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद करीब एक लाख बन्दियों की सुरक्षा व अन्य व्यवस्था के लिये 11098 पद स्वीकृत हैं. जबकि, 5223 ही जेल कर्मचारी विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं. 5875 पद अभी भी खाली पड़े हैं. इनमें एक लाख बन्दियों पर सिर्फ 2652 जेल हेड वार्डर हैं. जबकि, स्वीकृत पद 7329 हैं. इसी प्रकार 70 पद के सापेक्ष 48 जेल अधीक्षक, 94 के सापेक्ष 90 जेलर और 474 पद के सापेक्ष 206 जेल कार्यरत हैं.

महिला कैदियों से पुलिस कस्टडी में दुष्कर्म के सबसे अधिक मामले
पुलिस रिकॉर्ड की मानें तो उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018 से 2020 के दौरान 280 से अधिक महिला कैदियों से पुलिस कस्टडी में दुष्कर्म की घटनाएं हुई है. उत्तर प्रदेश की जेलों में सबसे अधिक दुर्दशा महिलाओं की है. यही नहीं यूपी की जेलों में बंद महिला कैदियों के मानसिक रोगी हो जाने के मामले में भी यूपी सबसे ऊपर है. यहां वर्ष 2018 से 2020 के बीच सालों में 54 से अधिक महिला कैदी मानसिक रोग से ग्रस्त हो गई है. इसी के दौरान अवसाद में आकर तीन महिलाओं ने आत्महत्या भी की है.




जेल की क्षमता और सिद्धदोष, विचाराधीन बंदियों की संख्या

जिला कारागार मुरादाबाद में 717 के सापेक्ष 3387 बंदी निरुद्ध हैं. इनमें से 488 सिद्धदोष व 2899 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार जौनपुर 320 के सापेक्ष 1100 बंदी हैं. इनमें 88 सिद्धदोष व 1012 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार देवरिया में 533 के सापेक्ष 1639 बंदी निरुद्ध हैं. इनमें 133 सिद्धदोष व 1506 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार मथुरा में 554 के सापेक्ष 1641 बंदी निरुद्ध है. इनमें 184 सिद्धदोष व 1457 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार सहारनपुर 533 के सापेक्ष 1564 के निरुद्ध हैं. इनमें 334 सिद्धदोष और 1234 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार गाजियाबाद में 1704 के सापेक्ष 4978 बंदी निरुद्ध हैं. इनमें 620 सिद्धदोष और 4358 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार वाराणसी में 747 के सापेक्ष 2164 बंदी निरुद्ध हैं. इनमें से 174 सिद्धदोष और 1990 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार इटावा में 610 के सापेक्ष 1743 बंदी निरुद्ध हैं. इनमें 390 सिद्धदोष व 1353 विचाराधीन बंदी हैं.

'जेल अफसरों को मुहैया कराई जाए सुविधाएं'

रिटायर्ड डिप्टी एसपी श्यामाकांत त्रिपाठी का कहना है कि पुराने जमाने की जेलों में बंदियों के रखने की क्षमता कम है. अब जेलों में क्षमता से दोगुने से अधिक बंदी निरुद्ध हैं. कोरोना संक्रमण से बचने के लिए जेल प्रशासन को 7 साल से कम सजा वाले अपराधियों को पैरोल या फिर अंतरिम जमानत पर छोड़ा जाना चाहिए. इस संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश किया है. जेलों में बंद अपराधीकरण को कम करने के लिए जेल अफसरों को संसाधन मुहैया कराना चाहिए. दरअसल, जेल अफसरों के पास अपराधियों से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है.

'छोटे-मोटे अपराधों में गिरफ्तारियां बंद हों'

वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज श्रीवास्तव के मुताबिक प्रदेश में प्रति वर्ष गिरफ्तार किए गए अपराधियों में लगभग 80% व्यक्ति छोटे-मोटे अपराधों में संलिप्त होते हैं, जिनमें 7 साल की सजा का प्रावधान है. ऐसे अपराधियों के भाग जाने अदालत में हाजिर न होने या गवाहों को डराने धमकाने की आशंका लगभग न के बराबर होती है. इसलिए उन्हें विचाराधीन कैदी के रूप में जेल भेजने का पर्याप्त कानूनी आधार पुलिस के पास नहीं होता है. फिर भी पुलिस इस प्रकार के सभी आरोपियों को जेल भेजती रहती है. कोरोना संक्रमण को देखते हुए ऐसी गिरफ्तारियां पर अंकुश लगना चाहिए.

लखनऊ: कोर्ट और कानून तय करते हैं कि किस अपराध में किसी को कितने दिनों तक कैद में रहना है. न्यायपालिका की कोशिश यह होती है कि अपराधी अपने गुनाहों की सजा अवश्य पाए, लेकिन वह दंड न तो अपराध की गंभीरता से कम हो, न ज्यादा. प्रदेश की जेलों में फिलहाल इस न्याय की मंशा का आदर नहीं हो पा रहा है.

