लखनऊ : उर्दू जिसे कहते हैं तहज़ीब का चश्मा है वो शख़्स मोहज़्ज़ब है जिसको ये ज़ुबां आई... रविश सिद्दीक़ी का यह शेर उर्दू ज़ुबां की तारीफ में लिखा गया है और सच भी है क्योंकि इस भाषा की तासीर ऐसी है कि इससे तआरुफ़ रखने वाले के पास अगर कोई अकादमिक इल्म न भी हो तब भी वह मोहज़्ज़ब यानि तालीम याफ़्ता ही कहा जाता है. इस ज़ुबान की ख़ूबसूरती का आलम यह है कि दो लफ़्ज़ ग़र किसी अंधेरे कमरे में गूंज जाएं तो फ़ानूस की शमां सी रौशनी हो जाए.
ऐसी ही बातें गुरुवार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के उर्दू प्रेक्षागृह में सुनने को मिलीं. गुरुवार को विश्व उर्दू दिवस के मौके पर उर्दू प्रेक्षागृह में कार्यक्रम जश्ने उर्दू का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में उर्दू की वर्तमान स्थिति और विकास पर चर्चा की गई. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आईएएस डॉ. हरिओम ने कहा कि आज लोगों को इस विरासत (उर्दू) को हूबहू अगली नस्ल तक पहुचाने की ज़रूरत है. अल्लामा इकबाल को आज बहुत से लोग नहीं जानते, लेकिन उनका काम आज हिंदुस्तान के बच्चे बच्चे की ज़ुबान पर सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा के रूप में बसता है.
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अब्बास रज़ा नय्यर ने अल्लामा इक़बाल की ज़िंदगी और उनके फलसफे पर प्रकाश डाला. दूसरे सत्र में लखनऊ की गजल गायिका डॉ. प्रभा श्रीवास्तव ने शाम ए गजल को सजाया. डॉ. प्रभा ने शाम ए गजल की शुरुआत अल्लामा इकबाल की गजल तेरे इश्क की इंतेहा चाहता हूं... से की. इसके बाद तू तो खुद ही एक गजल है तुझे क्या गजल सुनाएं... सहित कई अन्य शायरों की गजलें पेश कीं. कार्यक्रम में जीशान सारंगी पर, राकेश आर्य गिटार पर, रिंकू कीबोर्ड ने संगत दी. इसके अलावा डाॅ. अब्दुल कलाम ट्रस्ट की ओर से उर्दू पर कार्यक्रम आयोजित किया गया. आलमी यौमे उर्दू नाम से आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता अब्दुल नासिर नसीर ने की. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली रहे. उन्होंने उर्दू भाषा के बारे में विस्तार से चर्चा की. इस अवसर पर कई अन्य मेहमानों ने भी उर्दू पर अपनी बात रखी.
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