यूपी की जेलों की संपूर्ण कहानी

कोई भी अदालत बंदी को जानवरों जैसी हालत में ठूंस-ठूंस कर भर रखने का आदेश नहीं देती, लेकिन जेलों में हालत बद से बदतर है. बंदी को भोजन, पानी व चिकित्सा की सुविधा मिलनी चाहिए, लेकिन यह बुनियादी जरूरतें जेलों की व्यवस्था देखने वाला तंत्र पूरा नहीं कर पाता. ऐसा तब है, जब देश में कोरोना महामारी फैली है. जेलों में क्षमता से अधिक बंदियों के भरे होने पर सुप्रीम कोर्ट ने भी तल्ख टिप्पणी की है. बावजूद इसके जेलों में कोई सुधार नहीं आ रहा. इन अमानवीय परिस्थितियों में बंदी या तो बीमार होकर दम तोड़ देते हैं या उग्र होकर जेल की सलाखें तोड़ देते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने जाहिर की थी चिंता

वैश्विक महामारी के आने के बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एनबी रमण, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने हाल ही में जेलों में ठूंस ठूंस कर भरे गए कैदियों की हालत पर चिंता जताई थी. जेलों में भीड़ को रोकने के लिए महामारी के दौरान गिरफ्तारियों को सीमित करने का आह्वान किया है. साथ ही कहा कि क्या हम इस हालात को देखते हुए जेलों में कैदियों की भीड़ कम करने और जेलों की क्षमता बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं? कोर्ट ने जेलों में कैदियों की तादाद को कम करने के लिए राज्यों से उन कैदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा करने के लिए विचार करने को कहा है, जो अधिकतम 7 साल की सजा काट रहे हैं. अब राज्य सरकारों को तय करना है कि किस श्रेणी के अपराधियों को मुकदमे के तहत पैरोल या अंतरिम जमानत दी जा सकती है.

यूपी की जेलों में ठूंस कर भरे हैं कैदी
यूपी की जेलों में ठूंस कर भरे हैं कैदी

इसे भी पढ़ें:जेल के अंदर गैंगस्टर मुकीम काला समेत तीन कैदियों की गोली मारकर हत्या

आदेश के बाद शुरू हुई थी रिहाई

इस आदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने कैदियों को पैरोल पर रिहा करने की कवायद शुरू की. कोरोना संक्रमण की पहली वेब में 2200 कैदियों को 60 दिन के पैरोल पर रिहा किया गया था. इनमें से आधे क़ैदी जेल नहीं लौटे. कोरोना के दूसरी लहर में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद शासन में कैदियों को पैरोल पर छोड़ने की रणनीति तैयार की जा रही है. मई के अंत तक कैदियों को रिहा किया जाएगा. वहीं, यूपी की जेलों से अंतरिम जमानत पर 4803 क़ैदी रिहा किये जा चुके हैं.

यूपी की जेलों में क्षमता से कई गुना अधिक बंदी निरुद्ध

प्रदेश की केंद्रीय कारागार, जिला कारागार, उप कारागार, आदर्श कारागार, किशोर सदन व नारी बंदी निकेतन समेत विभिन्न श्रेणी की 72 जेलों में 60 हजार 685 बंदियों को निरुद्ध करने की क्षमता है, जबकि 1, 02, 809 बंदी जेलों में बंद किए गए हैं. जो क्षमता से करीब दो गुना है. इनमें से मात्र 26086 बंदियों को सजा मिली है. जबकि, 73003 विचाराधीन बन्दी जेल में निरुद्ध हैं. जनवरी 2021 तक प्रदेश की कारागारों में 454 विदेशी बन्दी भी निरुद्ध हैं. इनमें 131 को सजा मिली है. जबकि, 323 विचाराधीन बंदी हैं.

अंतरिम जमानत पर 4803 विचाराधीन बंदियों की हुई रिहाई

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुपालन में कोविड काल में जेलों में बंदियों को संक्रमण से बचाने और उनके व्यापक स्वास्थ्य में प्रदेश के विभिन्न जिलों से 90 दिन की अंतरिम जमानत पर अब तक 4803 विचाराधीन बंदी रिहा किए जा चुके हैं.

यूपी की जेलों में 1266 संक्रमित बंदी
डीजी जेल के मुताबिक जेलों में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में 1869 कैदी संक्रमित थे, अब एक्टिव केसेस की संख्या घटकर 1266 रह गई है. इनमें से 149 जेलकर्मी भी शामिल हैं. अब तक करोना संक्रमण से कुल 7 बंदियों और चार जेल कर्मियों की मौत हो चुकी है. जेलों में कोरोना संक्रमित बंदियों के इलाज के लिए व्यवस्था की गई है. उन्हें जरूरी दवाएं, जड़ी-बूटियों से युक्त काढ़ा और भांप दिया जा रहा है. बंदियों का रूटीन चेकअप और ऑक्सीजन लेवल भी रोज जांच कराई जाती है.

पर्याप्त सुरक्षा बल भी नहीं
उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद करीब एक लाख बन्दियों की सुरक्षा व अन्य व्यवस्था के लिये 11098 पद स्वीकृत हैं. जबकि, 5223 ही जेल कर्मचारी विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं. 5875 पद अभी भी खाली पड़े हैं. इनमें एक लाख बन्दियों पर सिर्फ 2652 जेल हेड वार्डर हैं. जबकि, स्वीकृत पद 7329 हैं. इसी प्रकार 70 पद के सापेक्ष 48 जेल अधीक्षक, 94 के सापेक्ष 90 जेलर और 474 पद के सापेक्ष 206 जेल कार्यरत हैं.

महिला कैदियों से पुलिस कस्टडी में दुष्कर्म के सबसे अधिक मामले
पुलिस रिकॉर्ड की मानें तो उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018 से 2020 के दौरान 280 से अधिक महिला कैदियों से पुलिस कस्टडी में दुष्कर्म की घटनाएं हुई है. उत्तर प्रदेश की जेलों में सबसे अधिक दुर्दशा महिलाओं की है. यही नहीं यूपी की जेलों में बंद महिला कैदियों के मानसिक रोगी हो जाने के मामले में भी यूपी सबसे ऊपर है. यहां वर्ष 2018 से 2020 के बीच सालों में 54 से अधिक महिला कैदी मानसिक रोग से ग्रस्त हो गई है. इसी के दौरान अवसाद में आकर तीन महिलाओं ने आत्महत्या भी की है.




जेल की क्षमता और सिद्धदोष, विचाराधीन बंदियों की संख्या

जिला कारागार मुरादाबाद में 717 के सापेक्ष 3387 बंदी निरुद्ध हैं. इनमें से 488 सिद्धदोष व 2899 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार जौनपुर 320 के सापेक्ष 1100 बंदी हैं. इनमें 88 सिद्धदोष व 1012 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार देवरिया में 533 के सापेक्ष 1639 बंदी निरुद्ध हैं. इनमें 133 सिद्धदोष व 1506 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार मथुरा में 554 के सापेक्ष 1641 बंदी निरुद्ध है. इनमें 184 सिद्धदोष व 1457 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार सहारनपुर 533 के सापेक्ष 1564 के निरुद्ध हैं. इनमें 334 सिद्धदोष और 1234 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार गाजियाबाद में 1704 के सापेक्ष 4978 बंदी निरुद्ध हैं. इनमें 620 सिद्धदोष और 4358 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार वाराणसी में 747 के सापेक्ष 2164 बंदी निरुद्ध हैं. इनमें से 174 सिद्धदोष और 1990 विचाराधीन बंदी हैं.

जिला कारागार इटावा में 610 के सापेक्ष 1743 बंदी निरुद्ध हैं. इनमें 390 सिद्धदोष व 1353 विचाराधीन बंदी हैं.

'जेल अफसरों को मुहैया कराई जाए सुविधाएं'

रिटायर्ड डिप्टी एसपी श्यामाकांत त्रिपाठी का कहना है कि पुराने जमाने की जेलों में बंदियों के रखने की क्षमता कम है. अब जेलों में क्षमता से दोगुने से अधिक बंदी निरुद्ध हैं. कोरोना संक्रमण से बचने के लिए जेल प्रशासन को 7 साल से कम सजा वाले अपराधियों को पैरोल या फिर अंतरिम जमानत पर छोड़ा जाना चाहिए. इस संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश किया है. जेलों में बंद अपराधीकरण को कम करने के लिए जेल अफसरों को संसाधन मुहैया कराना चाहिए. दरअसल, जेल अफसरों के पास अपराधियों से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है.

'छोटे-मोटे अपराधों में गिरफ्तारियां बंद हों'

वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज श्रीवास्तव के मुताबिक प्रदेश में प्रति वर्ष गिरफ्तार किए गए अपराधियों में लगभग 80% व्यक्ति छोटे-मोटे अपराधों में संलिप्त होते हैं, जिनमें 7 साल की सजा का प्रावधान है. ऐसे अपराधियों के भाग जाने अदालत में हाजिर न होने या गवाहों को डराने धमकाने की आशंका लगभग न के बराबर होती है. इसलिए उन्हें विचाराधीन कैदी के रूप में जेल भेजने का पर्याप्त कानूनी आधार पुलिस के पास नहीं होता है. फिर भी पुलिस इस प्रकार के सभी आरोपियों को जेल भेजती रहती है. कोरोना संक्रमण को देखते हुए ऐसी गिरफ्तारियां पर अंकुश लगना चाहिए.

Last Updated : May 17, 2021, 4:11 PM IST
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